शीर्षक :- बेटी ङक समान
बेटी घर की शान है,बेटा कुल का मान।
माँ ने दोनों ही जने, दोनों कुल की खान।।
दोनों कुल की खान , मोतियाँ बनके निकले ।
रखना धैर्य सदैव,तभी बनते हैं विरले।।
बेटी पढ़तीं खूब, खाट पर रहे न लेटी।
बेटा तारा नैन, ज्योति उसकी है बेटी।।
शिक्षा उत्तम दीजिए ,बेटी को ये मान ।
बेटों से यह कम नहीं, देते रहिए ज्ञान।।
देते रहिए ज्ञान, प्यार से इनको पालो।
दो समुचित सम्मान ,संस्कार सुंदर डालो।।
करो नहीं तुम भेद, नहीं लो कभी परीक्षा ।
बेटा बेटी शान ,इन्हें सम ही दो शिक्षा।।
बेटी शक्ति स्वरूप है, निश्चित रखिए ध्यान।
नौ दुर्गा साक्षात हैं, सदा करो सम्मान।।
सदा करो सम्मान ,मान की प्रबल पिटारी।
बेटी बहना वाम, और बनती महतारी।।
सीमा में रह नित्य,करो मत इसकी हेटी।
नौ कन्या के हेतु ,कहाँ पाओगे बेटी।।
बेटी रानी लक्ष्मी, औ रजिया सुल्तान।
जीजा, पन्ना धाय का, अमर हुआ बलिदान।।
अमर हुआ बलिदान सती सावित्री सीता।
लिया सूर्य रथ रोक, सती शैव्या परिणीता।।
सीमा तोड़ी मित्र, बचे नहि धन की पेटी।
बनो अपाला आज, सतीअनुसुइया बेटी।।
कवयित्री
डॉ गीता पांडेय”अपराजिता” “रायबरेली , उत्तरप्रदेश”









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