जमीन के लिए पूर्व सीएम की बहू की जाति बदली:SC परिवार को आवंटित हुई थी करोड़ों की जमीन, प्रशासन ने खरीद को जायज ठहराया
जयपुर
यह जमीन जयपुर-आगरा हाईवे पर स्थित है।
अनुसूचित जाति की काश्त भूमि सामान्य वर्ग को नहीं बेची जा सकती है। लेकिन, मामला पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया के परिवार से जुड़ा हो तो दबाव में नतमस्तक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय व कानून के ऊंट को भी सुई के छेद से कई बार निकाल गए। करीब 13 साल में पटवारी, तहसीलदार से लेकर रेवेन्यू बोर्ड तक का सिस्टम इस गलती को सही ठहराने में जुटा रहा।
जयपुर कलेक्टर ने जमवारामगढ़ तहसीलदार को दो बार रिमाइंडर भेजकर रेवेन्यू बोर्ड के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने के निर्देश दिए, लेकिन तहसीलदार ने सामान्य वर्ग की खरीददार की जाति ही एससी दर्ज कर पूरे मामले को खत्म कर दिया। मामला जयपुर-आगरा नेशनल हाईवे पर राजाधोक टोल के पास स्थित करोड़ों की कीमत वाली 30 बीघा जमीन का है। अब यह जमीन आंधी पंचायत समिति के दौलतपुरा गांव में है। पहले यह जमवारामगढ़ तहसील क्षेत्र के अधीन था।
गौरतलब है कि भूमिहीन गरीब परिवारों को भूमि आवंटन सलाहकार समिति द्वारा तत्कालीन जमवारामगढ़ अब आंधी तहसील की धामस्या पंचायत निवासी भौरीलाल पुत्र रामसुखा बलाई, श्योनारायण बलाई व श्रीकिशन बलाई को 30 जून 1981 को खसरा नंबर 127/335 में 7 बीघा 10 बिस्वा प्रत्येक को आवंटित की गई थी। इन्हें नामांतरण संख्या 552, 553, 554 के द्वारा 4 नवंबर 2010 को खातेदारी अधिकार दिए गए। इस जमीन को पूर्व मुख्यमंत्री पहाड़िया के पुत्र संजय खरीदना चाहते थे। इसमें से साढे 22 बीघा जमीन पहले बनेसिंह बैरवा के नाम खरीदी गई और साढ़े सात बीघा सीधे खातेदारों से। यह जमीन संजय और उनकी पत्नी के नाम दर्ज कर दी गई। संजय खुद एससी से थे जबकि उनकी पत्नी सामान्य वर्ग से। शादी के बाद भी कानूनन पत्नी की जाति उनके पिता की ही रहेगी। राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की धारा 42 में स्पष्ट प्रावधान है की अनुसूचित जाति, जनजाति के व्यक्ति की खातेदारी भूमि को सामान्य या गैर अनुसूचित जाति, जनजाति के व्यक्ति को बेचान नहीं किया जा सकता। ऐसा बेचान, हस्तांतरण, गिफ्ट, वसीयत शून्य समझे जाएंगे।
बड़ा सवालः तहसीलदार ने जमाबंदी में नोट क्यों नहीं लगाया, अधिकारियों ने कानून की अनदेखी कैसे की?
पटवारी से लेकर रेवेन्यू बोर्ड तक के अधिकारी किस तरह मैनेज होते हैं, यह मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। तहसीलदार ने देर से ही सही लेकिन जब यह मान लिया कि आभा सामान्य वर्ग से है और उसके नाम एससी की जमीन किसी भी नियम में हस्तांतरित नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ऐसे कई मामलों में यह निर्णय दे चुका कि एससी की जमीन सामान्य वर्ग को ट्रांसफर नहीं हो सकती। बावजूद इसके जो मामला एसडीओ लेवल पर सिवायचक घोषित करने का था, वह रेवेन्यू बोर्ड तक खारिज होता रहा।
तत्कालीन तहसीलदार अगर इस मामले में जमाबंदी पर भी नोट लगाते तो गिफ्ट डीड से लेकर आगे तक इसका नामांतरण ही नहीं होता।
कलेक्टर ने तहसीलदार को दो बार हाईकोर्ट में अपील करने के लिए आदेश दिए, लेकिन जाति ही बदल दी
इस बीच संजय पहाड़िया की 31 दिसंबर 2018 को मृत्यु हो गई। मामला रेवेन्यू बोर्ड में चला गया। रेवेन्यू बोर्ड से खारिज होते ही तहसीलदार को इसकी अपील हाईकोर्ट में करनी थी। कलेक्टर ने दो बार अपील के लिए दस्तावेज भी मांगे। लेकिन तहसीलदार राकेश मीणा ने हाईकोर्ट में अपील नहीं की। दूसरी तरफ संजय पहाड़िया के वारिसों के तौर पर आभा, उनके पुत्र वरुण व वैभव के नाम 20 सितंबर 22 को नामांतरण कर दिया। इसमें आभा की जाति खटीक दर्ज कर दी गई। अपील नहीं हुई है।
