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19 करोड़ महिलाओं को गर्भाशय की यह बीमारी:जानकारी के अभाव में नहीं होता इलाज, कैसे रखें यूटेरस का ख्याल

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19 करोड़ महिलाओं को गर्भाशय की यह बीमारी:जानकारी के अभाव में नहीं होता इलाज, कैसे रखें यूटेरस का ख्याल

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक हमारे देश में इस वक्त तकरीबन 4.2 करोड़ महिलाएं एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis) से जूझ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक पूरी दुनिया में 10% यानी तकरीबन 19 करोड़ रीप्रोडक्टिव एज की महिलाओं को इसका सामना करना पड़ता है।

बहुत बार तो महिला को तो ये पता भी नहीं होता कि उसके शरीर में ये बीमारी पल रही है। पीरियड्स के दौरान हैवी ब्लीडिंग, पेट में असहनीय दर्द, क्रैम्प्स, पेल्विक पेन होने पर जब कोई महिला डॉक्टर के पास जाती है तो जांच के बाद इस बीमारी का पता चल पाता है।

हाल ही में ऐसा ही कुछ बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी की बहन शमिता शेट्टी के साथ हुआ। उनकी एंडोमेट्रियोसिस सर्जरी हुई है। सर्जरी से पहले शमिता ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक वीडियो शेयर कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने महिलाओं को यूटेरस की इस बीमारी से सावधान और जागरुक रहने की सलाह दी।

इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे एंडोमेट्रियोसिस की। साथ ही जानेंगे कि-

  • एंडोमेट्रियोसिस के लक्षण क्या हैं?
  • एंडोमेट्रियोसिस का इलाज और इससे बचने के उपाय क्या हैं?
  • महिलाएं अपने गर्भाशय का कैसे ख्याल रखें?

एंडोमेट्रियोसिस क्या है और यह क्यों होता है
कानपुर की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ति शुक्ला बताती हैं कि एंडोमेट्रियोसिस महिलाओं के यूटेरस (गर्भाशय) से जुड़ी बीमारी है। यूटेरस की लाइनिंग को एंडोमेट्रियम कहा जाता है। एंडोमेट्रियम पीरियड्स के दौरान हर महीने ब्लीडिंग के रूप में शरीर से बाहर निकलता है। लेकिन अगर किसी को एंडोमेट्रियोसिस हो जाए तो यह एंडोमेट्रियम उन जगहों पर बढ़ जाता है, जहां इसे नहीं बढ़ना चाहिए। जैसे अंडाशय (ओवरी), आंत और पेल्विक कैविटी टिशूज में। इसमें ब्लड बाहर निकलने की बजाय अंदर ट्यूब में ही जम जाता है, जिससे गर्भावस्था में मुश्किल पैदा हो सकती है।

कई हेल्थ स्टडीज से पता चला है कि पूरी दुनिया में हर 10 में से 1 महिला को एंडोमेट्रियोसिस है। यह बीमारी महिलाओं में बांझपन (इनफर्टिलिटी) का भी प्रमुख कारण है। इस परेशानी से जूझ रही महिला को कंसीव करने में मुश्किलें आ सकती हैं।

एंडोमेट्रियोसिस सोसाइटी ऑफ इंडिया के अनुसार, लगभग 2.5 करोड़ भारतीय महिलाओं को एंडोमेट्रियोसिस है। यह सबसे ज्यादा 30 से 45 साल की महिलाओं में होता है l

एंडोमेट्रियोसिस के लक्षणों में से एक पेल्विक पेन और इन्फर्टिलिटी
एंडोमेट्रियोसिस का प्रमुख लक्षण ये है कि इसमें पेल्विक पेन होता है। पेल्विक पेन का अर्थ है नाभि के नीचे पेट और कमर में दर्द। आमतौर पर ये दर्द पीरियड्स के समय, ओव्यूलेशन (जब एग ओवरीज से निकलकर फेलोपियन ट्यूब में आता है) के दौरान या यौन संबंध के समय होता है। यह दर्द हल्का या बहुत ज्यादा भी हो सकता है। साथ ही लगातार थकान और कमजोरी भी महसूस होती है।

नीचे ग्राफिक में देखिए एंडोमेट्रियोसिस के लक्षण-

भारत में आमतौर पर एंडोमेट्रियोसिस का पता अकसर दो ही स्थितियों में चलता है-

  • असहनीय पीरियड्स पेन होने पर
  • गर्भधारण न कर पाने पर

उसका कारण ये है कि एंडोमेट्रियोसिस में यूटेरस की दीवारों पर होने वाली अनयूजुअल टिशु ग्रोथ और ब्लड क्लॉट कम या ज्यादा कैसे भी हो सकते हैं। कई बार ब्लड क्लॉट कम होते हैं और दर्द बहुत ज्यादा होता है। कई बार ब्लड क्लॉट ज्यादा होने के बावजूद दर्द नहीं होता। हर महिला में इसके लक्षण अलग-अलग तरीके से प्रकट होते हैं।

