ARTICLE - SOCIAL / POLITICAL / ECONOMICAL / EMPOWERMENT / LITERARY / CONTEMPORARY / BUSINESS / PARLIAMENTARY / CONSTITUTIONAL / ADMINISTRATIVE / LEGISLATIVE / CIVIC / MINISTERIAL / POLICY-MAKING

विडंबना : “किस ओर का जा रही हैं,इंसान राह तेरी

TIN NETWORK
TIN NETWORK
FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

विडंबना
“किस ओर का जा रही हैं,इंसान राह तेरी
घरबार सब मिट गया तो,फिर क्या रहा है तेरा”,कुछ इसी तरह की व्यथा में आज हम स्वयं को देख रहे है।ये बिगड़ती परिस्थितियाँ हमें भविष्य के लिए सचेत कर रही है।चहूँओर कैंसर जैसे दानव अपने पाँव पसार रहे है और विदित् होने के उपरांत भी हम अनभिज्ञ बनने का ढोंग कर रहे है।हमारी भावी पीढ़ी मोबाइल के नशे का शिकार हो रही है,आपसी संवाद ख़त्म हो रहे है,जिससे एकाकीपन की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है।भावनाओं को साँझा न कर पाने के कारण आज किशोर वर्ग आत्महत्या के लिए प्रेरित हो रहे है।अतिमहत्वाकांक्षाओं के परिणामस्वरूप विवाह जैसी परम्परायें बढ़ती उम्र का दंश झेल रही है।सरकार भी इन परिस्थितियों का भरपूर लाभ उठा रही है।क्या सरकार को कारणों का भान होने के उपरांत भी सख़्त क़ानून नहीं बनाने चाहिए?जीवन को नरक बनाने से रोकना हर सरकार का प्रथम दायित्व होना चाहिए।


✍🏻डॉ.अजिता शर्मा
उदयपुर

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare
error: Content is protected !!