राष्ट्रीय राजस्थानी संगोष्ठी-
बारहठ ने शब्द-सत्ता की प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष किया – प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण
जोधपुर । राजस्थानी रचनाकारों ने अपनी माटी की महक को पूरी दुनिया मे महकाया है। राजस्थानी की विविध विधाओं में सृजन करने वाले यशस्वी कवि करणीदान बारहठ एक कर्मवीर रचनाकार थे जिनकी रचनाओं में माटी की महक मौजूद है। यह विचार जेएनवीयू के कुलगुरू प्रोफेसर (डाॅ.) पवन कुमार शर्मा ने साहित्य अकादेमी, रम्मत संस्थान एवं राजस्थानी विभाग द्वारा आयोजित करणीदान बारहठ जलमसदी राष्ट्रीय राजस्थानी संगोष्ठी में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राजस्थानी साहित्य विश्व स्तर अपनी विशिष्ट पहचान रखता है।
संगोष्ठी संयोजक डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित ने बताया कि ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने करणीदान बारहठ की साहित्य साधना की विशद विवेचना करते हुए कहा कि शब्द-सत्ता की स्थापना के लिए उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया। वो जमीन से जुड़े हुए रचनाकार थे जिन्होंने मानवीय संवेदना से परिपूर्ण अपनी मातृभाषा में शब्द की सत्ता को समाज में एक नई दृष्टि से स्थापित किया। मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित रचनाकार मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि करणीदान बारहठ ने समय एवं समाज की सच्चाई को मनोवैज्ञानिक रूप से उजागर किया। उन्होंने कहा कि राजनैतिक मनोवृति पर करणीदान बारहठ ने जो सृजन किया है वह अपने आप में उदभूत है। विशिष्ठ अतिथि प्रोफेसर (डाॅ) मंगलाराम बिश्नोई ने कहा कि करणीदान बारहठ नारी अस्मिता को विश्व स्तर पर उजागर करने वाले कवि एवं राजस्थानी संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान थे। राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित ने उद्घाटन सत्र का संयोजन करते हुए करणीदान बारहठ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेन्द्र कुमार देवेश ने स्वागत उद्बोधन के साथ संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध आलेखों को पुस्तक रूप में प्रकाशित करने की घोषणा की।
करणीदान बारहठ विशेषांक का लोकार्पण: संगोष्ठी में कथेसर द्वारा प्रकाशित तथा रामस्वरूप किसान एवं डाॅ. सत्यनारायण सोनी द्वारा संपादित करणीदान बारहठ विशेषांक का अतिथियों ने लोकार्पण किया। इस अवसर पर साहित्य अकादेमी के अनुवाद पुरस्कार से पुरस्कृत प्रोफेसर सोहनदान चारण का अभिनंदन किया गया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन तीन विभिन्न तकनीकी सत्र प्रतिष्ठित रचनाकार रामस्वरूप किसान, मीठेश निर्माेही एवं डाॅ. मदन सैनी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए। इन सत्रों में करणीदान बारहठ की साहित्य साधना पर डाॅ. सत्य नारायण सोनी, विजय बारहठ, सतपालसिंह खाती, संजय पुरोहित, कृष्ण कुमार आशु, एवं संतोष चैधरी ने पत्र वाचन किया। सत्रों को संयोजन डाॅ. मीनाक्षी बोराणा एवं तरनीजा मोहन राठौड़ एवं इन्द्रदान चारण ने किया।
संगोष्ठी के प्रारम्भ मे मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया। राजस्थानी विभाग द्वारा राजस्थानी परम्परा अनुसार सभी अतिथियों का स्वागत सत्कार किया गया। इस अवसर पर प्रोफेसर के.एल उपाध्याय, प्रोफेसर किशोरी लाल रैगर, प्रोफेसर के.डी. स्वामी, प्रोफेसर यादराम मीणा,डाॅ. पद्मजा शर्मा, डाॅ. सुमन बिस्सा, डाॅ. चांदकौर जोशी, बसन्ती पंवार, डाॅ. कालुराम परिहार, डाॅ.ललित पंवार, डाॅ. प्रवीण चन्द,डाॅ. मदनसिंह राठौड़, डाॅ. मंगत बादल, भंवरलाल सुथार, गिरधरगोपाल सिंह भाटी, डाॅ. किरण बादल, डाॅ. राजेन्द्र बारहठ, डाॅ. प्रकाशदान चारण, डाॅ. राम पंचाल, मोहनसिहं रतनू, डाॅ. भीवसिंह राठौड, संग्रामसिंह सोढ़ा, खेमकरण लालस, श्रवणराम भादू, सुधा शर्मा, पूनम सरावगी, अरूण बोहरा, महेश चन्द्र माथुर, अरविन्द कुमार, अर्जुनसिंह कविया, रामकिशोर फिडोदा, मुकेश कुमार स्वामी, ललिता बारहठ, डाॅ. कप्तान बोरावड, माधुसिंह, विष्णुशंकर, जगदीश, मगराज, नरेन्द्रसिंह, शान्तिलाल सहित विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षक, राजस्थानी रचनाकार, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।
कल होगा संगोष्ठी का समापन समारोह: प्रात 10 बजे से दो तकनीकी सत्रों के पश्चात् ख्यातनाम रचनाकार डाॅ. मंगत बादल के मुख्य आतिथ्य एवं प्रोफेसर किशोरी लाल रैगर की अध्यक्षता में अपराह्न 03 बजे समापन समारोह होगा।














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