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वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा में “सामाजिक समरसता के प्रतीक श्रीराम” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कल

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भगवान श्रीराम के आदर्शों, भारतीय कला, आध्यात्मिकता और मूल्यों को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास है “सामाजिक समरसता के प्रतीक श्रीराम” राष्ट्रीय संगोष्ठी

सामाजिक समरसता और स्वाभिमान के प्रतीक है श्रीराम, आज के युग में सामाजिक एकता और न्याय की महत्ती महत्व आवश्यकता : प्रो. बीएल वर्मा,कुलगुरु

कोटा, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा में 06 नवंबर को “सामाजिक समरसता के प्रतीक श्रीराम” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन होने जा रहा है। विश्वविद्यालय जनसंपर्क प्रकोष्ठ के सहसंयोजक विक्रम राठौड़ ने बताया कि यह आयोजन कल मुख्य अतिथि श्री मदन दिलावर माननीय शिक्षा मंत्री राजस्थान सरकार, विशिष्ट अतिथि प्रो. कैलाश सोडाणी, पूर्व कुलगुरु वीएमओयू सलाहकार उच्च शिक्षा, प्रो.भगवती प्रसाद सारस्वत कुलगुरु कोटा विश्वविद्यालय एवं प्रो.बीएल वर्मा कुलगुरु-वीएमओयू की अध्यक्षता में आयोजित होगा। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. रामनाथ झा आचार्य जेएनयू दिल्ली से शिरकत करेंगे। संयोजक डॉ.कपिल गौतम,समन्वयक डॉ.आलोक चौहान,सह समन्वयक डॉ.नीरज अरोड़ा राष्ट्रीय संगोष्ठी की तैयारी को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं।

कुलगुरु प्रो. बीएल वर्मा ने कहा कि वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय द्वारा सामाजिक समरसता के प्रतीक श्रीराम” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता के महत्व के महान उदेश्य के साथ किया जा रहा है। ताकि युवाओं ओर विद्यार्थियों में भगवान राम के मूल्यों, आदर्शों को आत्मसात करने और समाज में एकता व समानता की भावना को बढ़ावा दिया जा सके। वर्तमान परिदृश्य में मानव समाज में जाति, धर्म, वर्ग और समुदाय से ऊपर उठकर प्रेम और समानता की भावना को बढ़ावा देना आवश्यक हैं। हमारी युवा पीढ़ी को भगवान राम के आदर्शों को अपनाने के लिए प्रेरित करने के संदेश देने के साथ सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने, जहाँ सामाजिक एकता और न्याय सर्वोपरि हो की महत्ती महत्व आवश्यकता है। यह संगोष्ठी भारतीय कला, आध्यात्मिकता और मूल्यों को पुनर्जीवित करने का एक अनूठा प्रयास है जिसे वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय द्वारा साकार किया जा रहा है। सही मायनों में यह संगोष्ठी भारतीय लोकाचार की जड़ों को पुनर्जीवित करने का प्रयास है। श्रीराम ने सामाजिक समरसता और सशक्तिकरण का संदेश स्वयं के जीवन से दिया है।

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