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काशी रेडलाइट एरिया…चुनाव बीता, नेता यहां आए तक नहीं:सेक्स वर्कर्स बोलीं- नर्क में जिंदा हैं, यहीं मर जाएंगे

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काशी रेडलाइट एरिया…चुनाव बीता, नेता यहां आए तक नहीं:सेक्स वर्कर्स बोलीं- नर्क में जिंदा हैं, यहीं मर जाएंगे

वाराणसी

‘सरकार हर जगह सुविधा देती है, लेकिन शिवदासपुर में आज तक कुछ नहीं बदला। हम इस नर्क में जिंदा हैं, यहीं मर जाएंगे। हमारे तो वोट मांगने भी कोई नेता नहीं आता।’

42 साल की शब्बो सेक्स वर्कर हैं और शिवदासपुर में रहती हैं। ये बनारस का रेडलाइट एरिया है। यहां आने में हिचकिचाहट सिर्फ आम लोगों में ही नहीं, बल्कि नेताओं में भी दिखती है। बीते 20 साल से शिवदासपुर में किसी भी पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा है।

30 हजार की आबादी वाले इस कस्बे में 50 घर ऐसे हैं, जहां लड़कियां और महिलाएं रोज तैयार होकर ‘कस्टमर’ का इंतजार करती हैं। ये सेक्स वर्कर्स हैं। हर बार की तरह इस बार भी इन्होंने वोट दिया। इस उम्मीद में कि सरकार कभी न कभी तो उनकी तकलीफ समझेगी। उन्हें काम दिलाकर इस दलदल से बाहर निकालेगी।

शिवदासपुर के रेडलाइट एरिया में सेक्स वर्कर्स के घर तक पहुंचा। महिलाओं-लड़कियों से बात की और उनका दर्द जाना। पढ़िए ये रिपोर्ट…

बनारस के शिवदासपुर में रेडलाइट एरिया है। यहां के लोगों की शिकायत है कि 20 साल से इस इलाके में कोई बड़ा नेता नहीं आया।

बनारस के शिवदासपुर में रेडलाइट एरिया है। यहां के लोगों की शिकायत है कि 20 साल से इस इलाके में कोई बड़ा नेता नहीं आया।

टूटे-अधूरे पड़े मकानों से झांकती महिलाएं
वाराणसी रेलवे स्टेशन से 4 किमी दूर मंडुवाडीह इलाका है। इसे ही शिवदासपुर भी कहते हैं। यहां की एक संकरी गली में 50 कदम चलने पर माहौल पूरी तरह बदल जाता है। लाइन से बने टूटे-पुराने घरों के दरवाजे पर अलग-अलग उम्र की लड़कियां बैठी दिखती हैं। इस सड़क को लोग बदनाम गली के तौर पर देखते हैं, क्योंकि यहां सेक्स वर्कर्स रहती हैं।

शिवदासपुर में मिले लोगों से बात करके पता चला कि 2004 से इस इलाके में कोई बड़ा नेता नहीं आया। शायद यही इसकी बदहाली की सबसे बड़ी वजह है। चुनाव के वक्त भी न तो कोई चुनावी पोस्टर चिपका मिला, न ही किसी नेता की फोटो दिखाई दी।

इन गलियों में कैमरा ले जाना मना है। रेडलाइट एरिया में दाखिल होते ही लोग आपको शक की निगाहों से देखने लगते हैं। इनमें से कुछ आपका पीछा करेंगे। अगर पता चल गया कि आप कोठे के कस्टमर हैं, तो वहां पहुंचा देंगे। ऐसे ही एक शख्स ने हमें शब्बो के कोठे तक पहुंचाया।

रेडलाइट एरिया में सबसे पहला कोठा शब्बो का है। यहां रहने वाली हर सेक्स वर्कर उनका ऑर्डर मानती है। शब्बो पहले खुद यही काम करती थीं, लेकिन उम्र ढलने की वजह से अब कोठे की जिम्मेदारी संभालती हैं।

30 हजार की आबादी वाले शिवदासपुर कस्बे में करीब 50 घर ऐसे हैं, जहां सेक्स वर्कर्स रहती हैं।

30 हजार की आबादी वाले शिवदासपुर कस्बे में करीब 50 घर ऐसे हैं, जहां सेक्स वर्कर्स रहती हैं।

हमने शब्बो से 3 सवाल पूछे…
सवाल-1: आप नरेंद्र मोदी को जानती हैं?

