एम्स्टर्डम में पारम्परिक सूरीनामी रीति-रिवाजों के साथ होलिका पूजन संपन्न
अश्विनी केगांवकर, एम्स्टर्डम
एम्स्टर्डम, 14 मार्च 2025
नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम में 13 मार्च को भव्य रूप से होलिका पूजन एवं दहन संपन्न हुआ। इस बार का आयोजन विशेष रूप से चर्चित रहा, क्योंकि इसे पारम्परिक सूरीनामी हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार मनाया गया। नीदरलैंड में रहने वाले भारतीय मूल के सूरीनामी समुदाय के लोगों ने इस आयोजन में पूरे हर्षोल्लास के साथ भाग लिया और इसे भारतीय संस्कृति के अनुरूप धार्मिक विधियों के साथ संपन्न किया।
शुभारंभ हुआ भव्य जुलूस के साथ
एम्स्टर्डम के बाल्मेर क्षेत्र में शाम 6:30 बजे (स्थानीय समयानुसार) होलिका पूजन का शुभारंभ हुआ। इस मौके पर एक अनोखी परंपरा देखने को मिली, जिसमें प्रवासी भारतीयों और सूरीनामी समुदाय के लोगों ने हाथों में जलती हुई मशालें लेकर एक भव्य जुलूस निकाला।
यह जुलूस एम्स्टर्डम के “लक्ष्मी हिन्दू विद्यालय” से शुरू हुआ। जुलूस के दौरान प्रतिभागियों ने सरनामी (सूरीनामी-हिन्दी) भाषा में पारम्परिक होली गीत गाए और भक्त प्रह्लाद की जयजयकार की। भक्तगण भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति भी कर रहे थे, जिससे वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो गया। नीदरलैंड की सर्द जलवायु के बीच भारतीय संस्कृति की गर्माहट इस जुलूस में स्पष्ट रूप से झलक रही थी।
सूरीनामी ढोलक की थाप पर गूंजे होली के गीत
जुलूस के दौरान सूरीनामी समुदाय के लोग पारंपरिक सूरीनामी ढोलक के साथ होली के गीत गाते हुए आगे बढ़े। उनकी यह संगीतमय प्रस्तुति न केवल भारतीय मूल के लोगों को बल्कि अन्य स्थानीय निवासियों और राहगीरों को भी आकर्षित कर रही थी। मार्ग में गुजर रहे कई लोग इस उत्सव में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए और कुछ ने जुलूस में शामिल होकर इसकी भव्यता को और भी बढ़ाया।
शीतल मौसम में भी धार्मिक उत्साह की गर्माहट
रात 7 बजे के करीब जुलूस होलिका दहन स्थल पर पहुँचा। एम्स्टर्डम की सर्दी उस समय चरम पर थी और तापमान लगभग शून्य डिग्री तक पहुंच चुका था, लेकिन श्रद्धालुओं के उत्साह में कोई कमी नहीं थी। जैसे ही मंत्रोच्चारण के साथ होलिका पूजन शुरू हुआ, माहौल पूरी तरह से आध्यात्मिक हो गया।
सूरीनामी समुदाय के विद्वानों और पुजारियों ने विशेष मंत्रों का उच्चारण किया, जिससे वातावरण पूरी तरह धार्मिक आस्था से भर उठा। मंत्रोच्चारण के बीच अग्नि प्रज्ज्वलित की गई और होलिका दहन विधिपूर्वक संपन्न हुआ।
होलिका दहन के बाद “फगुआ” और “चौताल” की धुनें
होलिका दहन के बाद पारंपरिक फगुआ उत्सव मनाया गया। आयोजकों के अनुसार, सूरीनामी हिन्दू परंपरा के अनुसार अगले दिन होलिका की बची हुई राख (धूल) को मंत्रोच्चारण के साथ उड़ाया जाता है, जिसे “फगुआ” कहते हैं।
इस अवसर पर “चौताल” गाने की भी परंपरा है। चौताल एक चार पद की पारंपरिक धुन होती है, जिसे उत्सव के दौरान विशेष रूप से गाया जाता है। इसके साथ ही “ऊलारा” भी गाया गया, जो होली उत्सव का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन गीतों के माध्यम से प्रवासी भारतीयों और सूरीनामी समुदाय के लोगों ने अपनी पारम्परिक सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव का अहसास किया।
35 वर्षों से जारी है यह परंपरा
इस पूरे आयोजन के मुख्य आयोजक आदरणीय श्री नानकु जी ने बताया कि वे पिछले 35 वर्षों से नीदरलैंड में इस आयोजन को करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस तरह के आयोजन की पूर्व तैयारी में काफी मेहनत लगती है और विभिन्न सरकारी विभागों से आवश्यक अनुमतियाँ लेनी पड़ती हैं।
उन्होंने कहा, “हमारे पूर्वज सूरीनाम से यहां आकर बसे थे, लेकिन हमने अपनी संस्कृति, परंपरा और त्योहारों को हमेशा जीवंत रखा है। यह आयोजन हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखने में मदद करता है। होली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।”
भारतीय संस्कृति की झलक विदेश में
इस पूरे आयोजन ने यह साबित कर दिया कि भारत की संस्कृति और त्योहारों की आभा सीमाओं से परे है। एम्स्टर्डम की गलियों में गूंजती जय श्रीकृष्ण और भक्त प्रह्लाद की जय की ध्वनि ने वहां के माहौल को पूरी तरह भारतीय बना दिया था।
सूरीनामी हिन्दू समुदाय द्वारा आयोजित इस अनूठे होलिका दहन उत्सव ने नीदरलैंड में भारतीय संस्कृति की भव्यता और जीवंतता को एक बार फिर से स्थापित किया।
(अश्विनी केगांवकर की विशेष रिपोर्ट, एम्स्टर्डम से)
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