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राजस्थान में चीन-पाक हथियारों की घुसपैठ नाकाम मिले ‘HQ-9E’ , FD2000 मिसाइल के
अवशेष : विशेषज्ञों ने कहा- पाकिस्तान के ‘फुस्स हथियार’ बेअसर भारत की सीमा पर पाकिस्तान की चीन-निर्मित विफल घुसपैठ का पर्दाफाश

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China-Pak weapons infiltration in Rajasthan foiled, remains of 'HQ-9E', FD2000 missile found

BY DEFENCE JOURNALIST SAHIL

बीकानेर से जैसलमेर तक मिसाइल मलबा मिलने की घटनाएं बढ़ीं, प्रारंभिक जांच में चीनी निर्माण की पुष्टि, अमेरिकी कंपोनेंट्स की मौजूदगी भी सामने आई

मलबे से मिले संकेत: HQ-9E या A-100E जैसी चीनी प्रणाली की ओर इशारा

जांच में मिले बूस्टर सेक्शन, नोज़ कोन और इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स इस ओर संकेत करते हैं कि यह मलबा चीनी-निर्मित मिसाइल प्रणाली का हिस्सा है। मिसाइल के कोन के आकार वाले हिस्से में गाइडेंस से जुड़े सर्किट बोर्ड्स, वायरिंग और “Cornell Dubilier” जैसे अमेरिकी ब्रांड के कंपोनेंट्स पाए गए। इससे स्पष्ट होता है कि मिसाइल में विदेशी, विशेषकर अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल किया गया है—संभवतः चीन द्वारा ब्लैक मार्केट से खरीदे गए या रिवर्स-इंजीनियर किए गए।

संभावित सिस्टम: HQ-9E या A-100E MLRS

इस मलबे की संरचना, रंग और टेक्सचर HQ-9E मिसाइल या उसके एक्सपोर्ट वर्ज़न FD-2000 के बूस्टर सेक्शन से मेल खाते हैं। वहीं, कुछ हिस्से Weishi WS-2/WS-3 MLRS रॉकेट्स या पाकिस्तान द्वारा चीन से लिए गए A-100E मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम से भी संबंधित हो सकते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार:

  • लंबा काला सिलिंडरनुमा ढांचा
  • वायरिंग और रियर थ्रस्ट नोज़ल की उपस्थिति
  • guidance section से जुड़े सर्किट बोर्ड्स

ये सभी संकेत tactical या short-range मिसाइल सिस्टम की ओर इशारा करते हैं। विशेषताएं HQ-9E से मेल खाती हैं, जो कि एक लंबी दूरी की surface-to-air मिसाइल प्रणाली है।


क्या था HQ-9E? पाकिस्तान क्यों इसका उपयोग कर रहा है?

HQ-9E चीन की एक आधुनिक surface-to-air missile प्रणाली है, जिसकी रेंज 200–300 किमी तक हो सकती है। इसका उद्देश्य दुश्मन के एयरक्राफ्ट, UAVs, क्रूज़ मिसाइल और कुछ हद तक बैलिस्टिक मिसाइल्स को मार गिराना है। पाकिस्तान ने पिछले वर्षों में FD-2000E (HQ-9E का एक्सपोर्ट वर्ज़न) का परीक्षण किया है और इसे अपने एयर डिफेंस नेटवर्क में शामिल किया है।

चीन-पाक गठजोड़ का नया सबूत

राजस्थान में मिले मलबे चीनी सैन्य तकनीक के पाकिस्तानी इस्तेमाल का खुला सबूत हैं। यह घटनाएं स्पष्ट संकेत देती हैं कि पाकिस्तान न केवल चीन की रक्षा प्रणालियों को अपने शस्त्रागार में शामिल कर चुका है, बल्कि अब उनका उपयोग भारत की सीमाओं के समीप सक्रिय रूप से कर रहा है—चाहे वह surveillance के लिए हो या strike capability का परीक्षण।

भारत की सतर्कता से असफल हुई घुसपैठ

अब तक की घटनाओं से यह भी साफ होता है कि ये मिसाइलें या तो मार्गदर्शन में विफल रहीं या भारतीय वायुसेना और थलसेना की सतर्कता के कारण लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही निष्क्रिय हो गईं। सुरक्षा विशेषज्ञ इसे “pre-emptive neutralisation” मान रहे हैं—जहां भारतीय प्रणाली दुश्मन की मिसाइल को सीमा पार करने से पहले ही fail होने पर मजबूर कर देती है।

तस्वीर में दिखाई दे रहा मलबा एक मिसाइल के बूस्टर सेक्शन जैसा प्रतीत होता है, लेकिन केवल इस आधार पर यह सुनिश्चित करना मुश्किल है कि यह HQ-9E है या कोई और मिसाइल प्रणाली। फिर भी, कुछ अहम बिंदु जो ध्यान देने योग्य हैं:


प्रारंभिक अवलोकन:

आकार और संरचना:

यह एक ठोस ईंधन बूस्टर जैसा दिखता है, लंबा सिलिंडरनुमा ढांचा है।

पिछले हिस्से में रिंग संरचना और संभावित नोजल दिखाई दे रहा है, जो बूस्ट स्टेज की पहचान हो सकती है।

रंग और टेक्सचर:

