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हमें हिन्दी भाषा को गौरव के साथ अपनाना चाहिए, जैसा कि चीन, फ्रांस, जापान और जर्मनी इत्‍यादि जैसे विकसित राष्ट्रों में देखा जा सकता है, जहाँ वे अपनी भाषा में ही शिक्षा, विज्ञान, तकनीक और शासन के समस्त कार्य सम्पन्न करते हैं: डॉ. अनिल कुमार पूनिया

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राष्‍ट्रीय उष्‍ट्र अनुसंधान केन्‍द्र में राजभाषा कार्यशाला आयोजित


बीकानेर 25 जून, 2025 । भाकृअनुप-राष्‍ट्रीय उष्‍ट्र अनुसंधान केन्‍द्र, बीकानेर में आज दिनांक को ‘ हिन्दी में कार्य: चुनौती नहीं, अवसर है’ विषयक राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्‍य अतिथि वक्‍ता डॉ. नमामी शंकर आचार्य, सहायक आचार्य, बेसिक पी.जी. महाविद्यालय, बीकानेर ने विषयगत व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि यदि हमारी शिक्षा पद्धति में हिन्दी भाषा को यथोचित महत्त्व दिया जाना चाहिए क्‍योंकि वैश्विक व्यापार, मनोरंजन उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, अनुवाद आदि अनेक क्षेत्रों में अपार अवसर प्राप्त हो सकते हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि नई शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य भी इसी दिशा में अग्रसर होना है। अपने व्याख्यान में उन्होंने निज भाषा पर गर्व करने, राष्ट्र को सशक्त बनाने हेतु हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने, तथा नई शिक्षा नीति के विविध पहलुओं पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा के स्थान पर किसी अन्य भाषा का प्रयोग करता है, तो वह वास्तविक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि मानसिक अनुवाद होता है; जबकि अपनी भाषा में व्यक्ति सहज, स्वाभाविक और प्रभावशाली रूप से स्वयं को अभिव्यक्त करता है। हमें इसी अनुभव को आधार बनाते हुए हिन्दी भाषा को गौरव के साथ अपनाना चाहिए, जैसा कि चीन, फ्रांस, जापान और जर्मनी इत्‍यादि जैसे विकसित राष्ट्रों में देखा जा सकता है, जहाँ वे अपनी भाषा में ही शिक्षा, विज्ञान, तकनीक और शासन के समस्त कार्य सम्पन्न करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी को सशक्त कार्य-भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए अभी बहुत अधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है, जिसमें विषय-विशेषज्ञों के समन्वय और सहयोग की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
इस अवसर पर केन्‍द्र के राजभाषा नोडल अधिकारी डॉ. राकेश रंजन ने राजभाषा कार्यशाला के उद्देश्‍य एवं महत्‍व पर प्रकाश डाला तथा कहा कि हिन्दी में कार्य करना न केवल हमारी सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करता है, बल्कि यह प्रशासन, ज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर भी एक सशक्त कदम है। डॉ.राकेश कुमार पूनियां द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई तथा संचालन श्री नेमीचंद बारासा ने किया।

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