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रिलेशनशिप- स्त्री-पुरुष एक-दूसरे को समझ क्यों नहीं पाते:आखिर इस समस्या की जड़ कहां है, साइकोथेरेपिस्ट बता रहे हैं असली वजह

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रिलेशनशिप- स्त्री-पुरुष एक-दूसरे को समझ क्यों नहीं पाते:आखिर इस समस्या की जड़ कहां है, साइकोथेरेपिस्ट बता रहे हैं असली वजह

‘तुम्हारे सामने तो कुछ बोलना ही बेकार है, तुम नहीं समझोगे।’ आपसी बहसबाजी के दौरान कई बार ऐसे मौके आते हैं, जिसमें पति या पत्नी को लगता है कि पार्टनर उनकी भावनाओं को समझ पाने में असमर्थ है। फिर पत्नियां सहेलियों के बीच तो पति अपने दोस्तों की बीच इसकी चर्चा करते हैं। और इस पूरी समस्या को मर्द और औरत जात से बांधकर देखते हैं।

साइकोथेरेपिस्ट डॉ. अवरुम ग्युरिन वेइस के अनुसार इस प्रॉब्लम की असल वजह यह है कि स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के बारे में कुछ बातों से अनजान होते हैं। आज ‘रिलेशनशिप’ कॉलम में इन्हीं की बात करेंगे।

अपने पैमानों पर पार्टनर को परखने से बढ़ता टकराव

डॉ. अवरुम ग्युरिन वेइस की मानें तो पुरुष अपने पार्टनर से पुरुषों के पैमाने पर उम्मीद रखते हैं। दूसरी ओर, महिलाएं भी अपने पार्टनर से महिलाओं की सोच के अनुरूप ही उम्मीदें रखती हैं।

जबकि किसी मर्द या औरत का दूसरे जेंडर के दकियानूसी पैमाने पर खरा उतर पाना आसान नहीं होता। क्योंकि परवरिश के दौरान ही उन्हें जेंडर के दायरे में कसकर बांध दिया जाता है। जिसकी वजह से मेल और फीमेल की सोच में पर्याप्त अंतर आ जाता है। जब ऐसे लोग किसी रिश्ते में आते हैं तो टकराव की आशंका बढ़ जाती है। फिर वही बात आती है कि ‘तुम्हारे सामने तो कुछ बोलना ही बेकार है, तुम नहीं समझोगे।’

पुरुषों के डर को नहीं समझ पातीं महिलाएं

कल्चर चाहे कोई भी हो, दुनिया भर में नजर उठाकर देखिए तो ज्यादातर मर्द अपनी मूंछों पर ताव देते नजर आएंगे। जिनकी मूंछें अभी आनी बाकी हैं, वे लड़के भी मर्द होने के अभिमान से भरे मिल जाएंगे।

पुरुषों के बारे में आम धारणा है कि वे डरते नहीं और इमोशनली स्ट्रॉन्ग होते हैं। रोना उनके लिए अपराध सरीखा होता है। खासतौर से अगर सामने कोई महिला हो।

लेकिन इस बारे में साइकोथेरेपिस्ट डॉ. अवरुम ग्युरिन वेइस की राय काफी अलग है। अपनी रिसर्च के आधार पर डॉ. अवरुम बताते हैं कि रिश्ते में पुरुषों के मन में असुरक्षा और डर की भावना आमतौर पर ज्यादा होती है। दूसरी तरफ, महिलाएं पुरुषों के इस डर से पूरी तरह अनजान होती हैं।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ महिलाएं ही पुरुषों के मनोभाव से अनजान होती हैं। महिलाओं की कई बातें भी पुरुष ठीक से समझ नहीं पाते या फिर इसे बताने के लिए महिलाओं को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इसे नीचे दिए ग्राफिक की मदद से समझ सकते हैं-

जेंडर नहीं, सोच है टकराव की असल वजह

पुरुष और महिलाएं रिश्ते में सालों-साल एक-दूसरे के साथ रहते हैं। सात जन्मों के साथ का भी वादा होता है। फिर भी वे एक-दूसरे के मन की कई जरूरी बातों को समझ पाने में असमर्थ क्यों होते हैं। इसकी वजह क्या है? क्या प्रकृति ने ही स्त्री और पुरुष को ऐसा बनाया है? या फिर कोई और वजह है।

साइकोलॉजी टुडे की मानें तो इसकी वजह नेचुरल नहीं है। बल्कि सोशल ओरिएंटेशन की वजह से धीरे-धीरे महिला और पुरुष के मन में एक-दूसरे के लिए कुछ धारणाएं घर कर जाती हैं। वे बने-बनाए ढर्रे पर ही एक-दूसरे के बारे में सोचते हैं। यही उनके बीच टकराव की वजह बनती है। उनके मन में एक-दूसरे के जेंडर के प्रति तमाम कुंठाएं भी घर करती हैं।

दो लोग जो दोस्त, सहयोगी या लविंग पार्टनर हो सकते थे, जेंडर की दीवार के दोनों ओर खड़े होकर एक-दूसरे को ताउम्र दुश्मन मानने के लिए अभिशप्त हो जाते हैं और रिश्ता टकराव की भेंट चढ़ जाता है।

रिश्ते में चाहते हैं गहराई तो महिलाओं को दें बराबरी का हक

रिलेशनशिप काउंसिलर और कोच में यह आम धारणा है कि किसी भी रिश्ते में दो भूमिकाएं हो सकती हैं। आमतौर पर रिश्ते में एक पार्टनर एक्टिव तो दूसरा पैसिव भूमिका में होता है। एक्टिव भूमिका निभाने वाला पार्टनर रिश्ते को ज्यादा कंट्रोल करता है, जबकि पैसिव भूमिका वाले पार्टनर के अधिकार सीमित होते हैं।

एक्टिव और पैसिव की यह बायनरी रिश्ते के लिए ठीक नहीं होती। इसकी वजह से मेल और फीमेल पार्टनर के मन में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास पनपता है। बैम्बर्ग विश्वविद्यालय की रिसर्चर रॉबर्ट कोर्नर की मानें तो अगर रिश्ते में बराबरी न हो तो कमजोर पड़ने वाला पार्टनर प्यार करने की जगह प्यार का दिखावा करेगा। जबकि असल में वह प्यार नहीं, उसका डर होगा और वह डर जिस दिन खत्म हुआ, रिश्ते में टूटन की शुरुआत हो जाएगी।

इसलिए बेहतर है कि रिश्ते में एक्टिव और पैसिव की बायनरी से किनारा करते हुए जिम्मेदारियां समानता के आधार पर तय की जाएं। रिश्ते में जब बराबरी हो तो पार्टनर्स को एक-दूसरे की भावनाओं की समझने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती।

एक-दूसरे को समझने के लिए क्या करें मेल और फीमेल पार्टनर

ऐसी स्थिति में इंपैथेटिक होकर सोचना मददगार हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो खुद को पार्टनर की जगह रखकर सोचें कि उसे कैसा महसूस होता है।

हमेशा अपनी बातों, अपनी सोच और धारणा पर अड़ने की जगह दूसरों के नजरिए को समझना, उसकी बातों को ध्यान देकर सुनना, चीजों को वृहद तरीके से समझने में मददगार हो सकता है। साथ ही इस सच्चाई को स्वीकार करना कि कुछ मुद्दों पर पार्टनर की राय मुझसे अलग हो सकती है।

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