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रिलेशनशिप- शादी में अंबानी से ज्यादा खर्च करते आम भारतीय:जब शादी में फिजूलखर्ची रोकने के लिए संसद में लाया गया था बिल

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रिलेशनशिप- शादी में अंबानी से ज्यादा खर्च करते आम भारतीय:जब शादी में फिजूलखर्ची रोकने के लिए संसद में लाया गया था बिल

देश के सबसे अमीर शख्स के यहां शहनाई बजे तो उसकी गूंज दूर तक सुनाई देना स्वाभाविक ही है। पिछले 4 महीनों से मुकेश अंबानी के बेटे अनंत की शादी की रस्में चल रही हैं।

पहले प्री-वेडिंग, फिर असली शादी, रिसेप्शन और पार्टी वगैरह का दौर बदस्तूर जारी है। हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड और क्रिकेट जगत की बड़ी हस्तियों का जमावड़ा हो रहा है।

अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस पूरे जलसे पर तकरीबन 1000 से 1500 करोड़ रूपए खर्च किए जाएंगे।

मुकेश अंबानी का यह वैभव तो समझ में आता है, लेकिन एक आम हिंदुस्तानी व्यक्ति का शादी के इस तामझाम को लेकर क्या नजरिया है। आम लोग अपनी शादी में कितना खर्च करते हैं। आइए इन्हें कुछ सवालों की पड़ताल करते हैं आज के रिलेशनशिप कॉलम में।

बाहर से देखने में लग सकता है कि मुकेश अंबानी के घर की शादी देश की सबसे महंगी शादी है, जो कि है भी। लेकिन आय और खर्च का अनुपात देखेंगे तो पता चलेगा कि एक आम भारतीय परिवार शादी में खर्च करने के मामले में देश के सबसे अमीर शख्स से भी आगे है।

ऐसा क्यों और कैसे है, इसे नीचे दिए ग्राफिक की मदद से समझ सकते हैं-

अंबानी ने बेटे की शादी पर खर्च की सिर्फ आधे दिन की कमाई

मुकेश अंबानी के यहां हो रही शादी देखने में भले आलीशान और पैसों की बर्बादी लगे, लेकिन खुद मुकेश अंबानी के लिए यह मामूली सी बात है। यह जानना जरूरी है कि मुकेश अंबानी ने अपने बेटे की शादी में महीनों चलने वाले जलसे पर मात्र अपने आधे दिन की कमाई ही खर्च की है। इस शादी की वजह से उनके बैंक बैलेंस, प्रॉपर्टी या शेयर्स के भाव में मामूमी फर्क भी पड़ना मुश्किल है।

ब्लूमबर्ग बिलेनियर इंडेक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में मुकेश अंबानी ने अपनी संपत्ति में कुल 9.6 अरब डॉलर यानी लगभग 80 हजार करोड़ रुपए का इजाफा किया। यानी मुकेश अंबानी ने प्रतिदिन लगभग 2 हजार करोड़ रुपए की कमाई की। इसके मुकाबले उन्होंने अपने बेटे की शादी पर 1200 करोड़ यानी आधे दिन की कमाई ही खर्च की।

दूसरी ओर, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) की एक रिपोर्ट बताती है कि एक आम भारतीय अपनी शादी पर औसतन 12 लाख रूपए खर्च करता है। जबकि भारतीयों की प्रति व्यक्ति सालाना आय 1 लाख 72 हजार रुपए है। यानी एक आम भारतीय शादी पर अपने 7 साल की कमाई खर्च कर देता है।

इस नजरिए से देखें तो शादी-ब्याह में भारत के सबसे अमीर शख्स के मुकाबले आम आदमी ज्यादा फिजूलखर्ची कर रहा है, जिसका खामियाज भी उसे ही भुगतना पड़ता है।

भारत में हर साल 1 करोड़ शादियां, कुल बजट 10 लाख करोड़

पिछले दिनों अमेरिकन इन्वेस्टमेंट बैंकिंग और कैपिटल मार्केट फर्म Jefferies की एक रिपोर्ट आई। इस रिपोर्ट में इंडियन वेडिंग मार्केट के बढ़ते दायरे की बात कही गई।

रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वक्त में देश में हर साल 80 लाख से लेकर 1 करोड़ तक शादियां होती हैं, जिनका कुल बजट लगभग 10 लाख करोड़ रुपए है।

अमेरिका जैसी सबसे विशाल अर्थव्यवस्था में भी शादी पर सालाना 5 लाख करोड़ रूपए ही खर्च होता है। यानी इंडियन वेडिंग मार्केट का दायरा अमेरिका से दोगुना है।

हालांकि इस मामले में दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन भारत से भी आगे है। चीन का वेडिंग मार्केट लगभग 14 लाख करोड़ रुपए का है, जो दुनिया में सर्वाधिक है। लेकिन शादी के मामले में आय और खर्चे में सबसे बड़ा अंतर हम भारतीयों का ही है।

शादी में फिजूलखर्ची रोकने के लिए संसद में लाया गया था बिल

साल 2017 में बिहार के सुपौल से लोकसभा सांसद रंजीत रंजन ने एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। इस बिल में शादी की फिजूलखर्ची को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की बात कही गई थी। इस बिल में मेहमानों की संख्या सीमित करने के अलावा 5 लाख रुपये से अधिक खर्च करने पर रोक लगाने की भी सिफारिश की गई थी।

सांसद ने मांग की कि ‘अगर किसी ने तय की गयी राशि से अधिक पैसे खर्च किए तो उस पर 10% का टैक्स लगाया जाए और टैक्स का ये पैसा गरीब लड़कियों की शादियों पर खर्च किया जाए।’

हालांकि यह बिल संसद में पास नहीं हो सका और शादियों में फिजूलखर्ची बदस्तूर जारी है। अगर यह बिल देश में लागू हो जाता तो हर शादी का पंजीकरण 60 दिनों के अंदर करना अनिवार्य होता।

साथ ही सरकार शादी में आने वाले मेहमानों-रिश्तेदारों और बारात की संख्या के साथ-साथ शादी और रिसेप्शन में परोसे जाने वाले व्यंजनों की भी सीमा तय कर सकती थी। ताकि शादियों में होने वाली खाने की बर्बादी पर लगाम लगाई जा सके।

क्या शादी में जरूरी है पैसों की बर्बादी

सादगी से क्यों नहीं मना सकते उत्सव

इतनी कहानी पढ़ने के बाद मन में सवाल उठता है कि आखिर लोग क्यों जीवन भर की गाढ़ी कमाई शादियों में फूंक देते हैं। शादी दो दिलों का बंधन माना जाता है। इस बंधन में बंधने के बाद दो इंडीविजुअल जिंदगी की नई शुरुआत करते हैं। एक नए घर, कुटुंब और कुनबे की बुनियाद रखते हैं। जिंदगी के ऐसे अहम मोड़ पर कंगाल होकर खर्च करना और कर्ज लेकर दिखावा करना निश्चित ही भविष्य और रिश्ते दोनों का नुकसान पहुंचा सकता है।

शायद इन्हीं बातों को समझते हुए अपने यहां शादी को पवित्र बंधन और धार्मिक कार्यक्रम का रूप दिया गया होगा। लेकिन मौजूदा वक्त में शादी का यह पहलू धूमिल पड़ रहा है। शादियां ‘ग्रैंड पार्टी’ में बदलती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में शादी नई जिंदगी की शुरुआत के बदले एक आर्थिक त्रासदी का रूप ले रही है, जिसका खामियाजा कपल को आने वाले कई सालों तक भुगतना पड़ सकता है।

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