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संगीत शब्द की नहीं सुर की साधना है: विरासत संवर्द्धन संस्थान अध्यक्ष टोडरमल लालानी

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बीकानेर 24 मई। “संगीत शब्द की नहीं सुर की साधना है, संगीत के पिपासु वस्तुतः संगीत साधक है, जो इतनी प्रचण्ड गर्मी में भी अलग अलग राज्यों से बीकानेर आये हैं। संगीत की साधना योग साधना की तरह ही है” ये उद्‌गार विरासत संवर्द्धन संस्थान के अध्यक्ष टोडरमल लालानी ने टी. एम. ओडिटोरियम में विरासत संवर्द्धन संस्थान, बीकानेर और सुर संगम संस्थान, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में उच्च स्तरीय भारतीय संगीत 6 दिवसीय कार्यशाला के शुभारम्भ के अवसर पर व्यक्त किये। लालानी ने कहा कि इस कार्यशाला की सार्थकता तभी होगी जब संगीत साधक प्रशिक्षार्थी अपनी कला में और अधिक निखार लाकर पारंगत बने।

इस अवसर पर सुर संगम के अध्यक्ष के. सी. मालू ने कहा कि संगीत प्रशिक्षण कार्यशाला में भारत के प्रसिद्ध संगीत गुरु पण्डित भवदीप जयपुर वाले व प्रो. डॉ. टी. उन्नीकृष्णन जैसे लब्ध प्रतिष्ठित संगीत प्रशिक्षक प्रशिक्षण देंगे। मालू ने इस कार्यशाला में टोडरमल लालानी के अमूल्य सहयोग हेतु आभार व्यक्त करते हुए उनके स्वस्थ, सुदीर्घ व कल्याणकारी जीवन की कामना की।

आज के प्रशिक्षण सत्र के प्रारम्भ में पं. भवदीप ने प्रशिक्षुओं को यमन राग के अलंकार, पलटा, स्वर मालिका आदि के साथ ही इस राग का पूरा परिचय आरोह, अवरोह व स्वरूप का अभ्यास करवाया। पं. भवदीप ने कहा कि जैस हवा को देखा नहीं जा सकता, महसूस किया जा सकता है, वैसे ही शब्द को देखा नहीं जा सकता, महसूस किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यमन राग का पुराना स्वरूप राग कल्याण था। पं. भवदीप ने कहा कि यमन राग सभी रागों का राजा है। उन्होंने बताया कि यमन राग के हर स्वर में बढ़त होती है, इसमें किसी भी स्वर से किसी अन्य स्वर में जाया जा सकता है एवं यह सबसे सरल राग है, इसीलिए सबसे पहले इसी राग का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षुओं ने आज के सत्र में राग यमन ठाड कल्याण व यमन राग की बंदिशे व तराना के साथ ही गायन व गजल का प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण में हारमोनियम पर पं. पुखराज शर्मा व तबले

पर गुलाम हुसैन से संगत की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए जतनलाल दूगड़ ने संगीत साधना में विशिष्ट लक्ष्य प्राप्त करने की तीव्र लालसा व महत्वकांक्षा से ही देश के विभिन्न राज्यों से समागत प्रशिक्षुओं का स्वागत करते हुए कहा कि संगीत साधकों के साथ ही आयोजकों ने जिस भावना से कार्यशाला का आयोजन किया है, उनकी भावना फलित हो। दूगड़ ने कामना की कि इतने योग्य प्रशिक्षकों के सान्निध्य में प्रशिक्षार्थी प्रति क्षण का सदुपयोग करते हुए अपनी कला में विशिष्ट पारंगतता प्राप्त करें। तभी सार्थकता है।

कामेश्वरप्रसाद सहल ने बताया कि कार्यशाला में आये कलाकारों की कल सायं 08:30 बजे फिल्मी गीत व लोक संगीत तथा रविवार की सायं 08:30 बजे गजल एवं ठुमरी मधुर प्रस्तुतियां भी होगी। बीकानेर के सभी कलाप्रेमी इसका रसास्वादन कर सकेंगे।

कार्यशाला के शुभारम्भ में मंगल प्रार्थना के साथ दीप प्रज्ज्वलन व मां सरस्वती को माल्यार्पण टोडरमल लालानी, के.सी.मालू, पं. भवदीप, मुकेश अग्रवाल के साथ ही कामेश्वरप्रसाद सहल, हेमन्त डागा, सम्पतलाल दूगड़, जतनलाल दूगड़, प. पुखराज शर्मा आदि ने किया।

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