NATIONAL NEWS

सुनहरी यादें और पल देकर बीकानेर थिएटर फेस्टिवल का हुआ समापन

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

पांच दिन में 21 नाटक, 3 रंग संवाद, एक सम्मान समारोह, पुस्तक प्रदर्शनी, चित्र प्रदर्शनी सहित 4 दिन की अभिनय कार्यशाला से शहर के कलानूरागी हुए लाभान्वित

बीकानेर। पांच दिन के बीकानेर थिएटर फेस्टिवल का आज दिन भर में पांच नाटको के मंचन के साथ विधिवत समापन हुआ। इन पांच दिनों में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल सहित विभिन्न राज्यों से आये नाट्य दलों में अपनी प्रस्तुतिया दी जिसे दर्शकों की भरपूर सराहना मिली। बीकानेर के लोग परिवार सहित नाटक देखने ऑडिटोरियम तक पहुँचे। लगभग सभी शो हाउस पैक रहे। लोगों ने करतल ध्वनि से कलाकारो का उत्साहवर्धन किया। मुख्य कार्यक्रम स्थल हंशा गेस्ट हाउस में सूर्य प्रकाशन मंदिर और गायत्री प्रकाशन द्वारा पांचो दिन पुस्तक प्रदर्शनी और पुस्तक दीर्घा का आयोजन हुआ। दर्शकों और पाठको ने किताबें पढ़ी, खरीदी और नाटक मंचन के साथ साहित्य पठन का आनंद लिया। इसके साथ ही चित्रकार श्रीबल्लभ पुरोहित की चित्र प्रदर्शनी और रंग पुरोधा सरताज माथुर के रंगकर्म पर आधारित रंग-सरताज प्रदर्शनी भी आम जन के अवलोकनार्थ रही। 18 से 22 मार्च तक सेठ तोलाराम बाफना एकेडमी में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रशिक्षकों द्वारा चार दिन तक रोजाना सुबह नाटक और अभिनय के दाँव-पेंच सिखाये। बीकानेर में पधारे सभी कलाकारों को बीकानेर का स्थानीय खान-पान का लुत्फ़ दिया गया, साथ ही होली के अवसर पर शहर में होनी वाली रम्मत और अन्य कार्यक्रमों में ले जाया गया ताकि वो इस शहर की रचनात्मक और अलमस्त संस्कृति को जान सके।

‘इस साल का निर्मोही नाट्य सम्मान रंगकर्मी सौरभ श्रीवास्तव को अर्पित’

समारोह के पांचवे और अंतिम दिन निर्मोही नाट्य सम्मान प्रदेश के वरिष्ठ रंगकर्मी सौरभ श्रीवास्तव को अर्पित किया गया। अनुराग कला केंद्र के महामंत्री कमल अनुरागी, देवकिसन व्यास और सुनील जोशी ने श्रीवास्तव को शॉल, प्रतीक चिन्ह और 21,000 की राशि सम्मान के तौर पर अर्पित की। सौरभ श्रीवास्तव जी के रंगकर्म पर बोलते हुए प्रदेश के वरिष्ठ रंगकर्मी शब्बीर हुसैन ने कहा कि जोधपुर के रंगकर्मियों के साथ महाभोज के मंचन के समय एक साथ 42 कलाकार मंच पर थे। सरकारी सेवा के साथ उन्होंने बाकी समय में भव्य और बड़े नाटक किये। अंग्रेजी नाटको का रूपांतरण किया। दो मौलिक नाटक प्रकाशित होने वाले है। सम्मान समारोह में निर्मोही व्यास का परिचय वरिष्ठ रंगनेत्री आभाशंकर ने दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि फेस्टिवल में हर साल प्रदेश के रंगकर्मी को नाट्य पुरस्कार दिए जाने की परंपरा कितनी अच्छी बात है। इससे पहले इस सम्मान से जयरूप जीवन, एस डी चौहान, विजय नाइक, गोपाल आचार्य, कैलाश भारद्वाज, राजेश तैलंग को अर्पित किया जा चुका है। सम्मान पत्र का वाचन चंचला पाठक ने और कार्यक्रम का संचालन हरीश बी शर्मा ने किया।

संक्रमण, डॉली, सीढ़िया, बाबूजी और हयवदन का हुआ मंचन

दिन का पहला नाटक सुबह 11.30 बजे जोधपुर के नाट्य दल द्वारा कामतानाथ की कहानी पर आधारित नाटक संक्रमण का मंचन किया गया। नाटक का निर्देशन अरु व्यास ने किया। नाटक में भवानी सिँह चौहान, स्वाति व्यास और राजेश बिश्नोई ने अभिनय किया। बाप-बेटे के रिश्ते के बीच प्यार, संघर्ष और उसे जता ना पाने का अफ़सोस जैसे मानवीय भावनाओं से भरे इस नाटक ने दर्शकों की आँखे भिगो दी। परिवार की जिम्मेदारियों और काम को लेकर बाप बेटे के अलग अलग सोच और उसके बीच माँ के जद्दोजहद के बावजूद आपस में प्रेम का होना महत्वपूर्ण है।

