क्या ब्राह्मण थे असदुद्दीन ओवैसी के पूर्वज:अकबरुद्दीन ने पिता के खिलाफ जाकर की ईसाई लड़की से शादी; ओवैसी परिवार के किस्से
24 दिसंबर 2012। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम की सुगबुगाहट होने लगी थी। आदिलाबाद की एक रैली में AIMIM विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘लोग मुसलमान को डरा रहे हैं। मोदी है.. मोदी है.. काहे का मोदी.. एक बार हैदराबाद आ जाओ बता देंगे। हिंदुस्तान में हम 25 करोड़ हैं.. तुम 100 करोड़.. ठीक है तुम तो हमसे इतने ज्यादा हो… 15 मिनट पुलिस को हटा लो हम बता देंगे कि किसमें दम है कौन ताकतवर है।’
इस भड़काऊ बयान पर अकबरुद्दीन के खिलाफ देशद्रोह समेत कई धाराओं में केस दर्ज हुआ। देशभर में गिरफ्तारी की मांग उठ रही थी। तभी उनके भाई असदुद्दीन ओवैसी ने मोर्चा संभाला।
5 जनवरी 2013 यानी भड़काऊ बयान के 11 दिन बाद। हैदराबाद से 150 किमी दूर तंदूर कस्बे के ईदगाह मैदान में मुस्लिमों की भीड़ को संबोधित करते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने अपने भाई का बचाव किया।
असदुद्दीन ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘मैं और मेरा भाई एंटी-नेशनल और एंटी-हिंदू नहीं हैं। अपनी मदरलैंड से कैसे मोहब्बत करना है, ये मुझे उनसे सीखने की जरूरत नहीं, जिन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की, बाबरी मस्जिद को शहीद किया और गुजरात में हजारों मासूम मुस्लिमों का कत्लेआम किया। हमें कानून पर पूरा भरोसा है और अकबरुद्दीन कोर्ट में सरेंडर करेंगे।’
देश के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के आठवें एपिसोड में हैदराबाद के असदुद्दीन ओवैसी परिवार के किस्से…
MIM मुखिया ने सैकड़ों हिंदुओं का कत्ल करवाया था
हैदराबाद में समरकंद से आए आसफजाह की वंशावली राज कर रही थी। ये निजाम कहलाए। 1911 में इसी वंश के ‘आसफ जाह मुजफ्फुरुल मुल्क सर मीर उस्मान अली खां’ ने हैदराबाद रियासत की गद्दी संभाली थी।
हैदराबाद रिसायत के एक शख्स बहादुर यार जंग ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर मुस्लिमों का एक संगठन बनाया। इसका नाम मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन यानी MIM रखा गया। इसका मकसद मुस्लिमों को अपनी बात रखने के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक मंच देना था।
1944 में MIM बनाने वाले बहादुर यार जंग की अचानक मौत हो गई। कहा जाता है कि उन्हें जहर देकर मारा गया था। इसके बाद MIM संगठन का नेतृत्व कासिम रजवी के पास चला गया। दरअसल, निजाम ने आम लोगों की एक सेना बना रखी थी, जो जरूरत पड़ने पर हथियार उठा सकें। कासिम रजवी इन्हीं रजाकारों के मुखिया थे।
ये तस्वीर हैदराबाद निजाम की सेना रजाकारों की है। ऑपरेशन पोलो के जरिए भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत में मिला दिया।
इतिहासकार मोहम्मद नूरुद्दीन खान के मुताबिक अगस्त 1948 में रजवी के आदेश पर रजाकारों ने हिंदुओं के भैरनपल्ली गांव पर हमला कर दिया। इस हमले में दर्जनों महिलाओं से रेप किए गए, जबकि 118 लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। इस घटना के बाद अगर कोई मुस्लिम भी रजाकारों के खिलाफ बोलता था, तो उसे भी मौत के घाट उतार दिया जाता था।
