गुरुपूर्णिमा विशेष: जीवन में सच्चे गुरु का महत्व समझें, अंधविश्वास से बचे
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
गुरु, एक ऐसा शब्द है जो हर इंसान के जीवन में किसी न किसी रूप में मौजूद है। बच्चे के जन्म के समय उसकी मां से लेकर , पिता, परिवारजन और फिर शिक्षक इत्यादि, सब गुरु की भूमिका में होते हैं और ये सिलसिला जीवन पर्यंत चलता रहता है।हर क्षेत्र में गुरु की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है।और किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है।
धरती पर कृष्ण, महावीर, गोतम बुद्ध, जीसस, मोहम्मद, नानक कबीर ,मीरा जैसे अनेक गुरु हुए हैं जिन्होंने मार्ग दिखाकर मनुष्यता को एक नई दिशा दी है।
लेकिन सोशल मीडिया के इस युग में हर कोई खुद को गुरु मान बैठा है।सभी अपने अपने कार्य क्षेत्र में लोगों को ज्ञान देने लगे है, जो की कई बार प्रमाणिक भी नहीं ।
सबसे सच्चा गुरु वही जो अपने शिष्य को हाथ पकड़कर नहीं, बल्कि सही राह दिखाकर मंजिल पर पहुचाए। सब पका पकाया खाने के चक्कर मे, इंसान कर्मनिष्ठ होना भूल चुका है। बस अंधविश्वास के चलते इन गुरु का अनुसरण करते हैं और फिर कुछ हासिल न होने पर बदनाम करते हैं।या फिर खुद को ही मानसिक क्षति पहुंचा लेते हैं ।और आजकल तो देखने में आता है कि अंध भक्ति के कारण लोग अपना जीवन तक दांव पर लगा देते हैं। इसलिए अपनी चेतना को जाग्रत करें। सही गुरु का चयन करें जो आपको सही मार्ग दिखाए।
हम भूल चुके की सफलता कर्म करने से प्राप्त होती है, उपाय करने से नही।अन्यथा श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश न दिया होता।इसलिए वर्तमान में ऐसे गुरु की आवश्यकता है जो कर्म पर जोर दे। मनुष्य का अपने कर्तव्य का बोध कराए। आज की युवा पीढ़ी से यही विनती की हर किसी को अपना गुरु मानने से पहले एक बार अवश्य सोचें। और फिर सच्चे गुरु का चयन कर उनके बताए मार्ग पर चलकर खुद को प्रशस्त करें।
रुचिता तुषार नीमा











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