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मां पीएम थी, सरकार संजय गांधी चलाते थे:टारगेट के लिए कुंवारों तक की नसबंदी, झुग्गियों के सफाए में 400 मारे गए

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मां पीएम थी, सरकार संजय गांधी चलाते थे:टारगेट के लिए कुंवारों तक की नसबंदी, झुग्गियों के सफाए में 400 मारे गए

15 अप्रैल 1976। आपातकाल का दौर था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके का दौरा करने पहुंचे। ये मुस्लिम बहुल इलाका झुग्गियों से पटा था। जामा मस्जिद तक पहुंचने के लिए संजय को इन झुग्गियों की भूलभुलैया में घूमना पड़ा।

संजय गांधी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण के वाइस चेयरमैन जगमोहन से कहा कि इस इलाके की सफाई होनी चाहिए। जगमोहन समझ गए कि संजय कैसी ‘सफाई’ चाहते हैं। अगले ही दिन यानी 16 अप्रैल 1976 को पुरानी दिल्ली में बुलडोजर तैनात हो गए।

इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी ने दिल्ली की बस्तियों के सौंदर्यीकरण का कार्यक्रम चलाया था। ऐसी ही एक बस्ती का के दौरे पर गए संजय की तस्वीर।

इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी ने दिल्ली की बस्तियों के सौंदर्यीकरण का कार्यक्रम चलाया था। ऐसी ही एक बस्ती का के दौरे पर गए संजय की तस्वीर।

घर की महिलाओं को जबरदस्ती बाहर निकाला गया। एक तरफ लोगों के घर गिराए जा रहे थे, दूसरी तरफ उन्हें पकड़-पकड़कर जबरन नसबंदी शिविरों में ले जाकर नसबंदी की जा रही थी। इससे जामा मस्जिद, चांदनी चौक और तुर्कमान गेट के आस-पास रहने वाले लोगों में गुस्सा फैल गया।

अशोक चक्रवर्ती अपनी किताब ‘द स्ट्रगल विदिन: ए मेमॉयर ऑफ द इमरजेंसी’ में लिखते हैं कि हजारों लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। प्रशासन भी पीछे हटने को तैयार नहीं था क्योंकि संजय गांधी का आदेश था। पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी, जनता ने पत्थरबाजी। कई इंडिपेंडेंट रिसर्चर्स का कहना है कि इस क्लैश में करीब 400 लोगों की मौत हो गई।

इमरजेंसी की ज्यादतियों की जांच के लिए बने शाह कमीशन ने इस घटना में संजय गांधी, जगमोहन (डीडीए के वाइस चेयरमैन), टम्टा (नगर निगम के आयुक्त), भिंडर (पुलिस उप महानिरीक्षक) समेत कई लोगों को दोषी ठहराया, लेकिन किसी को सजा नहीं हुई।

इंदिरा सरकार में संजय गांधी के आदेश की कितनी तवज्जो थी, ये घटना उसकी एक बानगी भर है। वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता अपनी किताब ‘द संजय स्टोरी’ में लिखते हैं कि अगर संजय गांधी की प्लेन क्रैश में मौत न हुई होती तो इंदिरा के बाद राजीव नहीं, वही पीएम होते।

‘पीएम इन वेटिंग’ सीरीज के तीसरे एपिसोड में आज संजय गांधी से जुड़े किस्से…

जब 18 साल के संजय गांधी पर लगा कार चोरी का आरोप

इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के छोटे बेटे संजय का जन्म 14 दिसंबर 1946 को हुआ। किशोर संजय की तमाम शिकायतें इंदिरा तक पहुंचती रहती थीं। बात 1964 की है। 18 साल के संजय उस वक्त अपनी मां के साथ तीनमूर्ति भवन में रहते थे, जो नेहरू का प्रधानमंत्री निवास था।

