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28 सितंबर: इंडियन आर्मी आज क्यों मनाती है गनर्स डे… जानें क्या है आर्टिलरी रेजिमेंट की कहानी

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28 सितंबर: इंडियन आर्मी आज क्यों मनाती है गनर्स डे… जानें क्या है आर्टिलरी रेजिमेंट की कहानी

28 सितंबर कैलंडर के अनुसार वर्ष का 282वां (लीप वर्ष) है. इस दिन से जुड़े कई किस्से हैं. आज के दिन ही भारत की कई महान हस्तियों का जन्म हुआ था. साथ ही कई ऐसी घटनाएं भी इस हुई,जिस वजह से 28 सितंबर को याद किया जाता है. इन सब के अलावा आज का दिन भारतीय सेना के लिए एक विशेष दिन होता है. आइये जानते हैं इंडियन आर्मी के लिए 28 सितंबर क्यों इतना महत्वपूर्ण है.

आज का दिन यानी 28 सितंबर भारतीय सेना के लिए काफी महत्वपूर्ण दिन है. यह दिन भारतीय सेना गनर्स डे के रूप में मनाती है. अब इस दिन का नाम गनर्स डे क्यों पड़ा और इसके पीछे की कहानी क्या है. यह जानना बेहद दिलचस्प है. आज 28 सितंबर के दिन ही करीब 200 साल पहले भारत की पहली आर्टिलरी यूनिट की स्थापना हुई थी. आर्टिलरी का अर्थ होता है तोपखाना. यानी आधिकारिक रूप से आज जिस रूप में भारतीय सेना है, उसके तोपखाने की नींव  28 सितंबर 1827 में रखी गई थी. 

आर्टिलरी रेजिमेंट भारतीय सेना का एक महत्वूपर्ण हिस्सा माना जाता है. सेना के विशेषज्ञों के मुताबिक 2.5 इंच की आर्टिलरी गन से इस इस रेजिमेंट की शुरुआत हुई और आज इसके पास अब दुनिया के आधुनिकतम हथियार हैं. रेजिमेंट की स्थापना दिवस को ही गनर्स डे (GunnersDay) के तौर पर भी जाना जाता है. आर्टिलरी रेजिमेंट भारतीय सेना की एक लड़ाकू शाखा है, जो भारतीय सेना के सभी जमीनी अभियानों के दौरान उसे भारी गोलाबारी प्रदान करती है. इसकी शुरुआत ब्रिटिश भारतीय सेना की रॉयल इंडियन आर्टिलरी के रूप में हुई, जिसे आजादी के बाद इंडियन आर्मी की आर्टिलरी रेजिमेंट कहा गया.  

इसलिए आज मनाया जाता है गनर्स डे
गनर्स दिवस हर साल 28 सितंबर को मनाया जाता है. यह भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है. 28 सितंबर 1827 को 5 (बॉम्बे) माउंटेन बैटरी यानी की भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट की पहली इकाई का गठन किया गया था. यह उस समय बॉम्बे फुट आर्टिलरी की गोलंदाज बटालियन की 8वीं कंपनी के रूप में स्थापित की गई थी. चूंकि यह बटालियन गोलंदाजों की थी. यही कारण है कि इसी यूनिट के स्थापना दिवस को भारतीय सेना ने अपनी पहली आर्टिलरी रेजिमेंट बताया. 

अंग्रेजों के तोपखाने में सहयकों का काम करने वाले कहलाते थे गोलंदाज
अब बात आती है गोलंदाज की. आखिर गोलंदाज कौन थे. गोलंदाज बटालियन से जुड़ी आर्टिलरी कंपनी की स्थापना दिवस को ही भारतीय सेना अपनी पहली अर्टिलरी रेजिमेंट क्यों मानता है. इसके पीछे भी एक कहानी है.  दरअसल, शुरुआती दौर में किसी भी सेना की शक्ति उसके तोपखाने से परिभाषित होती थी. सेना का तोपखाना काफी महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करता था. उस समय अंग्रेजों के जहाजों में बड़े-बड़े तोप लगे होते थे. शुरुआत में जब अंग्रेज भारत आए तो जहाजों से तोपों को खोलकर जमीनी अभियानों में इस्तेमाल करने लगे.

अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों की बनाई थी अलग गोलंदाज यूनिट
1668 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी दो तोपखाने की कंपनियां बॉम्बे में बनाई. इसके बाद दूसरे प्रेसीडेंसी में भी इसी तरह तोपखानों की कंपनियां गठित की गई. अंग्रेजी सेना के लिए ये तोपखाने इतने महत्वपूर्ण थे कि अंग्रेजों ने तोपखाने में भारतीय सैनिकों को शामिल करने की अनुमति नहीं दी. हां, तोपखानों में सहायकों के रूप में भारतीय कर्मियों को रखा गया. तोपखानों में काम करने वाले इन भारतीय सहायकों को ही गोलंदाज कहा जाता था.  