भैरनपल्ली कांड के बाद ही रजवी जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल की निगाह में चढ़ गए। पटेल कतई नहीं चाहते थे कि हैदराबाद एक आजाद मुल्क हो। वो भी भारत के उस इलाके के बीचों-बीच जहां चारो और हिंदू आबादी थी।
13 सितंबर 1948 को पटेल ने भारतीय सेना को ऑपरेशन पोलो की इजाजत दे दी, जिसके बाद सेना हैदराबाद में घुस गई। 5 दिन तक रजाकारों से चली लड़ाई के बाद भारतीय सेना की जीत हुई।
हैदराबाद भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया। भारत सरकार ने MIM संगठन पर बैन लगा दिया और कासिम रजवी को गिरफ्तार कर लिया। 9 साल बाद रजवी को इस शर्त पर छोड़ा गया कि वह पाकिस्तान चले जाएंगे। इसके साथ ही MIM पर लगे बैन को भी हटा दिया गया।
ये तस्वीर असदुद्दीन ओवैसी के दादा अब्दुल वहीद ओवैसी की है, जिन्होंने ओवैसी परिवार में पहली बार MIM प्रमुख का पद संभाला था।
पाकिस्तान भाग रहे रजवी ने अब्दुल वहीद ओवैसी को सौंपी MIM
1957 में भारत छोड़ने से पहले रजवी और अन्य MIM नेताओं ने गुप्त तरीके से संगठन के एक वकील के घर पर बैठक की। इसमें युवा और जोशीले अब्दुल वहीद ओवैसी ने भी शिरकत की। रजवी नए हाथों में MIM की कमान सौंपना चाहते थे। जब रजवी ने अब्दुल वहीद ओवैसी के सामने इसका प्रस्ताव दिया तो वह मान गए। इस तरह अब्दुल वहीद ओवैसी MIM संगठन के प्रमुख बन गए।
अब्दुल वहीद ओवैसी ने संगठन का नाम बदलकर ऑल-इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन यानी AIMIM रख दिया। उन्होंने इसे एक मुस्लिम संगठन की बजाय राजनीतिक पार्टी का रूप दिया। AIMIM का पार्टी संविधान नए सिरे से लिखा गया। 1957 के बाद से ओवैसी परिवार की तीसरी पीढ़ी का पार्टी पर दबदबा है। अब्दुल वहीद ओवैसी मौजूदा AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के दादा थे।
हज जाने से पहले पिता की मौत, बेटे ने संभाली पार्टी
1960 में पहली बार AIMIM पार्टी ने हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का चुनाव लड़ा। तब तक चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड नहीं होने की वजह से पार्टी के उम्मीदवार निर्दलीय कैंडिडेट के रूप में नॉमिनेशन करते थे। इस म्युनिसिपल चुनाव में 24 वार्ड में AIMIM पार्टी को जीत मिली।
हैदराबाद म्युनिसिपल के मल्लेपल्ली वार्ड से अब्दुल वहीद ओवैसी ने अपने बेटे सलाहुद्दीन ओवैसी को टिकट दिया था। एक तरह से औवैसी परिवार की दूसरी पीढ़ी यानी सलाहुद्दीन ओवैसी की राजनीति में एंट्री हो गई। इस म्युनिसिपल चुनाव में सलाहुद्दीन को जीत मिली। दो साल बाद ही आंध्र प्रदेश में विधानसभा का चुनाव हुआ। इस चुनाव में पत्थरघट्टी विधानसभा से पहली बार जीतकर सलाहुद्दीन विधायक बन गए।
साल 1975 की बात है। अब्दुल वहीद ओवैसी हज जाने के लिए हिम्मत नगर स्थित अपने आवास से निकलने ही वाले थे कि दिल का दौरा पड़ने से उनका देहांत हो गया।
मौलवी अब्दुल वहीद ओवैसी की मृत्यु के बाद, उनके बेटे सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने पार्टी की अध्यक्षता संभाली। सलाहुद्दीन के अध्यक्ष बनने के बाद फर्क ये आया कि अब उनके नेता हैदराबाद निगम और आंध्र प्रदेश विधानसभा के अलावा संसद के भी सदस्य बन गए थे।
हैदराबादी कहते हैं कि सलाहुद्दीन ओवैसी ने लोगों के दिलों पर राज किया, इसलिए उन्हें ‘सालार मिल्लत‘ की उपाधि दी गई। 1984 में सलाहुद्दीन हैदराबाद से लोकसभा चुनाव जीत गए। इसके बाद 2004 तक लगातार 6 बार वह इस सीट से सांसद रहे।
