“घन- घट”
घुमड़- घुमड़ घिरे घनघोर घटाएं,
‘घन- घट’ घनश्याम घुमायें ।
घड़ी- घड़ी घिरे घनघोर घटाएं,
‘घन- घट’ घनश्याम घुमायें ।
करे कल- कल कालिंदी
‘ कुहूँ- कुहूँ ‘ करत कोयल।
कुंज-कुंज कान्हा- कृष्णा( राधा)
कहकहाये कली,कोंपल कोंपल।
झरने झरे झर- झर
झूलन झूलत झोंके।
झड़े- झड़ी झकझोर
झूमे झाड़, झांके झरोखे।
सुन्दर सुघड़ सुरमई
सांझ सकुचाए ।
समीर संग सुरीली
सरगम सुनाए।
पैंजनी पहन
पपीहरा पुलकाए ।
प्रसन्न पात- पात,
प्रकृति पियूष पिलाएं।
मंद- मंद
मल्हार मुस्काए ,
मधुर मृदंग
मस्त मयूर मदमाये।
घुमड़- घुमड़ घिरे घनघोर घटाएं,
‘घन- घट ‘घनश्याम घुमायें।
घड़ी- घड़ी घिरे घनघोर घटाएं,
‘ घन- घट’घनश्याम घुमाये।
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