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रिलेशनशिप- अपनी पर्सनैलिटी को समझने का टूल है ‘जोहारी विंडो’:जानें अपनी वह ताकत और कमजोरी, जिसके बारे में आपको भी नहीं पता

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रिलेशनशिप- अपनी पर्सनैलिटी को समझने का टूल है ‘जोहारी विंडो’:जानें अपनी वह ताकत और कमजोरी, जिसके बारे में आपको भी नहीं पता

पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि हनुमान जी बचपन में काफी शक्तिशाली और नटखट भी थे। खेल-खेल में अक्सर ऋषि-मुनियों को तंग किया करते थे। ऐसे में एक दिन अंगिरावंशी ऋषि ने क्रोधित होकर उन्हें शक्तियां भूल जाने का शाप दे दिया।

हनुमान के पास यूं तो सारी शक्तियां मौजूद थीं, लेकिन उन्हें इसका एहसास नहीं होता था। जब कभी भी इसकी जरूरत होती, किसी को उन्हें उनकी शक्तियों के बारे में याद दिलाना पड़ता था। जब माता सीता की खोज के लिए समुद्र लांघने की बात आई तो हनुमान जी पीछे खड़े चुपचाप सब सुन रहे थे। लेकिन जैसे ही जामवंत ने उन्हें उनकी शक्तियों के बारे में बताया, हनुमान जी समुद्र पार कर लंका पहुंचे, सीता का पता लगाया और लंका को जला भी आए।

हनुमान जी की इस कहानी से हर कोई इससे रिलेट कर सकता है। हमारे भीतर भी कई ऐसी खूबियां और खामियां होती हैं, जिसके बारे में हमें खुद पता नहीं होता। यानी हममें सेल्फ अवेयरनेस की कमी होती है। हमें अपनी अच्छाई या बुराई का पता तब चलता है, जब हमें कोई टोकता है।

अब हनुमान जी की तरह हर किसी के पास शक्तियों की याद दिलाने के लिए जामवंत तो नहीं होता। इसलिए एक सजग और सेल्फ अवेयर एडल्ट के रूप में अपने लिए यह काम हमें खुद ही करना होता है।

हालांकि मनोवैज्ञानिकों और ह्यूमन माइंड पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों ने इसके लिए कुछ टूल्स विकसित किए हैं, जिनमें से एक है ‘जोहारी विंडो।’ इस मनोवैज्ञानिक खिड़की से झांककर आप खुद के बारे में बेहतर जा सकते हैं। अपनी खूबियां और कमियां बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।

क्या है जोहारी विंडो

मनोवैज्ञानिक जोसेफ लुफ्त और हैरिंगटन इंघम ने 1955 में यह मॉडल बनाया था। इन दोनों के फर्स्ट नेम को मिलाकर इस मॉडल को ‘जोहारी विंडो’ नाम से जाना जाने लगा। यह एक टूल था, जिसके लिए हम अपने जाहिर और छिपी हुई प्रतिभाओं का बेहतर विश्लेषण और आंकलन कर सकते हैं।

कैसे देखें अपना जोहारी विंडो

आइए इसके लिए एक छोटा-सा एक्सपेरिमेंट करते हैं-

हममें से हर किसी में कुछ खास नॉलेज, बिहेवियर, एटीट्यूड और स्किल होता है। जोहारी विंडो में ऐसी 55 आदतें गिनाई गई हैं। उदाहरण के लिए- सुनने की क्षमता, बोल्डनेस, दयालुता, खुशमिजाजी, प्यार, गुस्सा, शर्मीलापन, बुद्धिमत्ता, आत्ममुग्धता वगैरह।

अपनी ऐसी ही कुछ संभावित आदतों की एक लिस्ट बनाइए। ध्यान रहे कि इसमें पॉजिटिव और निगेटिव दोनों तरह की आदतें शामिल हो सकती हैं। अब इन संभावित आदतों को अपने कलीग्स, दोस्तों या पार्नटर के सामने रखिए और उनकी राय के आधार पर इन्हें नीचे बताए गए 4 एरियाज में बांटिए।

कलीग्स, दोस्त, पार्टनर और खुद की राय के आधार पर आपको अपनी पर्सनैलिटी के 4 एरियाज मिलेंगे। इनमें से कुछ बातें ऐसी होंगी, जिन्हें सिर्फ आप जानते होंगे। आपके बारे में कुछ ऐसी भी बातें संभव हैं, जो खुद आपको भी पता न हों, लेकिन कलीग्स, दोस्त या पार्टनर इससे वाकिफ हों।

