चुनावी नतीजों के बाद ब्यूरोक्रेसी में बड़े बदलाव की तैयारी? बीकानेर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ के प्रशासन में बदलाव पहले :एससी-एसटी व जाट बहुल सीटों के हारने का दबाव, सोशल इंजीनियरिंग के आधार पर तैनात होंगे कलेक्टर-एसपी
जयपुर
राजस्थान में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को हाल ही में लोकसभा में अच्छे परिणाम नहीं मिले हैं। भाजपा ने इस बार 11 सीटें गंवाई हैं। इन नतीजों का असर ब्यूरोक्रेसी में बड़े बदलाव के तौर पर भी दिखाई दे सकता है।
प्रदेश में एससी-एसटी के रिजर्व 6 लोकसभा सीटों (श्रीगंगानगर, बीकानेर, भरतपुर, करौली धौलपुर, दौसा और बांसवाड़ा) में से 5 पर भाजपा की हार हुई है। सूत्रों के अनुसार इन क्षेत्रों में आने वाले जिलों के कलेक्टर-एसपी को बदला जाना तय माना जा रहा है।
इनके अलावा सीकर, झुंझुनूं, बाड़मेर, नागौर, चूरू और टोंक सवाईमाधोपुर जैसे जिलों में ब्यूरोक्रेसी में सोशल इंजीनियिरिंग देखने को मिल सकती है।
आने वाले दिनों में क्या बदलाव संभव हैं? सरकार ने क्या तैयारियां की हैं? पढ़िए इस रिपोर्ट में…
4 बड़ी सूची हो रही तैयार
सूत्रों के अनुसार, आईएएस और आईपीएस काडर की एक-एक और आरएएस काडर की 2 बड़ी तबादला सूची तैयार की जा रही है। इनमें करीब 300 अफसरों के तबादले होने संभव हैं। चुनाव के दौरान और चुनाव से पहले करीब 20 कलेक्टर-एसपी की शिकायतें सीएम और मुख्य सचिव तक पहुंची हैं। इसके बाद चिकित्सा, शिक्षा, जलदाय, विद्युत, राजस्व, खनिज, पुलिस जैसे विभागों में भी सैकड़ों की संख्या में अफसर, इंजीनियर व डॉक्टर इधर-उधर किए जाएंगे।
माना जा रहा है, तबादलों के लिए 2 बड़ी सूची तैयार कर ली गई हैं।
आखिर क्यों किए जाएंगे बदलाव?
इस बदलाव के पीछे चुनावी शिकायतों के अलावा कई अन्य कारण हैं। राजस्थान में भाजपा की सरकार बने करीब 6 महीने हो चले हैं। ब्यूरोक्रेसी गुड गवर्नेंस स्थापित करने में कामयाब नहीं हो पाई है। सरकारी विभागों का औचक निरीक्षण करना हो या पानी-बिजली की समस्याएं। कुछ ऐसी घटनाएं भी सामने आईं कि प्रदेश में यह चर्चा आम हो गई कि राजस्थान में ब्यूरोक्रेट केवल अपने वातानुकूलित दफ्तरों में मगन हैं।
1. विधायकों द्वारा पूछे गए 5 हजार सवालों का जवाब नहीं दे पाए अफसर, देवनानी ने जताई नाराजगी
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने पिछले दिनों एक समीक्षा बैठक में पाया कि पिछली विधानसभा (15वीं) में विधायकों द्वारा पूछे गए करीब 5 हजार से ज्यादा सवालों के तो ब्यूरोक्रेट्स ने जवाब ही नहीं दिए।
राजस्थान विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी ने विधायकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों की पेंडेंसी पर नाराजगी जताई थी।
तब देवनानी ने मुख्य सचिव सुधांश पंत सहित कुछ वरिष्ठ आईएएस अफसरों को तीन-चार दिन पहले विधानसभा में बुलाया। देवनानी ने उन्हें 5 हजार सवाल पिछली विधानसभा के और करीब 2000 सवाल 16वीं विधानसभा के मिलाकर 7 हजार सवालों के जवाब देने को कहा।
