NATIONAL NEWS

बात बराबरी की- फ्रांस में अबॉर्शन अब संवैधानिक अधिकार:सिर्फ औरत तय करेगी कि वो कब, कितने बच्चे पैदा करेगी या नहीं करेगी

TIN NETWORK
TIN NETWORK
FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

बात बराबरी की- फ्रांस में अबॉर्शन अब संवैधानिक अधिकार:सिर्फ औरत तय करेगी कि वो कब, कितने बच्चे पैदा करेगी या नहीं करेगी

फ्रांस का पैलेस ऑफ वर्साय 4 मार्च को एक ऐतिहासिक घटनाक्रम का गवाह बना। फ्रांस के संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया और इसी के साथ अब उस देश में अबॉर्शन यानी गर्भपात महिलाओं का संवैधानिक अधिकार बन गया है।

आज दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में अबॉर्शन लीगल है, लेकिन फ्रांस दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसने अबॉर्शन के कानूनी दर्जे से ऊपर उठकर उसे महिलाओं के संवैधानिक अधिकार का दर्जा दिया है। इसे आसान शब्दों में ऐसे समझें कि जैसे भारत का कानून अपने सभी नागरिकों को समता, स्वतंत्रता और शोषण व भेदभाव से रक्षा का बुनियादी संवैधानिक अधिकार देता है, वैसे ही अनचाही प्रेग्नेंसी को खत्म करने का बुनियादी और गारंटीड अधिकार अब फ्रांस की महिलाओं के पास है।

इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो समझ आता है कि यहां तक पहुंचने के लिए महिलाओं ने कितनी लंबी यात्रा तय की है। ज्यादा पुरानी बात तो नहीं। आज से महज 53 साल पहले 5 अप्रैल, 1971 को एक फ्रेंच मैगजीन में एक घोषणापत्र छपा। इस घोषणापत्र में फ्रांस की 343 औरतों के नाम और हस्ताक्षर थे। घोषणापत्र में महिलाओं ने अपने जीवन में कभी-न-कभी गर्भपात कराने की बात स्वीकार की। यह पब्लिक एनाउंसमेंट उस देश में और उस दौर में हो रहा था, जब गर्भपात गैरकानूनी था और उसे करने और कराने की सजा जेल थी। उस मेनिफेस्टो में सिमोन द बोवुआर का नाम भी शामिल था, जिन्होंने ‘द सेकेंड सेक्स’ जैसी ऐतिहासिक किताब लिखी।

वो वक्त ही सेकेंड वेव फेमिनिस्ट मूवमेंट का था। पूरी दुनिया में औरतें अपने बुनियादी अधिकारों, समता और स्वतंत्रता के लिए आवाज बुलंद कर रही थीं और पूरी दुनिया के अधिकांश लेफ्ट लिबरल समूह के मर्दों को इस बात से घोर आपत्ति थी। फ्रांस की लेफ्ट लिबरल वीकली मैगजीन ‘शार्ली एब्डो’ ने हेडलाइन लगाई, “हू गॉट द 343 स्लट्स/बिचेज फ्रॉम द अबॉर्शन मेनिफेस्टो, प्रेग्नेंट?” (इस मेनिफेस्टो की 343 बदचलन औरतों को प्रेग्नेंट किया किसने?)

मर्दों की यह शब्दावली औरतों के इरादे तो पस्त नहीं कर सकी। हां, उन्होंने उस मेनिफेस्टो का नाम जरूर बदलकर रख लिया- ‘मेनिफेस्टो ऑफ 343 स्लट्स.’

सिर्फ 53 साल में दुनिया ने इतना लंबा सफर तय किया है कि चुपके से छिपकर अबॉर्शन करवाने वाली महिलाओं को जेल में डालने से लेकर हम गर्भपात को उनका संवैधानिक अधिकार घोषित करने तक आ पहुंचे हैं।

इसीलिए तो उस दिन फ्रांस की संसद से लेकर सड़कों तक जश्न का माहौल था। पेरिस के ऐतिहासिक एफिल टॉवर के नीचे लोग गाने गा रहे थे, आतिशबाजी कर रहे थे, गले मिल रहे थे, मिठाइयां बांट रहे थे। उस भीड़ में सिर्फ वे युवा ही नहीं थे, जो एक आजाद, लोकतांत्रिक देश में पैदा हुए थे। बहुत सी ऐसी महिलाएं भी थीं, जो 1975 के पहले पैदा हुई थीं। जो यातना और पीड़ा की उन तमाम कहानियों की गवाह रहीं, जो औरतों ने अनचाहे बच्चे पैदा करते हुए, असुरक्षित ढंग से अबॉर्शन करवाते हुए झेली थीं।

उस दिन जब भीड़ एक सुर में जीत के, जश्न के नारे लगा रही थी, 35 साल की फ्रेंच सांसद मेतील्ड पेनो ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक जीत है। इस हक के समर्थन में पड़ा हर वोट आने वाली पीढ़ियों से किया गया एक वादा है कि हमारे बच्चों और उनके बच्चों को कभी वो यातना नहीं सहनी पड़ेगी, जिससे पिछली पीढ़ियों को गुजरना पड़ा। यह दुनिया भर की उन महिलाओं से किया गया एक वादा भी है, जो आज भी इस बुनियादी अधिकार के लिए लड़ रही हैं।”

