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दिल के जज्बात और धन की उलझन पर लेखिका डा. राजमती पोखरना सुराना की नई रचना

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दिल के जज्बात और धन की उलझन पर लेखिका डा. राजमती पोखरना सुराना की नई रचना

भीलवाड़ा, राजस्थान – मशहूर लेखिका डा. राजमती पोखरना सुराना ने अपनी नवीनतम काव्य रचना में दिल और धन के जटिल रिश्तों पर गहरा प्रकाश डाला है। उनकी इस रचना में दिल के भावनात्मक खेल, प्रेम की जटिलताएँ और धन की महत्वता को लेकर सवाल उठाए गए हैं।

दिल तुम पर  ही   आता क्यों है,
सामने हो तुम शरमाता क्यों है।

पागल है नादान थोड़ा-थोड़ा सा,
दिल का हाल नहीं बताता क्यों है ।

हो जाए इश्क तो साझा कर लेना,
तुम्हें अपना बनाना सुहाता क्यों है।

तू ही मेरी पहचान तू ही चाहत है,
अपनी चाहत को इतना नचाता क्यों है।

धन-दौलत तो बस मेरा प्यार है मेरा,
तो फिर इतनी दौलत कमाता क्यों है।

मुझे अपने दिल का आशियाना बना,
मेरे दर पर आकर फ़िर जाता क्यों है।

जब इश्क तुमको कभी पचा ही नहीं,
फ़िर भी उसे स्वाद ले  खाता क्यों है।।

मुख्य बिंदु:

  1. दिल की दुविधा: कवि ने अपने पहले शेर में दिल की शरम और इश्क की खामोशी को शब्दों में ढाला है। दिल के सामने आने पर शरमाने और अपनी भावनाओं को न बताने की वजह को वे समझना चाहती हैं।
  2. प्रेम का साझा: कवि की पंक्तियों में यह स्पष्ट है कि इश्क को साझा करने की बात की गई है और प्रेम को अपनाने की इच्छा जताई गई है।
  3. धन की आलोचना: कवि ने धन और प्यार के बीच संतुलन की बात की है। उन्होंने यह प्रश्न उठाया है कि अगर प्यार सबसे महत्वपूर्ण है तो इतनी दौलत क्यों कमाई जा रही है।
  4. दिल का आशियाना: कविता में प्रेम की अनदेखी और दिल के घर को बनाने की इच्छा व्यक्त की गई है, और यह सवाल उठाया गया है कि प्रेम को अनदेखा क्यों किया जाता है जबकि उसे खाया भी जाता है।

डा. राजमती पोखरना सुराना की यह काव्य रचना भावनात्मक गहराई और धन के प्रति समाज की सोच पर एक मजबूत टिप्पणी है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है।

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