दिसंबर 1978 में इंदिरा गांधी हैदराबाद स्थित AIMIM के मुख्य दफ्तर पहुंची थीं। ये उसी वक्त की तस्वीर है, जिसमें बाएं से दूसरे सलाहुद्दीन ओवैसी इंदिरा गांधी के साथ बैठे हैं।
लंदन से कानून की पढ़ाई कर लौटे असदुद्दीन ओवैसी को राजनीति में उतारा
13 मई 1969 को हैदराबाद में पैदा हुए असदुद्दीन ओवैसी राजनीति में आने से पहले लंदन से कानून की पढ़ाई कर रहे थे। जब वह लौटे तो उनके पिता सलाहुद्दीन ओवैसी पार्टी के अध्यक्ष थे।
अपने पिता की तरह सलाहुद्दीन ने भी 1994 में बेटे असदुद्दीन ओवैसी को राजनीति में उतारने का फैसला किया। इस साल वह पहली बार चारमीनार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीत गए। 1999 में उन्होंने दोबारा उसी विधानसभा क्षेत्र से भारी मतों से जीत हासिल की।
2004 में पहली बार ओवैसी अपने पिता के बाद हैदराबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत गए। तब से वह लगातार इस लोकसभा सीट पर चुनाव जीत रहे हैं। 2008 में बिना किसी विरोध के असदुद्दीन ओवैसी को AIMIM का अध्यक्ष बना दिया गया।
वरिष्ठ पत्रकार उमर फारूक एक इंटरव्यू में कहते हैं कि ओवैसी हर मंच पर मुसलमानों की समस्याओं से जुड़े सवाल उठाते हैं। आजादी के इतने साल गुजर जाने के बाद भी मुस्लिम शिक्षा और आर्थिक पहलू पर इतना पिछड़ा क्यों है? मुस्लिम युवाओं को लगता है कि उनके हक में ये सवाल उठाने वाले ओवैसी इकलौते नेता हैं।
यही वजह है कि उनकी सभाओं में लोगों की भीड़ उमड़ती है। मुस्लिमों के हक में आवाज उठाते वक्त वह कई बार ऐसा बयान दे देते हैं, जिसकी वजह से उन्हें सांप्रदायिक नेता भी कहा जाने लगा है।
सलाहुद्दीन के समय में AIMIM आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक के इलाकों में सक्रिय थी, मगर असदुद्दीन ने इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
क्रिकेटर बनने का सपना देख रहे असदुद्दीन, राजनीति में कैसे उतरे
एक इंटरव्यू में असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि जिंदगी में मुकद्दर के फैसले आप और हम नहीं तय करते हैं। इसे ऊपरवाला तय करता है। ये सही है कि जवानी में मैं क्रिकेटर बनना चाहता था।
1994 में विज्जी ट्रॉफी को याद करते हुए ओवैसी ने कहा कि इस टूर्नामेंट में मैं उस्मानिया यूनिवर्सिटी की तरफ से खेल रहा था, जबकि देश के मशहूर क्रिकेटर वेंकटेश प्रसाद बेंगलुरू टीम से खेल रहे थे। ओपनिंग गेंदबाजी करते हुए इस मैच में मैंने 6 विकेट लिए और वेंकटेश प्रसाद के खाते में सिर्फ 2 विकेट आए।
मेरा साउथ जोन यूनिवर्सिटी टीम के लिए सिलेक्शन हुआ, लेकिन वेंकटेश प्रसाद का सिलेक्शन नहीं हुआ। हालांकि, बाद में मेरे वालिद ने मुझसे कहा कि पढ़ने पर ध्यान दो। उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए लंदन भेज दिया।
इस तरह मेरा क्रिकटर बनने का सपना पीछे रह गया। लंदन से लौटा तो पिता के कहने पर मैं राजनीति में आ गया। ओवैसी ने थोड़ा ठहरकर कहा कि देखिए जिंदगी एक सफर है। ये किस मंजिल और राह पर लेकर आपको जाती है, आप भी नहीं जानते हैं।
असदुद्दीन ओवैसी की ये तस्वीर सांसद बनने के बाद एक फ्रेंडली मैच खेलने के समय की है।
जब अकबरुद्दीन ओवैसी ने ईसाई लड़की से शादी की
असदुद्दीन के छोटे भाई अकबरुद्दीन का जन्म 1970 में हुआ था। जब असदुद्दीन लंदन में कानून की पढ़ाई कर रहे थे, तब अकबरुद्दीन अपने पिता के साथ अक्सर राजनीतिक जलसों में जाया करते थे। पिता सलाहुद्दीन चाहते थे कि अकबरुद्दीन मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर डॉक्टर बनें, लेकिन अकबरुद्दीन ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी।