दिन का दूसरा नाटक ‘डॉली’ सेठ तोलाराम बाफना अकेडमी द्वारा प्रस्तुत किया गया। नाटक का निर्देशन रोहित बोड़ा ने किया। नाटक डॉली में मानवीय संवेदना को दर्शाया गया है। बीनू रानी शर्मा के लिखें इस नाटक में 8-10 साल की बच्ची डॉली जो कि अपने मामा-मामी के पास रहती, उसके पिताजी जिनकी मौत पांच साल पहले हो गई और मां जो की तपेदिक की मरीज है अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है। डॉली की मामी ये नहीं चाहती की डॉली उनके पास रहे। मामी डॉली पर तरह-तरह के जुल्म करती है।घर के सभी काम करवाती है।मामा चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते। नाटक में बाल मन की वेदना को दिखाया गया है।मामी डॉली की मां को घर पर आने नहीं देती और डॉक्टर ने जवाब दे दिया की मां को घर ले जाओ। डॉली जवाब मांग रही है कि मां आखिर जाए तो जाए कहां। कोनसा घर है जहां मां चैन से मर सके। नाटक में बाल मन की संवेदनाओं को दर्शाया गया है ।

दिन का तीसरा नाटक टाउन हॉल में नई दिल्ली के नाट्य दल द्वारा ‘झलकारी बाई’ प्रस्तुत किया गया। झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो झांसी का किला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। झलकारी बाई के जीवन पर आधारित ये नाटक है इस नाटक में झलकारी बाई की जीवन से जुड़े कथाओ पर आधारित नाटक है |

दिन का चौथा नाटक ‘बाबूजी’ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा प्रस्तुत किया गया। नाटक का निर्देशन राजेश सिंह ने किया।बाबूजी नाटक हमारे समाज के एक ऐसे तरीके का प्रतिनिधित्व करता है जो अपनी आजादी और शर्तों के साथ जीवन जीना चाहता है। नाटक के नायक बाबूजी एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने जीवन में सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ अपने भीतर के कलाकार को भी जीवित रखना चाहते हैं। नौटंकी जैसे लोकनृत्य में उनका शौक था, लेकिन इस नौटंकी के प्रति उनका प्रेम उनके पारिवारिक जीवन को भी नष्ट कर देता था। पत्नी, बेटा, उसके अपने साथी और समाज के लोग उसका साथ नहीं देते. उसे अपने ही घर से धक्के मारकर निकाल दिया जाता है. इन सबके बावजूद उनका समर्पण और प्रेम कम नहीं होता। तबले और हारमोनियम की गूंज आखिरी सांस तक उनके साथ रहती है। नाटक का प्रत्येक पात्र हमारे समाज के विभिन्न व्यक्तियों एवं साम्प्रदायिक विचारों का प्रतिनिधित्व करता है। हमारे समाज में आज भी एक कलाकार को अपने जीवन में काफी संघर्ष से गुजरना पड़ता है।

दिन का पांचवा और फेस्टिवल का आखिरी नाटक जबलपुर के नाट्य दल द्वारा ‘हयवदन’ प्रस्तुत किया गया। गिरीश कर्नाड़ के लिखें इस नाटक का निर्देशन अक्षय सिंह ने किया।
बेताल पच्चीसी की सिरों और धड़ों की अदला-बदली की असमंजस-भरी प्राचीन कथा तथा टॉमस मान की ‘ट्रांसपोज्ड हैड्स’ की द्वन्द्वपूर्ण आधुनिक कहानी पर आधारित यह नाटक जिस तरह देवदत्त, पद्मिनी और कपिल के प्रेम-त्रिकोण के समानान्तर ‘हयवदन’ के उपाख्यान को गणेश-वन्दना, भागवत, नट, अर्धपटी, अभिनटन, मुखौटे, गुड्डे-गुड़ियों और गीत-संगीत के माध्यम से एक लचीले रंग-शिल्प में पेश करता है, वह अपने-आपमें केवल कन्नड़ नाट्य-लेखन की ही नहीं, सम्पूर्ण आधुनिक भारतीय रंगकर्म की एक उल्लेखनीय उपलब्धि सिद्ध हुआ है। यह नाटक मानव-जीवन के बुनियादी अन्तर्विरोधों, संकटों और दबावों-तनावों को अत्यन्त नाटकीय एवं कल्पनाशील रूप में अभिव्यक्त करता है। प्रासंगिक-आकर्षक कथ्य और सम्मोहक शिल्प की प्रभावशाली संगति ही ‘हयवदन’ की वह मूल विशेषता है जो प्रत्येक सृजनधर्मी-रंगकर्मी और बुद्धिजीवी पाठक को दुर्निवार शक्ति से अपनी ओर खींचती है।

समापन के अवसर पर फेस्टिवल के सहयोगियों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!