फ्रांसीसी संविधान में किए गए इस महान संशोधन के खिलाफ सिर्फ 72 वोट पड़े, जबकि 780 वोट इसके समर्थन में थे। 80 फीसदी से ज्यादा पब्लिक वोट इस बदलाव के समर्थन में थे। फ्रांस के प्रधानमंत्री गेब्रियल एटल ने पूरे देश की महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा, “यह शरीर सिर्फ आपका है। किसी और को ये अधिकार नहीं कि वह इसे कंट्रोल करे या इस बारे में फैसला ले।”

फ्रांस की यह घटना पूरी दुनिया के लिए एक नजीर है। लेकिन खुशी के यह शब्द लिखते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि आज भी दुनिया के एक बड़े हिस्से में करोड़ों औरतों को यह बुनियादी अधिकार हासिल नहीं है। और उन देशों में दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका भी शामिल है।

आज भी करोड़ों औरतें अनचाहे बच्चों को जन्म दे रही हैं। गैरकानूनी ढंग से चोरी-छिपे अबॉर्शन करवाने के चक्कर में अपनी जान खतरे में डाल रही हैं। यूएन वुमेन का आंकड़ा कहता है कि पूरी दुनिया में हर साल तकरीबन 30,000 लड़कियां असुरक्षित ढंग से अबॉर्शन करवाने के चक्कर में अपनी जान खतरे में डालती हैं।

2021 में न्यूयॉर्क टाइम्स में एक खबर छपी, जो महीनों तक चर्चा में रहा। एक 13 साल की लड़की थी। वेनेजुएला की आर्थिक मंदी के चलते उसका स्कूल जाना बंद हो गया। मां काम पर जाती और बच्ची दिन भर घर में अकेली रहती। उसे अकेला देखकर एक पड़ोसी ने बच्ची के साथ रेप किया। बच्ची प्रेग्नेंट हो गई। गरीब कामगार मां के पास न पैसा था, न संसाधन। फिर बच्ची की एक स्कूल टीचर ने किसी तरह चुपके से बच्ची का अबॉर्शन करवाया। मामला बाहर आ गया। कोर्ट में पहुंचा और पता है कोर्ट ने क्या किया। कोर्ट ने गैरकानूनी ढंग से बच्ची का अबॉर्शन करवाने के लिए उस महिला टीचर को 10 साल जेल की सजा सुनाई। रेप करने वाले पड़ोसी का कुछ नहीं बिगड़ा। रेप का केस कभी बना ही नहीं। केस था, इललीगल अबॉर्शन का।

सोचकर देखिए, ये कैसा कानून है, जो एक रेप का शिकार हुई एक 13 साल की बच्ची से बच्चा पैदा करने की उम्मीद करता है। जो जबरन सेक्स, इंसेस्ट रेप के कारण प्रेग्नेंट हो गई लड़कियों तक को अनचाहे गर्भ को गिराने की इजाजत नहीं देता। जिसके लिए एक भ्रूण को खत्म करना एक जीती-जागती औरत को जिंदा खत्म कर देने से ज्यादा बड़ा अपराध है।

कैसी विडंबना है न कि मर्द कभी प्रेग्नेंट नहीं होते, मर्द बच्चे नहीं पैदा करते, वो कितना भी और कहीं भी सेक्स करें, इसका कोई परिणाम उनके शरीर को नहीं भुगतना पड़ता। लेकिन पूरी दुनिया में प्रेग्नेंसी, अबॉर्शन या औरत के शरीर से जुड़ी किसी भी तकलीफ से जुड़ा कानून वही बनाते हैं। जो खुद न कभी इस तकलीफ से गुजरते हैं, न महसूस करते हैं, फैसले वही देते हैं। कंट्रोल वही करते हैं। सिर्फ पिता, पति, भाई और बेटा बनकर नहीं, बल्कि देश के सर्वेसर्वा, कानून के रखवाले और कानून निर्माता बनकर भी।

आज दुनिया के तमाम देशों में औरतों को यह अधिकार मिला हुआ है, लेकिन सनद रहे कि इसके पीछे दसियों साल लंबा संघर्ष और लड़ाई है। किसी देश ने औरतों को यह हक थाली में सजाकर नहीं दिया। इसके लिए हमने लंबी लड़ाई लड़ी।

फिलहाल फ्रांस के इस ऐतिहासक फैसले का एक बार फिर से स्वागत किया जाना चाहिए और दुनिया में जब-जब और जहां-जहां औरतों के इस बुनियादी मानवाधिकार का उल्लंघन हो, हमें याद रखना चाहिए कि जिसका शरीर है, फैसला भी उसी का होगा।

मर्दों को कोई हक नहीं, वो औरतों को ये बताएं कि औरतें कब बच्चा पैदा करेंगी और कब नहीं करेंगी। मां बनना या न बनना, कब और कैसे बनना, कितनी बार बनना, यह सिर्फ औरत का फैसला होना चाहिए। फ्रांस ने अबॉर्शन को संवैधानिक अधिकार बनाकर इस फैसले का सर्वसम्मत अधिकार औरतों को सौंप दिया है। यह कितनी बड़ी बात है, ये सिर्फ वो औरतें जानती हैं, जो आज भी इस हक के लिए लड़ रही हैं।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!