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गरिमा शृंगारी, सूरतगढ़ जिला गंगानगर


एक सुंदर सी साड़ी, माथे पर सुहाग का निशान
क्या बस यही है, उसकी पहचान
ऑफिस की जिम्मेदारियाँ, घर का काम; क्या इतना ही है, उसके जीवन का दाम साज शृंगार कर कुछ पोज देना;
चार अपनी और दो सहेलियों संग सेल्फी लेना
वो नहीं जानती बेबाकी से अपनी बात बोलना; अपने दिल के पन्नों की बंद किताब खोलना
नहीं समझ आता उसे पुरुषों का बनाया हुआ समाज; और थोप देता है उस पर अपने बनाए रीति-रिवाज क्यूँकि वो जानती है, छोटी सी बात पर खुश होना; और जरा सी डांट पर रो देना
‘जाने कब वो समझेगी कि वो अब नहीं है नादान; और उसे अब चाहिए अपने हिस्से का पूरा आसमान जिस दिन वो समझेगी अपने जीवन की महत्ता; सच में उसी दिन होगी ‘विश्व महिला दिवस’ की सार्थकता।

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