दो माह बाद पता चला आभा सामान्य वर्ग से, एससी की जमीन नाम नहीं हो सकती तो गिफ्ट डीड करवा दी
पटवार मंडल, तहसील व सब रजिस्ट्रार तक को यह पता था कि संजय पहाड़िया की पत्नी आभा सामान्य वर्ग से है। जानते -बूझते तथ्य छिपाकर उन्होंने न केवल रजिस्ट्री की, बल्कि उसका नामांतरण तक खोल दिया। दो माह बाद मामला पंचायत में सार्वजनिक हुआ तो आभा ने 28 मार्च 2013 को अपने हिस्से की जमीन संजय को गिफ्ट डीड कर दी। इस गिफ्ट डीड का नामांतरण पंचायत 21 जुलाई 14 को कर दिया। करीब 15 महीने इस मामले को पंचायत दबाए रही। इसके बाद सरपंच ने बिना सुनवाई के तस्दीक कर दिया। टीनेंसी एक्ट के तहत यह भी गलत था, चूंकि पहले आभा के नाम की गई रजिस्ट्री ही कानूनन शून्य थी। ऐसे में न तो गिफ्ट डीड वैलिड था और न ही नामांतरण।
29 साल लग गए आवंटी की खातेदारी दर्ज होने में, पूर्व सीएम के बेटे ने खरीदी तो दौड़ती चलीं फाइलें
-राज्य सरकार ने 1981 में धामस्या पंचायत के श्योनारायण, भौंरीलाल, श्रीकिशन व भोला को प्रत्येक को साढ़े सात बीघा जमीन आवंटित की। कुल 30 बीघा।
-हाईवे की जमीनों की कीमतें बढ़ी तो इस पर कारोबारियों की नजर पड़ी। पहले 2010 में आवंटियों के वारिसों के नाम खातेदारी दर्ज करवाई गई।
-जगतपुरा निवासी बनेसिंह बैरवा ने तीन आवंटी श्योनारायण, श्रीकिशन व भौरीलाल के वारिसों से उनकी 22.5 बीघा जमीन खरीद ली। इनकी रजिस्ट्री 27 दिसंबर 2010 व 10 जनवरी 2011 को सब रजिस्ट्रार जयपुर-5 के यहां हुई। इनका नामांतरण 6 अप्रैल 2011 को बनेसिंह के नाम हो गया। बनेसिंह ने 3 मई 2011 को इस जमीन की रजिस्ट्री सब रजिस्ट्रार जमवारामगढ़ में संजय पुत्र जगन्नाथ पहाड़िया व आभा पत्नी संजय के नाम करवा दी।
-चौथे आवंटी भोलाराम के वारिसों ने 10 दिसंबर 2012 को जमवारामगढ़ सब रजिस्ट्रार के यहां अपनी साढ़े सात बीघा जमीन की रजिस्ट्री सीधे संजय पहाड़िया व आभा के नाम करवाई।
इस पूरी 30 बीघा जमीन का नामांतरण जनवरी 2013 में संजय व आभा के नाम हो गया। जमीन पर जेसीबी चलाई तो मामला खुला।
दो साल बाद शुरू की अवैध हस्तांतरण के खिलाफ सिवायचक की कार्यवाही
मामला संभागीय आयुक्त तक पहुंचा तो जांच एसडीओ बस्सी को सौंप दी गई। जांच में सामने आया कि एससी की जमीन का सामान्य वर्ग की महिला के नाम विक्रय-हस्तांतरण गलत है तो तत्कालीन जमवारामगढ़ तहसीलदार लक्ष्मीकांत कटारा ने सरकार की ओर से टीनेंसी एक्ट की धारा 175 के तहत जमीन को सिवाय चक घोषित करने के लिए एसडीओ जमवारामगढ़ के यहां प्रार्थना पत्र दायर किया।
दबाव में अफसर… मामला खारिज
तत्कालीन एसडीओ इंद्रजीत सिंह 1 फरवरी 2017 को सरकार का 175 का प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया। इसके बाद तत्कालीन तहसीलदार ज्ञानचंद जैमन ने राजस्व अपील अधिकारी जयपुर में एसडीओ के निर्णय के खिलाफ अपील की। लेकिन आरएए ने भी 28 दिसंबर 2018 को इसे खारिज कर दिया। इसकी अपील रेवेन्यू बोर्ड में की गई। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री के परिवार की करोड़ों रुपए से जुड़ी जमीन होने के कारण वहां से भी 19 मई 2022 को खारिज हो गई।
जमीन पर जेसीबी चली तो ग्रामीणों ने किया विरोध
राजाधोक टोल से करीब 500 मीटर दूर स्थित इस 30 बीघा जमीन का भाव अब करोड़ों में है। कुछ दिन पहले यहां जेसीबी मशीन चली तो ग्रामीणों को अधिकारियों की कारगुजारी का पता चला। ग्रामीणों ने अब मामले की शिकायत मुख्यमंत्री से की है।
जिन्हें अपील करनी थी, वे बोले, मामला संज्ञान में नहीं है मामला मेरी जानकारी में नहीं है। इस संबंध में कभी दिशा-निर्देश नहीं मिले। हो सकता है कि अपील के लिए पेंडिंग में चल रहा हो।
-राकेश मीणा, तहसीलदार, जमवारामगढ़
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