आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से बढ़ता हार्ट अटैक का खतरा:बिस्किट, चॉकलेट और केक में भी मौजूद, WHO ने बताया कर्सिनोजेन
यूरोपियन हार्ट जर्नल में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, चीनी के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो रहे आर्टिफिशियल स्वीटनर जाइलिटॉल (Xylitol) का हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कार्डियोवस्कुलर डिजीज से सीधा कनेक्शन है। इसके लगातार इस्तेमाल से भविष्य में हार्ट डिजीज के कारण होने वाली मौतों की संख्या और बढ़ सकती है।
पिछले साल यानी जुलाई, 2023 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी थी कि चीनी के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो रहे आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम (Aspartame) से टाइप-2 डायबिटीज और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ सकता है। WHO और इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) की साझा स्टडी के बाद एस्पार्टेम को कार्सिनोजेन की कैटेगरी में रखा गया। इसका मतलब है कि एस्पार्टेम कैंसर का भी कारण बन सकता है। इसके बाद विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो रहे सभी तरह के आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को लेकर चेतावनी दी गई।
दो महीने पहले पंजाब के पटियाला में एक 10 साल की लड़की मानवी की बर्थडे केक खाने से मौत हो गई थी। जांच में सामने आया कि इसकी वजह आर्टिफिशियल स्वीटनर थी।
इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे आर्टिफिशियल स्वीटनर्स की। साथ ही जानेंगे कि-
- आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का हार्ट हेल्थ से क्या कनेक्शन है?
- क्या आर्टिफिशियल स्वीटनर कैंसर की भी वजह बन सकते हैं?
- इनके इस्तेमाल से किन बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है?
भारत के शहरों में 38% लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का कर रहे इस्तेमाल
आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को लेकर इन स्टडीज के सामने आने के बाद विशेषज्ञ फिक्रमंद हैं। स्टेटिस्टा में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक पूरी दुनिया में अभी एक साल में करीब 120 करोड़ किलोग्राम आर्टिफिशियल स्वीटनर इस्तेमाल हो रहा है। यह अगले 4 साल में बढ़कर 2028 तक करीब 145 करोड़ किलोग्राम हो सकता है।
भारत में भी चीनी के विकल्प के तौर पर इनका इस्तेमाल बढ़ रहा है। लोकल सर्कल की स्टडी के मुताबिक भारतीय शहरों में करीब 38% शहरी लोग चीनी के विकल्प के तौर पर आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में 42 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज का शिकार हैं और ज्यादातर डायबिटिक लोग मीठे स्वाद के लिए आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को सुरक्षित मानकर इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत में 6 आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को है FSSAI की मंजूरी
आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से होने वाले नुकसान पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया की कई बड़ी हेल्थ बॉडीज चिंता जता चुकी हैं। इसके बावजूद इनके इस्तेमाल पर रोक नहीं लगाई गई है। भारत समेत ज्यादातर देशों ने आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के इस्तेमाल को मंजूरी दे रखी है।
दुनिया के कई बड़े डॉक्टर्स भी उठा चुके हैं सवाल
दुनिया के तमाम बड़े डॉक्टर्स आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के इस्तेमाल पर सवाल उठा चुके हैं। फेमस डॉक्टर जैसन फंग ने अपनी किताब ‘द डायबिटीज कोड: प्रिवेंट एंड रिवर्स टाइप 2 डायबिटीज नैचुरली’ में आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को मिथ बताया है। वहीं, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एंडोक्रोनॉलजी विभाग में प्रोफेसर डॉ. रॉबर्ट लस्टिग ने अपनी किताब ‘फैट चांस’ में इसे स्वास्थ्य के लिए असुरक्षित बताया है।
