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क्या फैसला किया है रक्षा मंत्रालय ने मिलिट्री अकेडमी में ट्रेनिंग के दौरान डिसएबल्ड कैडेट्स के लिए?

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क्या फैसला किया है रक्षा मंत्रालय ने मिलिट्री अकेडमी में ट्रेनिंग के दौरान डिसएबल्ड कैडेट्स के लिए?

Defence Ministry : रक्षा मंत्रालय ने बड़ा फैसला लेते हुए रीसेटेलमेंट के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। हालांकि, डिसएबिलिटी पेंशन देने का फैसला नहीं हुआ, न ही ईसीएचएस सुविधा। सर्विस हेडक्वॉर्टर की तरफ से डिसएबिलिटी पेंशन देने का प्रस्ताव भेजा गया था। 2021 में सरकार ने संसद को बताया था कि डिसएबिलिटी पेंशन देने का प्रस्ताव विचाराधीन है।

 

हाइलाइट्स

  • रक्षा मंत्रालय ने कहा रीसेटेलमेंट के प्रस्ताव को मंजूरी
  • लेकिन डिसएबिलिटी पेंशन देने का नहीं हुआ फैसला, न ही ईसीएचएस सुविधा
  • सर्विस हेडक्वॉर्टर की तरफ से डिसएबिलिटी पेंशन देने का भेजा गया था प्रस्ताव
  • 2021 में सरकार ने संसद को बताया था कि डिसएबिलिटी पेंशन देने का प्रस्ताव विचाराधीन

नई दिल्ली : मिलिट्री ट्रेनिंग के दौरान चोट लग जाने की वजह से मेडिकल आधार पर जो कैडेट्स बाहर हो जाते हैं उन्हें भी रीसेटेलमेंट ( पुर्नस्थापन) सुविधा दी जाएगी। रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। हालांकि इसमें न तो डिसएबिलिटी पेंशन शामिल है ना ही ईसीएचएस की सुविधा। इसमें वह कुछ भी नहीं है जो सर्विस हेडक्वॉर्टर (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) ने अपने प्रस्ताव में भेजा था।

क्या है प्रस्ताव में

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक ऐसे कैडेट्स के लिए अवसरों को बढ़ाने के लिए, पुनर्वास महानिदेशालय द्वारा संचालित योजनाओं के लाभ के विस्तार की अनुमति दी गई है। इससे मेडिकल आधार पर निष्कासित हुए 500 कैडेट्स को योजनाओं का लाभ उठाने और उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। इसी तरह की स्थिति में भविष्य के कैडेटों को भी समान लाभ मिलेंगे। रीसेटेलमेंट सुविधा में क्या शामिल है, इस पर रक्षा मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि उन कैडेट्स को ऑयल प्रॉडक्ट एजेंसी में अलॉटमेंट के लिए 8 पर्सेंट कोटा के लिए इलेजिबल होने का सर्टिफिकेट दिया जाएगा।मदर डेरी मिल्क बूथ, फ्रूट और वेजिटेबल (सफल) शॉप का अलॉटमेंट हो सकेगा। एनसीआर में सीएनजी स्टेशन के मैनेजमेंट के लिए, एलपीजी डिस्ट्रिब्यूशनशिप के अलॉटमेंट के लिए, रेटल आउटलेट (पेट्रोल और डीजल) के अलॉटमेंट के लिए इलेजिबिलिटी सर्टिकेट दिया जाएगा। सिक्योरिटी एजेंसी स्कीम और टेक्निकल सर्विस स्कीम में शामिल किया जाएगा। ये सब अभी डिसएबल्ड पूर्व सैनिकों और सैनिकों की विडोज (विधवाओं) पर लागू होती हैं।

न डिसएबिलिटी पेंशन, न ईसीएचएस सुविधा

भारतीय सशस्त्र सेनाओं (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) ने दिव्यांग (डिसएबल) कैडेट्स को आर्थिक मदद और इलाज में मदद देने का जो प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा था उसमें डिसएबिलिटी पेंशन देने को कहा गया था। 2015 में रक्षा मंत्री ने इस मामले पर एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी तब भी कमिटी ने दिव्यांग कैडेट्स को डिसएबिलिटी पेंशन और आर्थिक मदद की सिफारिश की थी। लेकिन तब इसे स्वीकार नहीं किया गया। सर्विस हेडक्वॉर्टर्स ने फिर प्रस्ताव भेजा। जिसमें कहा गया कि अगर कैडेट डिसएबल हो जाता है या मौत हो जाती है तो आर्थिक मदद (एक्स ग्रेशिया) का प्रावधान किया जाए। इसके लिए उन्हें लेफ्टिनेंट की सैलरी के हिसाब से पेंशन दी जा सकती है।

अभी भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट की सैलरी 56510 रुपए है। पेंशन इसकी आधी होती है। कैंडेड्स सेना में लेफ्टिनेंट के तौर पर ही कमिशन होते हैं। प्रस्ताव में ये भी कहा गया था कि दिव्यांग कैडेट्स को पूर्व सैनिकों की तरह हेल्थ स्कीम ईसीएचएस में शामिल किया जाए। सरकार ने 4 अगस्त 2021 को संसद को बताया था कि डिसएबिलिटी पेंशन देने का प्रस्ताव मंत्रालय में विचाराधीन है। हालांकि ऐसा कुछ भी रीसेटेलमेंट सुविधा में शामिल नहीं किया गया है, जिसका ऐलान रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को किया।

क्यों जरूरी है कैंडेट्स की मदद

भारतीय आर्म्ड फोर्सेस (सेना, नेवी, एयरफोर्स) का हिस्सा बनने से पहले युवा जब तक एनडीए, आईएमए, ओटीए या नेवी और एयरफोर्स की अकेडमी में ट्रेनिंग कर रहे होते हैं तब तक उन्हें कैडेट्स कहा जाता है। वह जब ट्रेनिंग पूरी कर फौज में अधिकारी के तौर पर कमिशन होते हैं तब से उन्हें फौज का हिस्सा माना जाता है। लेकिन अगर ट्रेनिंग के दौरान कोई कैडेट डिसएबल हुआ या उसकी मौत हो गई तो सरकार या फौज की तरफ से उन्हें या परिवार वालों को कोई राहत नहीं दी जाती। दिव्यांग कैडेट्स को मदद देने का मसला संवेदनाओं से भी जुड़ा है। जब कोई युवा सेना का हिस्सा बनने आता है तो वह खुद को पूरी तरह देश को समर्पित करता है और अगर उसे कुछ हो गया तो उससे मुंह मोड़ लेना बिल्कुल सही नहीं है। ट्रेनिंग के दौरान डिसएबल होने के बाद कइयों को जिंदगी भर इलाज का भारी खर्चा उठाना पड़ता है। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 1985 के बाद अब तक करीब 500 डिसएबल कैडेट्स हैं। हर साल अलग अलग सैन्य अकेडमी में करीब 10-20 कैडेट्स मेडिकली अनफिट होने की वजह से बाहर हो जाते हैं।

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