NATIONAL NEWS

‘कितना बदल चुका है साहित्य? विषयक साहित्य सम्मिलन संपन्न…

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare


नारीवादी साहित्य कोई अलग इकाई नहीं है – प्रतिभा राय
स्त्रीवादी साहित्य पुरुष विरोधी नहीं, पितृसत्ता को चुनौती देता है – महुआ माजी
हर हाथ में एक किताब होनी चाहिए – ममता कालिया

नई दिल्ली। 30 मई 2025; साहित्य अकादेमी और राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित साहित्यिक सम्मिलन के दूसरे दिन ‘कितना बदल गया है साहित्य?’ विषय पर तीन सत्रों में विचार-विमर्श हुआ। ‘भारत का स्त्रीवादी साहित्य: नए आधार’ विषयक सत्र की अध्यक्षता करते हुए ओड़िआ कथा लेखिका श्रीमती प्रतिभा राय ने कहा कि महिला लेखन की एक विशिष्ट आवाज़, विश्वदृष्टि और जीवन के प्रति दृष्टिकोण होता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि नारीवादी साहित्य कोई अलग इकाई नहीं है, बल्कि रचनात्मकता की एक विविध अभिव्यक्ति है। उन्होंने 15वीं सदी के ओड़िआ कवि बलराम दास के लक्ष्मी पुराण का उल्लेख करते हुए उन्हें भारत में नारीवादी साहित्य की नींव रखने का श्रेय दिया। इस सत्र के अन्य वक्तओं में शामिल थीं – अनामिका, अनुजा चंद्रमौली, महुआ माजी, निधि कुलपति, प्रीति शेनॉय एवं तमिळची थंगपांडियन।
हिंदी लेखिका अनामिका ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय नारीवादी साहित्य सीमाओं को आगे बढ़ा रहा है और रिश्तों को फिर से परिभाषित कर रहा है। तमिल लेखिका तमिळची थंगपांडियन ने भारत में पूर्वव्यापी और महत्वाकांक्षी मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें तमिल और द्रविड़ संदर्भों पर ध्यान केंद्रित किया गया। उनके तीन मुख्य बिंदु थे: कौन बोलता है, कौन बोला, और किसकी कहानियाँ नारीत्व को आकार देती हैं। अंग्रेजी लेखिका अनुजा चंद्रमौली ने कहा कि नारीवादी साहित्य ने सदियों की चुप्पी और सेंसरशिप को तोड़कर सांस्कृतिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया है। हिंदी लेखिका और सांसद महुआ माझी ने हिंदी साहित्य में महिलाओं के अभिव्यक्तिवादी और रचनात्मक लेखन की पड़ताल की, जिसमें नारीवाद के प्रमुख पहलुओं पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि महिलाओं के मुद्दों पर चर्चा पुरुष-विरोधी नहीं है, बल्कि पितृसत्तात्मक मूल्यों को चुनौती देती है। प्रख्यात मीडियाकर्मी निधि कुलपति ने कहा कि उन्हें लगता है कि समाज में महिला लेखन को शुरू में हाशिए पर धकेल दिया गया था, लेकिन समय के साथ इसका दायरा बढ़ा है। उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा, मन्नू भंडारी, शिवानी और कृष्णा सोबती जैसी अग्रणी लेखिकाओं ने इसकी नींव रखी। अंग्रेजी लेखिका प्रीति शेनॉय ने कहा कि लेखन के माध्यम से, महिलाएँ शक्ति को पुनः प्राप्त करती हैं, एक शांत क्रांति को जन्म देती हैं जो हर शब्द और हर आवाज़ के साथ बढ़ती हैं, यथास्थिति को चुनौती देती हैं और परिवर्तन को प्रेरित करती हैं।
‘साहित्य में परिवर्तन बनाम परिवर्तन का साहित्य’ पर केंद्रित सत्र की अध्यक्षता अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि यह सत्र सम्मिलन के मुख्य विषय पर केंद्रित है, जो साहित्य और परिवर्तन के परस्पर संबंधों को समझने-समझाने में कारगर रहा। भारतीय भाषाओं के साहित्य के अनुवाद के माध्यम से ही हमारे सामने बहुत से परिवर्तन स्पष्ट होते हैं। इस सत्र में गिरीश्वर मिश्र, ममता कालिया, रश्मि नार्ज़ारी, रीता कोठारी तथा यतींद्र मिश्र ने अपने विचार व्यक्त किए। प्रख्यात हिंदी विद्वान गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि साहित्य हमेशा अपने समय के यथार्थ को उसके परिवर्तनों के साथ अभिव्यक्त करता है। हिंदी की प्रख्यात लेखिका ममता कालिया ने कहा कि हम वैश्विक स्तर पर तथा तकनीकी स्तर पर हुए परिवर्तनों के साक्षी रहे हैं। इन परिवर्तनों ने साहित्य को गहरे प्रभावित किया है। श्री यतीन्द्र मिश्र ने कहा कि साहित्य में आधुनिकता का प्रश्न अक्सर इस तरह उठाया जाता है जैसे कि अगर लेखन या रचनात्मक कार्य आधुनिक नहीं है, तो उसका कोई मूल्य नहीं है, जैसे हर दूसरी चीज़ का होता है। अंग्रेजी लेखिका रश्मि नार्ज़ारी ने कहा कि साहित्य में परिवर्तन और परिवर्तन के साहित्य को एक दूसरे से अलग करके चर्चा नहीं की जा सकती। वे परस्पर निर्भर और अंतःक्रियात्मक हैं। अंग्रेजी लेखिका रीता कोठारी ने कहा कि साहित्य एक द्वंद्वात्मक संबंध में क्षणभंगुर और कालातीत को पकड़ता है, जो समय में गहराई से निहित है।
सम्मिलन का चतुर्थ सत्र ‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारतीय साहित्य की नई दिशाएँ’ विषय पर था, जिसकी अध्यक्षता अभय मोर्य ने की तथा इसमें डायाना मिकेविचिएने, किनफाम सिंग नोङकिनरिह, लक्ष्मी पुरी, नवतेज सरना एवं सुजाता प्रसाद ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए। प्रोफेसर मौर्य ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कि हर नए युग में, साहित्यिक लेखन के सामने नई चुनौतियाँ आती हैं। ऐसा फ्रांसीसी क्रांति के बाद हुआ, और 1917 में रूस में अक्टूबर क्रांति के बाद भी हुआ। उन्होंने आगे कहा कि 21वीं सदी भी साहित्य में नई लहरें पैदा कर रही है, खासकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा चिह्नित इलेक्ट्रॉनिक क्रांति के प्रभाव में। सत्र के अन्य वक्ताओं ने विशेषकर अंग्रेजी साहित्य के संदर्भ में भारतीय साहित्य में विषय और शैली की दृष्टि से उभरने वाली नई प्रवृत्तियों की ओर इशारा किया। विमर्श के अंत में, साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने समापन वक्तव्य देते हुए महिला लेखन को बढ़ावा देने और उनकी आवाज़ को बुलंद करने के लिए अकादेमी की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए उससे संबंधित अकादेमी की कार्य-योजनाओं पर प्रकाश डाला।
अंत में देवी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती के अवसर पर हिमांशु बाजपेयी तथा प्रज्ञा शर्मा द्वारा अहिल्याबाई गाथा की मनोरम प्रस्तुति की गई। प्रस्तुति से पहले संस्कृति मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव अमिता प्रसाद साराभाई और अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने दोनों का स्वागत किया । कार्यक्रम में अनेक प्रसिद्ध लेखक, विद्वान, मीडियाकर्मी और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!