शब्बो ने मुस्कुराकर कहा- हां, TV पर देखा है।

सवाल-2: आप लोग वोट डालने जाती हैं?
शब्बो: 
यहां ज्यादातर लड़कियों के वोटर कार्ड बने हैं। हर बार वोट डालते हैं, लेकिन जीतने के बाद कभी कोई नेता यहां नहीं आया। हमें पता है कि चुनाव और नेता हमारी समस्या नहीं खत्म कर पाएंगे। ये लोग तो बस अपना फायदा देखते हैं। इन्हें हम सब से क्या मतलब।

सवाल-3: यहां रहने वाली सेक्स वर्कर्स क्या चाहती हैं?
शब्बो:
 दिल्ली का GB रोड हो या मुंबई का कमाठीपुरा। सरकार हर जगह सुविधा देती है, लेकिन शिवदासपुर-मंडुवाडीह में आज तक कुछ नहीं बदला। कोई हमसे पूछने नहीं आया कि तुम लोग क्या खाते हो, क्या पहनते हो। कैसे रह रहे हो, तुम्हारे बाल-बच्चे कैसे हैं। बस चुनाव बीत गया, अब जनता भाड़ में जाए।

सामाजिक सुरक्षा बदनाम गलियों का बड़ा मुद्दा
शब्बो के कोठे से तीन घर छोड़कर वो कोठा है, जहां 2021 में एक महिला का मर्डर कर दिया गया था। कई दिनों तक पुलिस का पहरा रहा। यहां रहने वाली महिलाएं बताती हैं, ‘तब कई बड़े अधिकारी आए थे। 10-15 दिन तक हर कोठे की चेकिंग की गई। हमारा तो काम बंद हो गया। हमें डर रहता था कि कोठे बंद न करा दिए जाएं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।’

शब्बो की तरह कमला (बदला हुआ नाम) भी 25 साल से सेक्स वर्कर हैं। वे 1997 में बंगाल से आई थीं। उसके बाद कभी घर नहीं लौटी। कमला कहती हैं, ‘3 साल पहले हुए मर्डर के बाद यहां बीच-बीच में पुलिस की गश्त होती रहती है। हमारी सुरक्षा के नाम पर यहां सिर्फ CCTV कैमरे लगाए गए और कुछ भी नहीं हुआ।’

वे आगे कहती हैं, ‘हालत ऐसी है कि हम इस एरिया को छोड़कर कहीं नहीं जा सकते, क्योंकि कोई भी हमें रहने की जगह नहीं देना चाहता।’

शिवदासपुर की ज्यादातर सेक्स वर्कर्स के लिए चुनाव और उसके नतीजे मायने नहीं रखते। उनका कहना है, ‘सरकार ने इतने साल में हमारे लिए कुछ नहीं किया, तो अब क्या ही करेगी।’

रेडलाइट एरिया की बिटिया बोली- अपनी सेफ्टी की लिए वोट दिया
शिवदासपुर की बबली ने पहली बार लोकसभा चुनाव में वोट डाला था। बबली के पिता को रेडलाइट एरिया वाले ‘उस्ताद’ कहते थे। वे यहां की डांसर्स के साथ हरमोनियम बजाते थे। वक्त बीतता गया और डांसर गरीबी की वजह से देह व्यापार के धंधे में आ गईं।

उस्ताद भले ही यहां की महिलाओं के साथ काम करते रहे हों, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को इस धंधे से दूर रखा। 24 साल की बबली आज सेक्स वर्कर्स के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती हैं। वो टीचर बनना चाहती हैं।

बबली कहती हैं, ‘यहां औरतें धंधा करने के लिए बैठी हैं, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब है। बाहर से कौन-किस माइंडसेट से आ रहा है, इसका उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं रहता।’

हम बबली से बात कर रहे थे, तभी गीता (बदला हुआ नाम) वहां आ गईं। दो बच्चों की मां गीता सेक्स वर्कर हैं। उनका एक बेटा इंजीनियर है और बेटी की दिल्ली में शादी हो चुकी है। गीता ने कैमरे के सामने न बोलने की शर्त पर हमसे बात की।

वे कहती हैं, ‘मेरी तरह शिवदासपुर की महिलाओं ने भी वोट डाला है। हम बस यही चाहते हैं कि सरकार हर महिला की तरह हमें भी समझे, ताकि हम भी कह सकें कि ये मेरा घर है। मुझे यहां से कोई नहीं निकाल सकता।’

कोठे के मालिक ने जिसका कहा, उसी को वोट दे दिया
वाराणसी के अजीत सिंह 1993 से शिवदासपुर की सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों के बीच काम कर रहे हैं। 2005 में इसी रेडलाइट एरिया से उन्होंने 50 नाबालिग बच्चियों को छुड़ाया था। 15 कोठे भी सीज करवाए।

अजीत ‘गुड़िया’ नाम से संस्था चलाते हैं। उनकी मदद से UP-STF के इंस्पेक्टर विपिन राय ने शिवदासपुर के सबसे बड़े दलाल रहमत खान का एनकाउंटर किया था। अजीत अब तक करीब 500 दलालों को जेल भिजवा चुके हैं। इस दौरान 2O से ज्यादा बार उन पर हमले हुए, लेकिन डटे रहे। रेडलाइट एरिया में उनके काम की वजह से ‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो में भी बुलाया गया था।