इसी दौरान सलाहुद्दीन को पता चला कि अकबरुद्दीन का एक ईसाई लड़की से इश्क चल रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना के बाद पिता और पुत्र के रिश्ते में तल्खी आ गई। 1995 में परिवार के खिलाफ जाकर अकबरुद्दीन ने अपनी गर्लफ्रेंड सबीना से शादी कर ली।
करीब 3 साल बाद 1998 में सलाहुद्दीन की सेहत लगातार गिरती जा रही थी। इसी दौरान कभी ओवैसी परिवार के वफादार रहे अमानुल्लाह खान ने परिवार का साथ छोड़ ‘मजलिस बचाओ तहरीक’ पार्टी बना ली थी। 1999 के विधानसभा चुनाव होने थे और अमानुल्लाह पिछले 5 बार से चंद्रयानगुट्टा सीट पर जीत रहे थे।
सलाहुद्दीन को लगा कि उनका बेटा अकबरुद्दीन ही अमानुल्लाह को हरा सकता है। एक रोज सलाहुद्दीन ने गिले-शिकवे भुलाकर बेटे अकबरुद्दीन को मिलने के लिए बुलाया। पिता और बेटे के बीच मुलाकात हुई और सारे विवाद सुलझा लिए गए। तय ये हुआ कि अकबरुद्दीन की पत्नी सबीना को इस्लाम कबूल कराया जाएगा और उनका नाम सबीना फरजाना होगा।
1999 में अकबरुद्दीन ने AIMIM से अमानुल्लाह के खिलाफ चुनाव लड़ा। इस चुनाव में अकबरुद्दीन को जीत मिली। अकबरुद्दीन के आने से हैदराबाद की राजनीति में ‘मजलिस बचाओ तहरीक’ पार्टी की हालत ऐसी हुई कि फिर कभी ये पार्टी AIMIM के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाई।
असदुद्दीन ने अपने एक इंटरव्यू में भाई अकबरुद्दीन के बारे में कहा था कि वह मुझसे ज्यादा काबिल नेता और वक्ता हैं। जब उनसे अकबरुद्दीन के हिंदुओं को लेकर दिए गए विवादित बयानों पर सवाल किया गया तो उन्होंने इस मामले में कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
पिता सलाहुद्दीन के साथ उनका हाथ थामे असदुद्दीन ओवैसी और बाएं जींस और शर्ट पहने अकबरुद्दीन ओवैसी हैं। कहा जाता है कि मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़ने के बाद पिता उनसे नाराज रहने लगे थे।
ओवैसी भाइयों के विवादित बयान और AIMIM का राजनीतिक विस्तार
1994 में इस्लाम धर्म की आलोचना के बाद लेखिका तस्लीमा नसरीन को अपना देश बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। करीब एक दशक तक अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों में रहने के बाद 2004 में तस्लीमा भारत आईं।
रेजिडेंट परमिट लॉन्ग-टर्म वीजा के जरिए भारत में शरण लेने वाली तस्लीमा को इस्लाम विरोधी बताते हुए ओवैसी भाइयों ने कड़ा विरोध किया। अगस्त 2007 में हैदराबाद में तस्लीमा के एक कार्यक्रम का आयोजन हो रहा था। अकबरुद्दीन ने तस्लीमा के इस कार्यक्रम का विरोध किया। उन्होंने पार्टी के नेताओं के साथ मिलकर तस्लीमा से बदसलूकी की।
इस विवाद के करीब 5 साल बाद 24 दिसंबर 2012 को आदिलाबाद की एक सभा में AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘लोग मुसलमान को डरा रहे हैं। मोदी है.. मोदी है… काहे का मोदी.. एक बार हैदराबाद आ जाओ बता देंगे। तस्लीमा नसरीन आई कहां है किसी को नहीं मालूम।’
इस बयान के बाद उन्हें देशद्रोह और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में 40 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। जब जेल से बाहर आए तो मुस्लिम नौजवानों के बीच उनकी पैठ पहले से ज्यादा मजबूत हुई।
