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“घन- घट” : निमिषा रवीश सराफ की कलम से

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“घन- घट”

घुमड़- घुमड़ घिरे घनघोर घटाएं,
‘घन- घट’ घनश्याम घुमायें ।
घड़ी- घड़ी घिरे घनघोर घटाएं,
‘घन- घट’ घनश्याम घुमायें ।

करे कल- कल कालिंदी
‘ कुहूँ- कुहूँ ‘ करत कोयल।
कुंज-कुंज कान्हा- कृष्णा( राधा)
कहकहाये कली,कोंपल कोंपल।

झरने झरे झर- झर
झूलन झूलत झोंके।
झड़े- झड़ी झकझोर
झूमे झाड़, झांके झरोखे।

सुन्दर सुघड़ सुरमई
सांझ सकुचाए ।
समीर संग सुरीली
सरगम सुनाए।

पैंजनी पहन
पपीहरा पुलकाए ।
प्रसन्न पात- पात,
प्रकृति पियूष पिलाएं।

मंद- मंद
मल्हार मुस्काए ,
मधुर मृदंग
मस्त मयूर मदमाये।

घुमड़- घुमड़ घिरे घनघोर घटाएं,
‘घन- घट ‘घनश्याम घुमायें।
घड़ी- घड़ी घिरे घनघोर घटाएं,
‘ घन- घट’घनश्याम घुमाये।

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