इनमें से लगभग 1940 सवालों के जवाब तो दिए जा चुके हैं। इसके अलावा फरवरी से मई के बीच पूछे गए सवालों में से करीब 66 प्रतिशत सवालों के जवाब तैयार करवाकर सीएस संबंधित विभागों और विधायकों को भिजवा चुके हैं। लेकिन अभी भी पेंडेंसी काफी है।
2. फाइलों के निस्तारण में आईएएस अफसर रहे हैं फिसड्डी
सीएस सुधांश पंत पिछले 6 महीनों में लगभग हर मीटिंग या वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग में कह चुके हैं कि सभी जिला कलेक्टरों को अपनी टेबल पर फाइलों पर निर्णय लेने का काम तेजी से करना है। इसके बावजूद 47 में से 10 जिलों को छोड़कर शेष 37 जिलों में फाइलों के निस्तारण की रफ्तार बहुत धीमी है। कुछ जिलों व संभाग मुख्यालयों पर कलेक्टर और संभागीय आयुक्त पूरा एक दिन (24 घंटे) बिता कर केवल 1 या 2 फाइल ही निपटा रहे हैं।
अप्रैल में मुख्य सचिव ने जिला कलेक्टरों की परफॉर्मेंस रैंकिंग जारी की थी। इसका आधार था- कौन कलेक्टर कितनी देर में फाइल का निस्तारण करता था।
3. कई जिलों में अपराध बढ़ने पर स्वयं सीएम ने फटकार लगाई
सीएम भजनलाल शर्मा ने गत सप्ताह सीएमओ में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान राजस्थान के सभी आईपीएस अफसरों को फटकार लगाई थी, क्योंकि अपराध के आंकड़े और घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। मीटिंग में सीएम ने कोटा, बीकानेर, जोधपुर और अजमेर रेंज के अफसरों को विशेष जोर देकर कहा था कि इन क्षेत्रों में अपराध पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। खासकर सीएम ने महिलाओं से संबंधित अपराधों पर चिंता जताई थी।
4. कामचोर कर्मचारियों को चेताया, ब्यूरोक्रेट्स उनकी छंटनी नहीं कर पाए
काम नहीं करने वाले कर्मचारियों की छंटनी कर उन्हें सरकारी सेवा से हटाने का आदेश बीते दिनों काफी चर्चा में रहा। इस आदेश के तहत अब तक ब्यूरोक्रेट्स अपने-अपने मातहत विभागों में एक भी कर्मचारी का चयन नहीं कर पाए हैं। इसके उलट कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने इसी सप्ताह सीएमओ में हुई मीटिंग में सीएम भजनलाल शर्मा के सामने अपना विरोध प्रकट कर दिया।
हाल ही में मुख्य सचिव ने आदेश निकाला था कि कामचोर, काम करने में असमर्थ, कमजोर परफॉर्मेंस वाले अफसर-कर्मचारियों को जबरन रिटायर कर दिया जाएगा।
सीएम शर्मा ने मौके पर ही मौजूद मुख्य सचिव पंत से इस विषय में बातचीत की और कर्मचारियों को आश्वस्त किया कि कर्मचारियों की बेवजह छंटनी नहीं होगी। अगर किसी कर्मचारी के प्रकरण में ऐसा करना भी पड़ा तो वो कोई इक्का-दुक्का मामला ही होगा। सीएम के आश्वासन के बाद कर्मचारी शांत हुए।
5. पिछली कांग्रेस सरकार के दो टॉप ब्यूरोक्रेट अब भी उन्हीं विभागों में