2012 में होने वाले हैदराबाद निगम चुनाव में उनकी पार्टी को पहली बार 150 में से 30 से ज्यादा सीटों पर जीत मिली। इस तरह हैदराबाद शहर में AIMIM वहां की सत्ताधारी पार्टी TRS के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 2016 में पार्टी को 44 सीटों पर जीत मिली। हालांकि, इस चुनाव में TRS के बाद BJP दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।
नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में AIMIM ने हैदराबाद की 6 सीटों पर जीत हासिल की, जिससे साफ पता चलता है कि हैदराबाद पर ओवैसी और उनकी पार्टी की मजबूत पकड़ है। 2019 में असदुद्दीन ओवैसी हैदराबाद लोकसभा सीट से जीतने में कामयाब रहे।
छोटे भाई की तरह ही बड़े भाई असदुद्दीन ओवैसी भी अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहते हैं। साल 2018 में महाराष्ट्र के लातूर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि संविधान में कहीं भी नहीं लिखा है कि किसी को भारत माता की जय बोलना है। उन्होंने कहा था कि अगर आप मेरे गले पर चाकू भी रखेंगे, तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा।
AIMIM की कमान संभालने के बाद असदुद्दीन ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बाहर महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की है।
हैदराबाद की छोटी सी पार्टी को असदुद्दीन ओवैसी ने कैसे दिलाई नेशनल पहचान
2012 में पहली बार आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बाहर दूसरे राज्य में AIMIM ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। इस साल महाराष्ट्र के नांदेड़ नगर निगम चुनाव में 81 सीटों में 11 सीटें AIMIM ने जीती थीं। 2015 में औरंगाबाद की 113 सीटों वाली म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में MIM ने 54 प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें 26 ने जीत हासिल की थी।
इस तरह की जीतों से AIMIM की हिम्मत बढ़ी और उसे लगा कि महाराष्ट्र में उसके लिए संभावनाएं हैं। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, बाद में इनके 4 विधायक लालू यादव की RJD में शामिल हो गए। इस तरह ओवैसी की पार्टी ने हिंदी पट्टी के राज्यों में भी सेंध लगा दी।
सीनियर जर्नलिस्ट आशीष दीक्षित एक इंटरव्यू में बताते हैं कि जैसे-जैसे BJP का राजनीतिक दायरा बढ़ा, उसी अनुपात में AIMIM के भी वोटों का दायरा बढ़ता गया। इसकी वजह ये है कि BJP ने आने के बाद तीन तलाक, आर्टिकल 370, CAA, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर काम करना शुरू किया। इससे मुस्लिमों के अंदर डर और असुरक्षा का माहौल बना। परिणाम ये हुआ कि मुस्लिमों के बीच ओवैसी की पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत हुई।
वहीं, BJP महासचिव राम माधव ने ओवैसी के राजनीतिक विस्तार पर एक इंटरव्यू में कहा था कि वह मुस्लिमों में असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर अपनी राजनीति को विस्तार दे रहे हैं। उनकी राजनीति भारत के लिए खतरनाक है क्योंकि यह मुसलमानों के बीच अलगाव की भावना को गहरा करती है।
माधव ने आगे कहा कि ओवैसी 21वीं सदी के जिन्ना बनने की कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना भी इन्हीं की तरह भारतीय मुसलमानों के हितों की वकालत करते थे।
क्या ओवैसी के पूर्वज ब्राह्मण थे?