लगभग 25 से 50% महिलाएं, जिन्हें गर्भधारण में समस्या आ रही हो, उन्हें यह समस्या होती हैl एंडोमेट्रियोसिस में गर्भाशय और ओवरीज के आसपास जो ब्लड जमा होता है, उसके कारण ओवरीज से अंडे रिलीज नहीं होते और फर्टिलाइजेशन नहीं हो पाता।

एंडोमेट्रियोसिस की चार स्टेज-

  • मिनिमल- इसकी सबसे पहली स्टेज मिनिमल होती है। इसमें पेट या पेल्विस के ऊपरी भाग के टिशू में छोटे-छोटे घाव हो जाते हैं।
  • माइल्ड- एंडोमेट्रियोसिस की दूसरी स्टेज में मिनिमल फेज से ज्यादा इम्प्लांट होते हैं। ये टिशू के भीतर भी गहरे होते हैं और घाव भी बनाते हैं।
  • मॉडरेट- इस फेज में छोटे-छोटे इम्प्लांट के साथ गहरे घाव होते हैं। ओवरी में सिस्ट बन जाते हैं। इसमें घाव और दर्द दोनों ज्यादा होता है।
  • सीवियर- इसमें एक या दोनों ओवरीज में बड़े-बड़े सिस्ट हो जाते हैं। ये सबसे दर्दनाक स्टेज होती है।

फैमिली हिस्ट्री भी हो सकती है एंडोमेट्रियोसिस का कारण
एंडोमेट्रियोसिस एक अर्बन (शहरी) बीमारी है। इसके ज्यादातर केस शहरों में ही देखने को मिल रहे हैं। नीचे दिए ग्राफिक में जानिए एंडोमेट्रियोसिस से जुड़े रिस्क फैक्टर-

एंडोमेट्रियोसिस का इलाज
एंडोमेट्रियोसिस का इलाज दवाइयों और लाइफ स्टाइल चेंज के जरिए मुमकिन है। गंभीर स्थिति में ही डॉक्टरी सर्जरी का सहारा लेते हैं।

एंडोमेट्रियोसिस से बचाव कैसे मुमकिन है
दुनिया की बाकी लाइफ स्टाइल डिजीज की तरह एंडोमेट्रियोसिस का भी सीधा संबंध इस बात से है कि हम कितना हेल्दी खाते हैं, कितना व्यायाम करते हैं, कैसे सोचते और महसूस करते हैं। यानी कुल मिलाकर हम अपनी जिंदगी में कितने खुश और तनावमुक्त हैं।

इसलिए इस बीमारी से बचने का सबसे सरल और बुनियादी उपाय है अपनी लाइफ स्टाइल में बदलाव।

नीचे ग्राफिक में देखें कि बचाव के लिए और खुद को हेल्दी रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। हालांकि इसमें कोई ऐसी बात नहीं है, जो अन्य बीमारियों या सामान्य तौर पर भी एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी न हो।

सामान्य तौर पर पूछे जाने वाले कॉमन सवाल-

सवाल- अगर एंडोमेट्रियोसिस (ब्लड क्लॉट और टिशु ग्रोथ) नहीं हटाया जाए तो क्या होगा?
जवाब
– यदि एंडोमेट्रियोसिस को हटाया नहीं जाता है तो यह दर्द, सूजन, पीरियड्स में हैवी ब्लीडिंग और पाचन संबंधी समस्या पैदा कर सकता है। एंडोमेट्रियोसिस ज्यादा बढ़ जाए तो शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है।

सवाल-क्या स्ट्रेस की वजह से भी एंडोमेट्रियोसिस होता है?
जवाब
– एंडोमेट्रियोसिस एक अर्बन डिजीज है, जो हमारी मॉर्डन लाइफ स्टाइल से जुड़ी है। स्ट्रेस भी कई बार इस बीमारी का कारण हो सकता है।

सवाल- PCOS और एंडोमेट्रियोसिस में क्या अंतर है?
जवाब
– ये दोनों बीमारियां लाइफस्टाइल डिसऑर्डर हैं। एंडोमेट्रियोसिस में गर्भाशय की परत जैसा दिखने वाला टिशू गर्भाशय के बाहर बढ़ जाता है, जिसमें ब्लड क्लॉट होते हैं, जबकि PCOS में महिला के हॉर्मोन लेवल प्रभावित होते हैं। ओवरी में सिस्ट बन जाते हैं, जिनमें पानी भर जाता है। PCOS में महिला के शरीर में मेल हॉर्मोन टेस्टेस्टेरॉन का लेवल भी बढ़ जाता है।

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