कुछ बातें ऐसी भी होंगी, जिन्हें आप जमाने से छिपाकर रखते हैं और अंत में एकाध बातें ऐसी होंगी, जो न तो आपको पता है और न ही दुनिया को। लेकिन वह इच्छा आपके मन के किसी कोने में पड़ी जरूर है।

संभावित आदतों को 4 एरिया में बांटने के बाद आपका ‘जोहारी विंडो’ तैयारी हो जाता है। अपने जोहारी विंडो को रिव्यू कर आप समझ सकते हैं कि आपकी ताकत और कमजोरियां क्या हैं। सेल्फ अवेयरनेस बढ़ाने के लिए आपको क्या करने की जरूरत है।

इसे नीचे दिए ग्राफिक की मदद से समझ सकते हैं-

ओपन एरिया को बढ़ाएं, यह सेल्फ अवेयरनेस के लिए जरूरी

मनोवैज्ञानिक जोसेफ लुफ्त और हैरिंगटन इंघम अपने मॉडल में बताते हैं कि हमारा ओपन एरिया जितना बड़ा होगा, हमारी पर्सनैलिटी उतनी क्लियर और स्पष्ट होगी। हम कैसे हैं, क्या चाहते हैं, क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, इसके बारे में हमें खुद और हमारे आसपास के लोगों को भी पता हो तो हम अपने बारे में सबसे बढ़िया निर्णय ले सकते हैं। ऐसी स्थिति में हम पूरी तरह सेल्फ अवेयर होते हैं। पर्सनल और वर्कप्लेस रिलेशनशिप के लिए यह स्थिति काफी मुफीद मानी जाती है।

बड़ा है ब्लाइंड एरिया मतलब हम खुद से हैं अनजान

एक ऐसे शख्स की कल्पना करिए, जो खूब बातूनी हो। लेकिन कई बार वह दूसरों की भावनाएं समझ पाने में असमर्थ होता है। बोलते हुए दूसरों की सुनना पसंद नहीं करता। उसे ऐसा लगता है कि लोग उसकी बातों में खूब इंटरेस्ट ले रहे हैं। दूसरी ओर, लोगों की राय उसके बारे में बिल्कुल उलट है। वे उसकी बातों से बोर हो जाते हैं।

इस मामले में शख्स का ‘ब्लाइंड एरिया’ काफी बड़ा है। उसे खुद अपनी गलतियों का एहसास नहीं। यह स्थिति वर्कप्लेस और पर्सनल रिश्तों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। इसलिए जोसेफ लुफ्त और हैरिंगटन इंघम जहां तक संभव हो सके, अपनी पर्सनैलिटी से ‘ब्लाइंड एरिया’ को कम करने की सलाह देते हैं।

हिडेन एरिया जरूरी, लेकिन इसकी सीमा का रखें ख्याल

हिडेन एरिया का मतलब है, राज की ऐसी बातें जिसे हम जमाने से छिपाकर रखते हैं। जोहारी विंडो में इस एरिया को जरूरी बताया गया है। कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिसे खुद तक सीमित रखना ही बेहतर होता है। लेकिन अगर यह एरिया हद से ज्यादा बड़ा हो जाए तो दिल और दिमाग पर एक्स्ट्रा बोझ पड़ेगा। इसलिए बेहतर यही है कि ‘सेल्फ डिसक्लोजर’ की कला समझी जाए। कौन सी बात कब, कितनी और किसको बतानी है, इसकी जानकारी मददगार साबित हो सकती है।

अनुभव की कमी या रिस्क न लेने की वजह से बढ़ता अननोन एरिया

जिंदगी में कई ऐसे भी मौके आते हैं, जब हम खुद को ही भूल जाते हैं। संभव है कि कोई शख्स बचपन में खूब मजाकिया रहा हो, लेकिन जवानी तक आते-आते जिम्मेदारियों ने उसकी मुस्कान छीन ली हो। वह हंसना-हंसाना भूल गया हो। उसे खुद याद न रहे कि मैं कभी मजाकिया हुआ करता था। जोहारी विंडो में ऐसी ही आदतों को ‘हिडन एरिया’ में रखते हैं।

कई बार अनुभव की कमी या सुरक्षात्मक लहजे की वजह से भी लोग अपनी आदतों से नावाकिफ होते हैं। अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करने के लिए मन को टटोलना, अपने हिडेन एरिया और नए स्किल्स की खोज करना फायदेमंद साबित हो सकता है।

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