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल (2018-2023) में वित्त और कार्मिक विभाग जिन आईएएस अफसरों के पास थे, वे इस सरकार में भी अब तक उन विभागों को संभाल रहे हैं। राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में पिछले 25-30 वर्षों में यह पहला मौका है, जब सरकार बदलने पर भी इन दोनों विभागों के प्रमुख आईएएस अफसरों को बदला नहीं गया है। दोनों विभाग शासन की रीढ़ माने जाते हैं। वित्त विभाग और कार्मिक विभाग को अब तक अखिल अरोड़ा और हेमंत गेरा संभाल रहे हैं।
6. एसीबी के रडार पर चल रहे अखिल अरोड़ा
वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अखिल अरोड़ा के खिलाफ आईटी विभाग में वॉल कियोस्क की खरीद के मामले में दर्ज केस में जांच शुरू करने की इजाजत एसीबी ने मांग रखी है। उनकी भूमिका के संबंध में आईटी विभाग के कमिश्नर इंद्रजीत सिंह भी अपनी रिपोर्ट दे चुके हैं। हालांकि सीएम ने अभी तक एसीबी को मंजूरी नहीं दी है। अरोड़ा ने ही पिछली कांग्रेस सरकार की सभी योजनाएं बनाई थीं और बजट तैयार किए थे। अरोड़ा ही इस सरकार का भी बजट (लेखानुदान) तैयार कर चुके हैं और अब विधानसभा में पेश किए जाने वाला पूर्ण बजट भी तैयार कर रहे हैं।
ब्यूरोक्रेसी के जानकारों का कहना है कि वित्त विभाग की कमान अक्सर हर सीएम उस अफसर के हाथों में देते हैं, जो उनके विश्वास का होता है। ऐसा हर सीएम के कार्यकाल में होता है। लेकिन अखिल अरोड़ा अभी तक उसी विभाग में बने हुए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि क्या भाजपा सरकार और उसके नेता उसी अफसर द्वारा बनाई गई पिछली कांग्रेस सरकार की योजनाओं, नीतियों और प्रोजेक्ट्स की आलोचना जनता के बीच कर पाएंगे?
7. प्रमुख सचिव की चुनाव ड्यूटी की गई थी निरस्त, सीएम को जाना पड़ा पम्प हाउस
जयपुर स्थित जलदाय विभाग के पम्प हाउस में निरीक्षण करते हुए सीएम भजनलाल शर्मा। प्रदेश में इन दिनों में गर्मी के कारण जलापूर्ति बुरी तरह से प्रभावित है।
राजस्थान में जलदाय विभाग सबसे महत्वपूर्ण विभाग माना जाता है, क्योंकि भीषण गर्मी में पानी की कमी एक बड़ी समस्या है। जलदाय विभाग संभाल रहे डॉ. समित शर्मा की लोकसभा चुनावों में तेलंगाना में ड्यूटी लग गई थी। राज्य सरकार के आग्रह पर उनकी ड्यूटी केन्द्रीय चुनाव आयोग ने निरस्त भी कर दी थी। राजस्थान में जल प्रबंधन के लिए समित शर्मा का होना जरूरी बताया गया, लेकिन इसी बीच मई माह में पूरे राजस्थान में जलापूर्ति लड़खड़ा गई।
प्रदेश भर में हाहाकार मच गया। डॉ. समित शर्मा की बजाय स्वयं सीएम भजनलाल शर्मा फील्ड में उतरे। वे जलदाय विभाग के पंप हाउस पहुंचे और 2 दिन में व्यवस्था ठीक करने के लिए चेताया। उसके बाद जलापूर्ति में सुधार हुआ।
ब्यूरोक्रेसी में भी पॉलिटिकल फॉर्मूला
भाजपा ने राजस्थान में सरकार बनाने के करीब 25 वर्षों बाद डिप्टी सीएम वाला पॉलिटिकल फाॅर्मूला अपनाया था। इससे पहले वर्ष 1990 से 1998 के बीच भैंरोसिंह शेखावत की सरकार में हरिशंकर भाभड़ा को डिप्टी सीएम बनाया गया था। इसके करीब 25 साल बाद भाजपा ने सरकार बनते ही दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को डिप्टी सीएम बनाया था। इसे ब्राह्मण सीएम के साथ दलित और राजपूत चेहरों की सोशल इंजीनियरिंग के तौर पर देखा गया।