आर्टिफिशियल स्वीटनर में ब्लड क्लॉटिंग टेंडेंसी
क्लीवलैंड क्लिनिक में कार्डियोवस्कुलर और मेटाबॉलिक साइंसेज के चेयरपर्सन डॉक्टर स्टेनली हेजेन के मुताबिक, कई पैकेज्ड फूड्स में आर्टिफिशियल स्वीटनर जाइलिटॉल मिला हुआ है। इसके लगातार इस्तेमाल से ब्लड क्लॉटिंग का खतरा बढ़ जाता है, जो हार्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण बनता है। उन्होंने यह भी कहा है कि सभी आर्टिफिशियल स्वीटनर्स पर फोकस्ड स्टडी की जरूरत है। इससे डायबिटीज और मोटापा दोनों बीमारियों का भी खतरा है।
कैंसर का कारण हो सकता है आर्टिफिशियल स्वीटनर
WHO के साथ की गई साझा स्टडी में इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के मुताबिक आर्टिफिशिल स्वीटनर कर्सिनोजेन यानी कैंसर का कारक हो सकता है। जॉइंट FAO/WHO एक्सपर्ट कमिटी ऑन फूड एडिटिव्स ने भी इसे कैंसर का कारक माना है। इसमें एस्पार्टेम को अधिक खतरनाक माना गया है। चूंकि दुनिया की हर छठवीं मौत कैंसर के कारण होती है। इसलिए WHO ने इसे कम-से-कम इस्तेमाल करने को कहा है।
खाने की किन चीजों में इस्तेमाल हो रहे आर्टिफिशियल स्वीटनर्स
कई बार डायबिटिक लोग मीठी चाय का मोह नहीं छोड़ पाते हैं। इसके लिए वे शुगर फ्री टेबलेट्स और क्यूब्स इस्तेमाल करते हैं। असल में ये शुगर फ्री टेबलेट्स आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से ही बनी होती हैं। इसके अलावा मार्केट में मिल रहे ज्यादातर पैकेज्ड फूड्स में आर्टिफिशियल शुगर ही इस्तेमाल होती है।
हार्ट डिजीज और कैंसर के अलावा किन बीमारियों का खतरा
हार्ट डिजीज और कैंसर जैसी बीमारियां इनके बहुत लंबे समय तक इस्तेमाल के बाद होती हैं, जबकि शुरुआत ओवर ईटिंग, ओबिसिटी और हेडेक जैसी समस्याओं से होती है।
ओवर ईटिंग का बड़ा कारण हैं आर्टिफिशियल स्वीटनर्स
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के लगातार इस्तेमाल से खाने के बाद तृप्ति का अहसास कराने वाला हॉर्मोन लेप्टिन प्रभावित हो जाता है। इसलिए बार-बार खाने की क्रेविंग होती रहती है। यह ओवर ईटिंग की वजह बन रहा है।
बढ़ रही ओबिसिटी की समस्या
पूरी दुनिया में वेट लॉस के दीवानों की संख्या बढ़ रही है। हर कोई स्लिम-फिट दिखना चाहता है। इसकी खातिर बड़ी संख्या में लोग चीनी भी छोड़ रहे हैं। कुछ लोग चीनी के विकल्प के तौर पर आर्टिफिशियल स्वीटनर्स इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि स्टडीज का दावा इसके विपरीत है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक आर्टिफिशियल स्वीटनर्स हमारे बढ़ते वजन और मोटापे के लिए जिम्मेदार हैं।
हेडेक और डिप्रेशन का भी कारण
हेल्थ जर्नल हेडेक में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, आर्टिफिशियल स्वीटनर्स सिरदर्द, डिप्रेशन और बेहोशी की वजह बन सकते हैं। ऐसी समस्याएं छोटे बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती हैं।
गट हेल्थ प्रभावित होती है
हमारे गट बैक्टीरिया चीनी की तुलना में आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के साथ अलग तरह से रिएक्ट करते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक जब सैकरीन और सुक्रोलोज जैसे स्वीटनर्स हमारे माइक्रोबायोम्स के संपर्क में आते हैं तो डिस्बिओसिस का खतरा बढ़ जाता है। इसका मतलब है कि गुड गट बैक्टीरिया की तुलना में हानिकारक गट बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है। इससे पेट में सूजन, ऑटो इम्यून कंडीशन, माइग्रेन और एंग्जायटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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