130 करोड़ साल पुराने पहाड़ पर गोल्ड-सिल्वर की खोज:कोलकाता से अलवर की पहाड़ियों में पहुंचे एक्सपर्ट; पहले चांदी उगल चुका अरावली
अलवर
अलवर के करीब अरावली के पहाड़ों में 8 महीने पहले चांदी की खोज की गई थी। अब देशभर के एक्सपर्ट लगातार अलवर के आसपास फैली अरावली की पहाड़ियों में रिसर्च (खोज) के लिए पहुंच रहे हैं। 5 दिन से कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज के एक्सपर्ट और रिसर्चर (शोधार्थी) यहां डेरा डाले हुए हैं। 130 करोड़ साल पुराने इन पहाड़ों में मिनरल्स का अकूत भंडार मिलने की संभावना है। यहां 10 दिनों तक अरावली पर्वत श्रृंखला में रिसर्च की जाएगी। पांचवें दिन भास्कर की टीम रिसर्चर्स के पास पहुंची और ये जानने का प्रयास किया कि यहां भविष्य को लेकर क्या संभावनाएं हैं। कुल 24 की टीम खोज में जुटी है। इसमें 2 एक्सपर्ट और बाकी रिसर्चर हैं।
इस तरह क्लाइनोमीटर से पत्थरों के स्ट्रक्चर को जांच रहे।
लैब से मालूम चलेगा पहाड़ों का रहस्य
प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी कोलकाता के प्रो. मिलांजन दास गुप्ता ने बताया- 5 दिन पहले हम यहां पहुंचे थे। फिलहाल 5 दिन की और रिसर्च होगी। पहाड़ों में पहुंचकर ये पता लगाया जा रहा है कि इनका स्वरूप आखिर कैसे-कैसे बदला। 50 से 60 जगहों के सैंपल लिए जाएंगे। फिर लैब में इन सैंपल से मिनरल्स का पता करेंगे।
अधिक मिनरल मिलने पर रिपोर्ट जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) को देंगे। इसके अलावा खुद के रिसर्च पेपर (शोध पत्र) में भी जानकारी दी जाएगी। उन शोध पत्रों के आधार पर भी GSI अपना सर्वे कर सकती है। कहीं खनिज मिलने की पुष्टि होती तो वहां उसे निकालने का काम आगे बढ़ता है। अलवर अरावली के क्षेत्र में कुशालगढ़, डढीकर फोर्ट, खैरथल, पड़ीसल सहित कई अन्य जगहों पर जांच कर सैंपल लिए हैं। यहां से सैम्पल ले जाने के बाद लैब में मालूम किया जा सकेगा कि यहां के पत्थरों में और पहाड़ों के अंदर क्या छिपा हो सकता है।
प्रसिडेंसी यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता से आई टीम पहाड़ियों में रिसर्च कर रही है। पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को सैंपल के रूप में इकट्ठा किया जा रहा है।
130 करोड़ साल पुराना पहाड़
प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी (कोलकाता) के प्रो. मिलांजन दास गुप्ता बताते हैं- कुल 24 की टीम यहां आई है। अरावली के पहाड़ में कई रहस्य मिलने की संभावना है। इस पहाड़ के पत्थर पहले समुद्र के बहुत नीचे थे। अब धीरे-धीरे वक्त के साथ ये पहाड़ ऊपर आ चुके हैं। अब ये अरावली श्रृंखला में शामिल हो गए हैं। हम शोधार्थियों को समझा रहे हैं कि ये पत्थर किस तरह बने हैं। कैसे ये उबड़-खाबड़ हैं। इसकी बनावट में कैसे फर्क आया है।
हमारे साथ आए 22 शोधार्थियों के लिए ये बेसिक ट्रेनिंग भी है। इसमें खनिज से भरे पत्थर को पहचानना होता है। खुली आंखें जो भी देख सकती हैं, उसे रिकॉर्ड करते हैं। उसका ओरिएंटेशन करते हैं। फिर सैंपल लेकर जाते हैं। बाद में उसे माइक्रोस्कोप से देखा जाता है। तब पता लगता है कि पत्थर में कितने और किस प्रकार के खनिज हैं।
ये प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी (कोलकाता) के प्रो. मिलांजन दास गुप्ता हैं। इन्हीं के नेतृत्व में 24 सदस्यों की टीम अरावली की पहाड़ियों में रिसर्च कर रही है।
खनिज मिला तो GSI को देंगे सूचना
प्रो. आरनोफ साइन ने बताया- हम यहां से पहाड़ों के छोटे-छोटे हिस्सों को लेकर जाएंगे। लैब में ले जाकर खनिज ढूंढे जाएंगे। हमारी ड्यूटी है कि हमारी खोज में किसी खनिज की मात्रा दिखाई दी या अधिक मिली तो जीएसआई को सूचना देते हैं। बहुत बार हमारे शोध पत्र पढ़ने के बाद भी जीएसआई की टीम सर्वे करने पहुंच जाती है।
कई बार हम देखते हैं कि पत्थर के अंदर अलग-अलग रंग की लेयर होती है। उससे समझ आ जाता है कि पत्थर में कई तरह के मिनरल्स हैं।
ये है खास जर्मनी से मंगाया गया हैमर। इसके बिना पहाड़ों से सैंपल इकट्ठा नहीं किया जा सकता।
इन पत्थरों को ले जाएंगे साथ
रिसर्चर प्रीतम बनर्जी कहते हैं- हम पत्थर का मेजर कर रहे हैं। जैसे ये पत्थर कहां से कितना हिला हुआ है। इसकी रीडिंग क्लाइनोमीटर से पता चलता है। जैसे यह पत्थर 40 डिग्री घूमा हुआ है। अगर ऐसा मिलता है तो उसमें मिनरल्स की संभावना बढ़ जाती है। हम सैंपल कलेक्ट कर माइक्रोस्कोप से स्टडी करते हैं। इसके बाद पेट्रोलॉजी में गहनता से जांच होती है।
सोना भी उगल रहे अरावली के पहाड़
अलवर के थानागाजी में एक जगह सोना होने का पता चला है। वहां कई साल से जीएसआई की ओर से खुदाई चल रही है, जो बेहद गोपनीय जगह है। वहां किसी के आने-जाने की अनुमति भी नहीं है।
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