जुलाई 2021 में राज्यसभा सांसद प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने दावा किया कि चार पीढ़ी पहले असदुद्दीन ओवैसी के पूर्वज हैदराबाद के ब्राह्मण थे। धर्म बदलने के बाद वह मुस्लिम बने।
करीब दो साल बाद अगस्त 2023 में जम्मू-कश्मीर के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘भारत में पैदा हुआ प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हिंदू है।’ इसके बाद दोबारा से ओवैसी के पूर्वजों को लेकर चर्चा तेज हो गई।
सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने दावा किया कि असदुद्दीन ओवैसी के दादा अब्दुल वहीद का नाम तुलसीराम दास था। मुस्लिम धर्म को स्वीकार करने से पहले वह ब्राह्मण थे और उन्होंने अपना धर्म बदल लिया था।
इस तरह के ट्वीट करने वालों को जवाब देते हुए ओवैसी ने कहा था, ‘यह मेरे लिए हमेशा मजेदार होता है कि जब उन्हें वंश गढ़ना होता है, तब भी संघियों को मेरे लिए एक ब्राह्मण पूर्वज ढूंढना पड़ता है। हम सभी को अपने कर्मों का जवाब देना होगा। हम सभी आदम और हव्वा के बच्चे हैं। जहां तक मेरी बात है, मुसलमानों के समान अधिकारों और नागरिकता के लिए लोकतांत्रिक संघर्ष आधुनिक भारत की आत्मा की लड़ाई है। यह ‘हिंदूफोबिया’ नहीं है।’
इससे पहले 2017 में राकेश सिन्हा ने जब ओवैसी के पूर्वजों को हैदराबाद का ब्राह्मण बताया था तो असदुद्दीन ने तब इसका जवाब देते हुए कहा था, ‘नहीं, मेरे परदादा, उनके परदादा और उनके परदादा और सभी दादा पैगंबर आदम से आए थे।’
ओवैसी के पूर्वजों के ब्राह्मण होने का कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं मिलता है।
अपने बड़े भाई असदुद्दीन के साथ अकबरुद्दीन ओवैसी। 2012 में विवादित बयान देने के बाद जब अकबरुद्दीन के खिलाफ केस दर्ज हुआ तो बड़े भाई ने ही उन्हें सरेंडर करने की सलाह दी थी।
क्या AIMIM पर काबिज होने के लिए तैयार है ओवैसी परिवार की नई पीढ़ी?
नवंबर 2018 में कुणाल कामरा को इंटरव्यू देते असदुद्दीन ओवैसी इस सवाल का जवाब देते हैं। वह कांग्रेस की तरह AIMIM को मानने से इनकार कर देते हैं। वह कहते हैं कि हमारी पार्टी का स्ट्रक्चर किसी एक व्यक्ति या परिवार के पास यानी सेंट्रलाइज नहीं है।
हमारी पार्टी कांग्रेस की तुलना में ज्यादा डेमोक्रेटिक है। हालांकि, ये पूछने पर कि क्या उनके बाद उनका बेटा पार्टी अध्यक्ष बनेगा।
ओवैसी ने कहा, ‘मैं अभी इस मामले में कुछ नहीं बोल सकता हूं। ये हमारी पार्टी तय करती है। मैं बस इतना कह सकता हूं कि आने वाले समय में मुझसे ज्यादा काबिल लोग पार्टी की जिम्मेदारी संभालेंगे।’ 11 दिसंबर 1996 को फरहीन नाम की लड़की से शादी करने वाले ओवैसी के छह बच्चे हैं।
इनमें एक बेटा और पांच बेटियां हैं। बेटे का नाम सुल्तानुद्दीन ओवैसी है, जिसकी उम्र करीब 13 साल है। पांच बेटियों का नाम खुदसिया ओवैसी, यासमीन ओवैसी, अमीना ओवैसी, महीन ओवैसी और अतिका ओवैसी है।
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