HQ-9E और इसकी एक्सपोर्ट वर्ज़न FD-2000 आमतौर पर काले/गहरे रंग के बूस्टर का उपयोग करते हैं, जो इससे मेल खाता है।

  • परिस्थिति और लोकेशन:
  • अगर यह राजस्थान या भारत-पाक बॉर्डर क्षेत्र में मिला है, तो यह पाकिस्तानी सेना या पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) से जुड़ी किसी मिसाइल प्रणाली का हिस्सा हो सकता है, जैसे कि HQ-9E/FD-2000।

HQ-9E की संरचना से तुलना:

विशेषताHQ-9Eतस्वीर में वस्तु
रंगकाला/गहरामेल खाता है
बूस्टर आकारलंबा और मोटा सिलेंडरमेल खाता है
रियर थ्रस्ट/नोजल रिंगहोता हैमौजूद है
किसी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक्स या वायरिंगकभी-कभी दिखाई देती हैकुछ आंशिक वायरिंग दिखती है

स्थानीय प्रतिक्रिया: सेना के साथ खड़े ग्रामीण

बीकानेर के कालू गांव, जैसलमेर के पोखरण क्षेत्र और श्रीगंगानगर के हिंदूमलकोट जैसे क्षेत्रों में हुए इन घटनाओं के बाद ग्रामीणों ने स्पष्ट संदेश दिया—“हम पाकिस्तान की कायराना हरकतों से डरने वाले नहीं हैं, हम सेना के साथ हैं।”

ग्रामीणों की सतर्कता और त्वरित सूचना देने की वजह से समय रहते इन मिसाइल अवशेषों की पहचान हो सकी और सुरक्षा एजेंसियां हरकत में आ सकीं।

पहली छवि (लंबा काला सिलेंडरनुमा ढांचा):

यह रॉकेट या मिसाइल का बूस्टर/मोटर सेक्शन प्रतीत होता है। आकार, रंग और डिज़ाइन से यह MLRS (Multiple Launch Rocket System) या SRBM (Short-Range Ballistic Missile) का हिस्सा हो सकता है। यह किसी पाकिस्तानी या चीनी रॉकेट सिस्टम से संबंधित लगता है।


दूसरी छवि (कोन के आकार का हिस्सा):

यह हिस्सा मिसाइल का नोज कोन प्रतीत होता है, जो आमतौर पर वारहेड या नेविगेशन सिस्टम को कवर करता है। नीचे लगे इलेक्ट्रॉनिक घटक (gyroscopes, connectors) इसे guidance section का हिस्सा दर्शाते हैं।


तीसरी और चौथी छवि (सर्किट बोर्ड्स):

इनपर दो महत्वपूर्ण जानकारियाँ दिखती हैं:

“Cornell Dubilier Flatpack”: यह एक अमेरिकी कंपनी का capacitor है, जो ये दर्शाता है कि मिसाइल में कुछ अमेरिकी मूल के electronic components शामिल हैं। इससे यह स्पष्ट नहीं होता कि पूरी प्रणाली अमेरिकी है — चीन भी अक्सर ऐसे components का reverse engineering या black market procurement करता है।

Labels जैसे “UCP-330”, “PS28”, “DATE: 22/21” ये production codes हैं जो मिसाइल या ड्रोन के electronics सिस्टम को ट्रैक करने में सहायक हो सकते हैं।


संभावित मिसाइल की पहचान:

तस्वीरों और components के आधार पर यह बहुत हद तक एक चाइनीज Weishi WS-2 या WS-3A MLRS रॉकेट, या फिर Pakistan का A-100E (जो चीन से लिया गया है), हो सकता है। ये रॉकेट्स अक्सर Balochistan और Sindh से भारत की ओर लॉन्च किए जाते हैं। इसमें इस्तेमाल होने वाले कुछ imported components, चीनी उत्पादन में आम बात है।


निष्कर्ष: पाकिस्तान की विफल मिसाइल रणनीति और भारत की बढ़ती निर्णायक क्षमता

राजस्थान में मिले मिसाइल अवशेष चीन और पाकिस्तान के बीच हो रहे गुप्त सैन्य सहयोग का खुलासा करते हैं। पाकिस्तान, जो खुद indigenous सैन्य उत्पादन में पिछड़ा है, अब पूरी तरह से चीनी सिस्टम्स पर निर्भर होता जा रहा है। लेकिन भारत की आंतरिक निगरानी प्रणाली, स्थानीय खुफिया नेटवर्क और सीमावर्ती इलाकों में लोगों की सतर्कता के कारण यह रणनीति बार-बार असफल हो रही है।

अब सवाल यह उठता है: क्या यह केवल परीक्षण थे या एक बड़ी योजना का हिस्सा? क्या पाकिस्तान इन प्रणालियों को भारत की एयर डिफेंस को भेदने के लिए आज़मा रहा है? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या अगली बार ये मिसाइलें केवल गिरेंगी या हमला करने आएंगी?

इन सवालों के जवाब रक्षा मंत्रालय की आधिकारिक जांच और ट्रैकिंग रिपोर्ट्स से ही सामने आएंगे। लेकिन एक बात स्पष्ट है—भारत अब न केवल दुश्मन की चालों को समझ रहा है, बल्कि उन्हें रोकने की हर आवश्यक तैयारी भी कर चुका है।


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