CAPF: UPS से अर्धसैनिक बलों को OPS मिलने की उम्मीद टूटी, क्या अब सीएपीएफ को ‘संघ का सशस्त्र बल’ मानेगी सरकार?
जानकारों का कहना है कि सीएपीएफ पर भारतीय सेना के कानून लागू होते हैं, फोर्स के नियंत्रण का आधार भी सशस्त्र बल है। इन बलों के लिए जो सर्विस रूल्स तैयार किए गए हैं, उनका आधार भी फौज है। इन सारी बातों के होते हुए भी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को ‘पुरानी पेंशन’ से वंचित किया गया है।
केंद्र सरकार ने नई पेंशन व्यवस्था ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) लागू करने की घोषणा कर दी है। अगले वर्ष पहली अप्रैल से यूपीएस, अस्तित्व में आ जाएगी। केंद्र एवं राज्यों के अनेक कर्मचारी संगठन, इस नई पेंशन व्यवस्था को छल बता रहे हैं। उन्होंने इसके खिलाफ विरोध का बिगुल बजा दिया है। हालांकि केंद्र में स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने यूपीएस के लिए प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया है। कैबिनेट की मीटिंग और उसके बाद हुई ब्रीफिंग में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई।
इन बलों में ‘पुरानी पेंशन’ बहाली का केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। अब यूपीएस के आने से इन बलों में ओपीएस लागू की उम्मीद टूट सी गई है। वजह, केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह बात कह सकती है कि ये बल भी अन्य कर्मचारियों की तरह यूपीएस के दायरे में आएंगे। यहां पर एक पेंच फिर भी फंसा रहेगा कि सरकार, सीएपीएफ को ‘संघ के सशस्त्र बल’ मानेगी या नहीं। दिल्ली हाईकोर्ट और खुद इन बलों का एक्ट यह बात मानता है कि सीएपीएफ ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं। अगर सरकार भी सर्वोच्च अदालत में यह बात मान लेगी कि हां ये ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं तो इन्हें ओपीएस देना पड़ेगा।
बता दें कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में ‘पुरानी पेंशन’ बहाली का केस सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। केस का आधार केवल एक ही है कि ये बल ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं या नहीं। केंद्र सरकार ने आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को ही ‘संघ के सशस्त्र बल’ माना है। इसी के चलते इन बलों में ओपीएस लागू है। पिछले दिनों सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस निर्देश पर अंतरिम रोक लगाने की पुष्टि की है, जिसमें पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस), सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के अनुसार, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों/केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कर्मियों पर भी लागू होने की बात कही गई थी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए भारत संघ को अनुमति देते हुए यह आदेश पारित किया था। याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष ‘समानता’ का यह पक्ष रखा था कि जब ‘संघ के सशस्त्र बल’ आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को ओपीएस मिल रही है तो सीएपीएफ को भी मिले। वजह, ये बल भी ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं।
सीएपीएफ के 11 लाख जवानों/अफसरों ने गत वर्ष ‘पुरानी पेंशन’ बहाली के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। जब केंद्र सरकार ने स्टे लिया, तभी यह बात साफ हो गई थी कि सरकार ‘सीएपीएफ’ को पुरानी पेंशन के दायरे में नहीं लाना चाहती। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी 2023 को दिए अपने एक अहम फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ को ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ माना था।
दूसरी तरफ केंद्र सरकार, सीएपीएफ को सिविलियन फोर्स बताती है। हाईकोर्ट ने इन बलों में लागू ‘एनपीएस’ को स्ट्राइक डाउन करने की बात कही। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, चाहे कोई आज इन बलों में भर्ती हुआ हो, पहले कभी भर्ती हुआ हो या आने वाले समय में भर्ती होगा, सभी जवान और अधिकारी, पुरानी पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। स्टे के चलते ये फैसला लागू नहीं हो सका।
जानकारों का कहना है कि सीएपीएफ पर भारतीय सेना के कानून लागू होते हैं, फोर्स के नियंत्रण का आधार भी सशस्त्र बल है। इन बलों के लिए जो सर्विस रूल्स तैयार किए गए हैं, उनका आधार भी फौज है। इन सारी बातों के होते हुए भी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को ‘पुरानी पेंशन’ से वंचित किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय भी यह मान चुका है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीएपीएफ’, ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं। केंद्र सरकार, कई मामलों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को सशस्त्र बल मानने को तैयार नहीं होती। सीएपीएफ में पुरानी पेंशन का मुद्दा भी इसी चक्कर में फंसा हुआ है। एक जनवरी 2004 के बाद केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती हुए सभी कर्मियों को पुरानी पेंशन के दायरे से बाहर कर उन्हें ‘एनपीएस’ में शामिल कर दिया गया। इसी तर्ज पर सीएपीएफ जवानों को सिविल कर्मचारी मानकर उन्हें भी एनपीएस में शामिल कर दिया।
तब केंद्र सरकार का मानना था कि देश में सेना, नेवी और वायु सेना ही ‘सशस्त्र बल’ हैं। बीएसएफ एक्ट 1968 में कहा गया है कि इस बल का गठन ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ के रूप में हुआ है। इसी तरह सीएपीएफ के बाकी बलों का गठन भी भारत संघ के सशस्त्र बलों के रूप में हुआ है। कोर्ट ने माना है कि ‘सीएपीएफ’ भी भारत के सशस्त्र बलों में शामिल हैं। इस लिहाज से उन पर ‘एनपीएस’ लागू नहीं होता है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 6 अगस्त 2004 को जारी पत्र में घोषित किया गया है कि गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत केंद्रीय बल, ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में फौजी महकमे वाले सभी कानून लागू होते हैं। सरकार खुद मान चुकी है कि ये बल तो भारत संघ के सशस्त्र बल हैं। इन्हें अलाउंस भी सशस्त्र बलों की तर्ज पर मिलते हैं। इन बलों में कोर्ट मार्शल का भी प्रावधान है। इस मामले में सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। अगर इन्हें सिविलियन मानते हैं तो आर्मी की तर्ज पर बाकी प्रावधान क्यों हैं। फोर्स के नियंत्रण का आधार भी सशस्त्र बल है। जो सर्विस रूल्स हैं, वे भी सैन्य बलों की तर्ज पर बने हैं। अब सरकार इन्हें सिविलियन फोर्स बता रही है। ऐसे में ये बल अपनी सर्विस का निष्पादन कैसे करेंगे। इन बलों को शपथ दिलाई गई थी कि इन्हें जल, थल और वायु में जहां भी भेजा जाएगा, ये वहीं पर काम करेंगे। सिविल महकमे के कर्मी तो ऐसी शपथ नहीं लेते हैं। अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें
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