अजीत सिंह को रेडलाइट एरिया में बेहतर काम करने की वजह से कौन बनेगा करोड़पति शो में बुलाया गया था, ये तस्वीर उसी समय की है।

अजीत सिंह को रेडलाइट एरिया में बेहतर काम करने की वजह से कौन बनेगा करोड़पति शो में बुलाया गया था, ये तस्वीर उसी समय की है।

चुनाव और पॉलिटिकल पार्टियों की सेक्स वर्कर्स के प्रति इस बेरुखी के क्या मायने हैं? इसके जवाब में अजीत कहते हैं, ‘अब तक न जाने कितनी सरकारें आईं और चली गईं। सेक्स वर्कर्स कभी भी उनके चुनावी मुद्दों में शामिल नहीं रहीं। न ही उनके लिए कोई बड़ी स्कीम बनाई गई। पॉलिटिकल पार्टियां उन्हें अपना वोट बैंक नहीं मानतीं, इसलिए ज्यादा ध्यान नहीं देतीं।’

‘शिवदासपुर की सेक्स वर्कर्स सरकारी सिस्टम से नाउम्मीद हो गई हैं। वे चुनावों को सीरियसली नहीं लेतीं। कोठे मालिक या दलाल जो कहते हैं, वो उसी पार्टी को वोट दे देती हैं। कुल मिलाकर रेडलाइट एरिया में 20 साल पहले जो हालात थे, आज भी वैसे ही हैं।’

कितने कोठे और सेक्स वर्कर्स, सही डेटा नहीं
शिवदासपुर में कितने कोठे हैं, कितनी सेक्स वर्कर्स हैं, इसका कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है। यहां के लोग बताते हैं कि रेडलाइट एरिया में 100 के करीब कोठे हैं, जिनमें इतनी ही सेक्स वर्कर्स हैं।

पूरे शिवदासपुर में 15 वार्ड आते हैं, जहां 30 हजार लोग रहते हैं। ये परिवार अपनी पहचान नहीं बताना चाहते। उन्हें डर है कि अगर वे सामने आए, तो बदनाम हो जाएंगे। पुलिस उन्हें भी परेशान करेगी।

बनारस के काशियाना फाउंडेशन के डायरेक्टर और केंद्र सरकार की सलाहकार समिति के मेंबर सुमित सिंह कहते हैं, ‘लोग शिवदासपुर को गलत नजरिए से देखते हैं। यहां रहने वाली 90% आबादी सामान्य लोगों की है। बचे 10% लोग ही वेश्यावृत्ति में शामिल हैं। उनकी वजह से दूसरे लोगों की भी बदनामी होती है।’

पार्षद बोले- सेक्स वर्कर्स को देंगे नौकरी
रेडलाइट एरिया की महिलाओं को केंद्र की योजनाओं का कितना फायदा मिला? इसका जवाब हमें शिवदासपुर के पार्षद रविंद्र कुमार सोनकर से मिला। रविंद्र कहते हैं, ‘मोदी सरकार की योजनाओं के फायदे आम लोगों की तरह ही सेक्स वर्कर्स को भी मिल रहे हैं। रेडलाइट एरिया में महिलाओं को वक्त पर राशन और सिलेंडर मिल रहा है।’

पार्षद रविंद्र सोनकर की बातों से यहां की सेक्स वर्कर्स इत्तेफाक नहीं रखतीं। वे कहती हैं, ‘सरकार बच्चों के लिए आज तक एक प्राइमरी स्कूल नहीं बनवा सकी, तो हमें नौकरी कैसे दे पाएगी। यहां छोटे बच्चों के लिए आंगनवाड़ी केंद्र और प्राइमरी हेल्थ केयर तक नहीं है। वक्त-बेवक्त कोई बीमार होता है, तो उसे शहर लेकर जाना पड़ता है।’

शिवदासपुर की आंगनवाड़ी वर्कर बीनू आनंद कहती हैं, ‘सेक्स वर्कर्स को न तो वक्त पर राशन मिलता न ही कोई सरकारी मदद दी जाती है। आंगनवाड़ी केंद्र भी पेड़ के नीचे चलाए जा रहे हैं।’

सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में सेक्स वर्कर्स को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने देह व्यापार को पेशा मानते हुए कहा था कि पेशा कोई भी हो, संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत भारत के हर नागरिक को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है।

इसके बावजूद सेक्स वर्कर्स की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया। इन्हें हमेशा पुलिस का डर रहता है। कस्टमर की बदतमीजी सहनी पड़ती है। न सरकारें इनकी परेशानी समझती हैं और न नेताओं को इनकी परवाह है।

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