“शिक्षकों की बेबसता”
✍🏻…..वर्तमान शिक्षा प्रणाली शिक्षकों को एक आदर्श शिक्षक बनाने की बजाय बेबस बना रही है।हर परिस्थिति में वो स्वयं को लाचार और बेबस महसूस करता है।साल की शुरुआत से ही शिक्षकों को व्यस्त रखने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।पढ़ाई करवाने के अतिरिक्त अन्य सभी कामों पर ज़ोर दिया जाता है।विद्यालय में नामांकन दर बढ़ाने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को पकड़ पकड़ कर विद्यालय लाया जाता है।ऐसी परिस्थितियाँ सोचने पर मजबूर करती है।इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों को फ़ेल नहीं करने के नियम का परिणाम यह है की ना तो पढ़ने वाले में कोई रुचि है और ना ही पढ़ाने वाले के प्रति कोई सम्मान।इस तरह के नियम शिक्षा का महत्व बढ़ाने की बजाय कम कर रहे है।शिक्षक अपने सामने भविष्य की खोंखली नींव बनते हुए देख कर स्वयं को बेबस महसूस कर रहे है।थाप लगाने और हाथ रखने का अधिकार छिनने वाले यें नियम भविष्य से तो खिलवाड़ कर ही रहे है साथ ही योग्य अध्यापकों को अयोग्य बनाने का कार्य कर रहे है।क्या सरकार को इस तरह के नियमो पर पुनः विचार नहीं करना चाहिये?जहाँ एक ओर सरकार गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिये अनगिनत योजनाए बना रही है वहीं दूसरी तरफ़ इस तरह के नियम खोंखली नींव तैयार कर रहे है।प्रत्येक शिक्षाशास्त्रियों को इस दिशा में सोचने की आवश्यकता हैं।
✍🏻डॉ.अजिता शर्मा (उदयपुर )
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