“पूजा गुप्ता”मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)(स्वरचित मौलिक लेख)
विवाह स्थल सजा था, सुंदर मनोरम दृश्य था,बेटी के फेरे को कुछ घंटे बाकी थे।
बेटी के माता पिता के चेहरे के रंग उड़े थे, वो विवाह स्थल के चारो और चिंता और निराशा लिए घूम रहे थे।
पंडित जी शादी की वेदी के पास बैठ फेरे के लिए लगने वाली सामग्री तैयार कर रहे थे। माता पिता का परिवार, समाज वाले विवाह स्थल में बैठे थे।
लगभग सब तैयारी थी लेकिन माता पिता एक कोने में जाकर रो रहे थे।
पंडित जी आते है माता पिता के पास_ “आपकी बेटी कहां है बुलाइए विवाह की तैयारी हो चुकी है !
माता पिता निशब्द पंडित जी की ओर देखते हुए कहते है- पंडित जी! शायद ही ये विवाह हो पाए।
पंडित जी अवाक!”क्यों मान्यवर! क्या हुआ!
पिता खुद को थोड़ा सहज करके कहते है
“पंडित जी! बेटी के ससुराल वाले ज्यादा दहेज मांग रहे है, जिस पर बात तय हुईं थी शायद उससे अधिक!”
पंडित जी बोले“कितना दहेज मांग रहे है !!” पिता बोले“उन्होंने सिर्फ ये कहा कि जरूरत से ज्यादा दहेज ले जायेंगे”!
पंडित जी सोच विचार के बाद बेटी के ससुराल वालो के पास माता पिता को साथ ले कर गए जो सामने कुर्सी लगाए बैठे थे।
पंडित जी बोले बेटी के ससुर से“आपने अत्यधिक दहेज की मांग क्यों किए”?? जब सब तय हो गया। बेटी के ससुर ने बेटी के माता पिता की सूरत से अंदाजा लगा लिया कि वो दोनो बेहद रोए है वो हँसकर उठे और जोर से हंसने लगे। पंडित जी और माता पिता सभी अवाक! ससुर बोले“सुनो! समधी जी और समधन जी!मैं जिस दहेज की बात कर रहा था वो आपकी बेटी है! वही जरूरत से ज्यादा धन है मेरे लिए! मुझे आपके पैसे नही, बल्कि बेटी के रूप में धन चाहिए बस उसी को ले जाऊंगा बेटी बनाऊंगा!”
माता पिता आश्चर्य से ससुर को देखते रहे…
बस! माता पिता आंखों में खुशी के”आंसू और सुकून”था।
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