गोलंदाज बटालियन की आगे बनी भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट
ब्रिटिश भारतीय सेना की रॉयल इंडियन आर्टिलरी (आरआईए) की स्थापना 28 सितंबर 1827 को बॉम्बे आर्मी के एक भाग के रूप में की गई थी , जो बॉम्बे प्रेसीडेंसी की एक प्रेसीडेंसी सेना थी. बाद में इसका नाम बदलकर 5 (बॉम्बे) माउंटेन बैटरी कर दिया गया. इसी में बॉम्बे फुट आर्टिलरी के गोलंदाज बटालियन की 8वीं कंपनी की स्थापना हुई. ये गोलंदाज सिर्फ भारतीय सैनिक थे, जो अंग्रेज तोपची के सहायक होते थे या फिर तोपखाने का दूसरा काम करते थे. 

1857 के विद्रोह के बाद भी भंग नहीं हुई थी गोलंदाजों की बटालियन
1857 का भारतीय विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ में भड़क उठा. इसमें बंगाल आर्टिलरी के कई भारतीय सैनिक विद्रोह में शामिल थे और तब अस्तित्व में मौजूद पैदल तोपखाने की तीन बटालियनों को 1862 में भंग कर दिया गया था.इसके बाद, कुछ को छोड़कर सभी भारतीय तोपखाने इकाइयों को भंग कर दिया गया. सिर्फ वही तोपखाने की इकाईयां बची रह गई, जो गोलअंदाजों की थी. इनका इस्तेमाल उस समय ट्रेनों को चलाने में या अन्य कामों में किया जाता था. इनमें ही एक थी गोलंदाजों की 5 (बॉम्बे) माउंटेन बैटरी, जो आगे चलकर रॉयल इंडियन आर्मी और भविष्य में भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट बनी.  

भारत में मुगलों को जाता है तोपखाना के शुरुआत का श्रेय
वैसे तोपखानों के इस्तेमाल की बात की जाए तो मुगल सम्राट बाबर को भारत में तोपखाने की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है. 1526 में पानीपत की लड़ाई में  उन्होंने दिल्ली सल्तनत के शासक इब्राहिम लोदी की बहुत बड़ी सेना को हराने के लिए निर्णायक रूप से बारूदी शस्त्रों और जमीनीं तोपखाने का इस्तेमाल किया.  हालांकि, इससे पहले 1368 में अदोनी की लड़ाई में बहमनी राजाओं और पंद्रहवीं शताब्दी में गुजरात के राजा मोहम्मद शाह द्वारा तोपों के पहले इस्तेमाल के सबूत भी मिले हैं. 

भारतीय रियासतों के पास भी थे अच्छे तोपखानें
भारतीय रियासतों में मराठों के पास भी अपनी तोपखाना शाखा थी.  बालाजी बाजी राव ने पेशेवर तरीके से तोपखाना शाखा बनाई थी. माधवजी सिंधिया ने यूरोपीय तोप निर्माताओं की देखरेख में एक काफी कुशल तोप निर्माण फाउंड्री की स्थापना की. 18वीं शताब्दी के दौरान, टीपू सुल्तान तोपों, मोर्टार, रॉकेट और हॉवित्जर का प्रभावी उपयोग करने के लिए जाने जाते थे. हैदराबाद के निजाम ने अपने फ्रांसीसी अधिकारियों की मदद से अपनी तोपें खुद बनाईं और महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिखों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर ही घुड़सवार तोपखाना के विकास किया था. 

आर्टिलरी रेजिमेंट सेना की दूसरी सबसे बड़ी शाखा 
आर्टिलरी रेजिमेंट भारतीय सेना की दूसरी सबसे बड़ी शाखा है. इसका काम जमीन पर अभियानों के समय पर सेना को मारक क्षमता देना है. इसे दो हिस्सों में बांटा गया है. पहले हिस्से में घातक हथियार जैसे कि मिसाइल, रॉकेट्स, मोर्टार, तोप, बंदूक आदि शामिल हैं. वहीं दूसरे में ड्रोन, रडार, सर्विलांस सिस्टम होता है. 

प्रमुख घटनाएं

28 सितंबर 1929 को सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का जन्म हुआ था. लता मंगेशकर भारत की एक लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थीं. उन्होंने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फिल्मी और गैर-फिल्मी गाने गाए. 

28 सितंबर 1928 में फ़्लेमिंग ने दुनिया की पहली एंटीबायोटिक की खोज की थी. 
28 सितंबर 1837 में अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह द्वितीय ने दिल्ली का शासन संभाला था.

28 सितंबर 1928 को अमेरिका ने
 चीन की राष्ट्रवादी च्यांग काई-शेक की सरकार को मान्यता दी.

28 सितंबर 1950 में इंडोनेशिया संयुक्त राष्ट्र का 60 वां सदस्य बना.

28 सितंबर  1958 को फ्रांस में संविधान लागू हुआ. 

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