भाजपा ने राजस्थान में ब्राह्मण सीएम के साथ एक राजपूत और एक दलित चेहरे के रूप में दीया कुमारी और डॉ. प्रेमचंद बैरवा को डिप्टी सीएम बनाया था।
सूत्रों का कहना है कि अब भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्तर पर इस बात पर विचार किया जा रहा है कि एससी-एसटी की पांच और जाट-मीणा-गुर्जर बहुल वाली 6 सीटों पर पार्टी की हार को ब्यूरोक्रेसी के माध्यम से कैसे ठीक किया जाए? चर्चा है कि पार्टी इन लोकसभा क्षेत्र से संबंधित जिलों व संभाग मुख्यालयों पर एसपी-कलेक्टर्स में इन्हीं जाति-समाज से आने वाले अफसरों को पोस्टिंग देने का विचार कर रही है।
कांग्रेस ने चुनाव के दौरान यह मुद्दा भी उठाया था कि भाजपा सरकारें ओबीसी और एससी-एसटी के आईएएस अफसरों को सेक्रेटरी जैसे बड़े पदों पर पोस्टिंग नहीं देती। अब जो नतीजे आए हैं उनमें देश भर में एससी-एसटी की सुरक्षित मानी जाने वाली 70 प्रतिशत सीटों पर बीजेपी चुनाव हार गई। राजस्थान में यह आंकड़ा करीब 80 प्रतिशत रहा है। ऐसे में यहां अब ब्यूरोक्रेसी के माध्यम से सोशल इंजीनियरिंग ठीक किए जाने पर विचार चल रहा है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
राजस्थान काडर से अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से रिटायर हुए आईएएस पीएन भंडारी कहते हैं कि ब्यूरोक्रेसी निष्पक्ष ही होती है, लेकिन इस में कोई शक नहीं कि वो शासन का चेहरा भी होती है। जिलों में दूर-दराज के गांव-कस्बों में बैठे आम लोग कलेक्टर को ही सरकार मानते हैं। ऐसे में कलेक्टर-एसपी जैसी पोस्ट पर बैठे लोग जो कुछ करते हैं उसका असर सरकार की इमेज पर पड़ता ही है। अगर वे अच्छे काम करते हैं तो सरकार के प्रति लोगों में अच्छी इमेज बनती है और खराब काम करने पर खराब इमेज बनती है। ऐसे में ब्यूरोक्रेसी में अगर कुछ कमियां नजर आ रही हैं, तो उन्हें ठीक किया ही जाना चाहिए। ब्यूरोक्रेसी की लापरवाही अक्सर सरकारों पर भारी पड़ जाती है।
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ का कहना है कि ब्यूरोक्रेसी एक घोड़े की तरह है। जैसा सवार होता है, वैसे ही घोड़ा चलता है। सवार बेहतरीन हो तो घोड़ा भी बेहतरीन भागता-दौड़ता है। सवार काबिल नहीं है तो घोड़ा उसे गिरा भी सकता है। राजस्थान में शिवचरण माथुर, हरिदेव जोशी, भैरोंसिंह शेखावत, अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे जैसे सीएम हुए हैं, जो इस घोड़े की सवारी जानते थे। वे उसका बेहतरीन उपयोग ले पाते थे। वर्तमान सवारों को भी ब्यूरोक्रेसी की घुड़सवारी आनी ही चाहिए।
रिटायर्ड आईएएस अफसर रविशंकर श्रीवास्तव का कहना है कि गुड गवर्नेंस के लिए पॉलिटिकल लीडरशिप को अपना रोडमैप बनाना चाहिए। उसे ब्यूरोक्रेसी को देकर टारगेट फिक्स कर अपना काम करना चाहिए, अन्यथा केवल ट्रांसफर-पोस्टिंग आदि से कभी अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो सकते हैं।
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