फिरोज गांधी के साथ बड़े बेटे राजीव गांधी और सबसे दाएं संजय गांधी की तस्वीर

फिरोज गांधी के साथ बड़े बेटे राजीव गांधी और सबसे दाएं संजय गांधी की तस्वीर

वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता अपनी किताब ‘द संजय स्टोरी’ में लिखते हैं, ‘16 मई 1964 को दिल्ली में आर्मी के एक बड़े अफसर की नई और महंगी गाड़ी उनके निजामुद्दीन ईस्ट वाले घर से चोरी हो गई। चोरी करने वालों ने थोड़ी दूरी पर पेट्रोल पंपवालों को धमकी देकर फ्री में 20 लीटर पेट्रोल भरवाया। जब कार का पेट्रोल खत्म हुआ तो उसे पालम एयरपोर्ट के पास छोड़ दिया गया।’

मेहता लिखते हैं, ‘अगले दिन जब कार मिली तो उसमें लड़की के इनर्स, एक रस्सी, लोहे की रॉड, पेट्रोल की केन और शराब की खाली बोतलें मिलीं। कार आर्मी अफसर को लौटा दी गई।

सभी प्रमुख अखबारों ने ये खबर छापी, लेकिन चोरी करने वालों का नाम नहीं छापा। इतना ही लिखा कि इस चोरी में बड़े घर के लड़के शामिल हैं।

मेहता लिखते हैं, ‘दिल्ली से निकलने वाले ‘करंट’ अखबार ने इस चोरी में संजय गांधी के शामिल होने का दावा किया। इस अखबार के संपादक ने चुनौती भी दी कि अगर संजय इसमें शामिल नहीं हैं, तो इंदिरा इसे साबित करें। बाद में संजय ने दावा कि इस घटना के वक्त वो कश्मीर में ट्रैकिंग कर रहे थे। हालांकि इंदिरा ने इस पूरे मसले पर चुप्पी साध ली।’

विदेश से दो साल की ट्रेनिंग लेकर लौटे, अपनी कार बनानी शुरू की

संजय पढ़ाई में अच्छे नहीं थे। इसलिए उन्होंने अपनी हॉबी को ही करियर बनाने का फैसला किया। उन्हें सितंबर 1964 में इंग्लैंड के क्रेव स्थित रोल्स रॉयस के प्रोडक्शन प्लांट भेजा गया। ये तीन साल की ट्रेनिंग थी, जिसके लिए उन्हें हर हफ्ते 9 पाउंड सैलरी मिलती थी।

संजय को कार का शौक अपने पिता फिरोज गांधी से विरासत में मिला था। वो न सिर्फ कार चलाने बल्कि उसकी इंजीनियरिंग में भी दिलचस्पी लेते थे।

संजय को कार का शौक अपने पिता फिरोज गांधी से विरासत में मिला था। वो न सिर्फ कार चलाने बल्कि उसकी इंजीनियरिंग में भी दिलचस्पी लेते थे।

दिसंबर 1966 में ओवर स्पीडिंग के लिए संजय को इंग्लैंड की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट से माफी मांगने और जुर्माना भरने के बाद संजय छूटे। इसके बाद वे रोल्स रॉयस प्लांट की ट्रेनिंग अधूरी छोड़कर भारत लौट आए। तब तक उन्होंने एक स्वदेशी कार बनाने का सपना संजो लिया था।

संजय ने सबसे पहले दिल्ली के गुलाबी बाग में एक मैकेनिक अर्जुन दास के साथ मिलकर एक ऑटोमोबाइल वर्कशॉप शुरू की। वहां अपनी कार का प्रोटोटाइप बनाया। 1967 के मध्य तक संजय पूरे जुनून के साथ अपनी वर्कशॉप में काम करने लगे। वह सुबह आठ बजे वर्कशॉप में पहुंच जाते थे और देर रात को लौटते थे। एक बार वर्कशॉप में हुए एक धमाके में संजय बुरी तरह जल भी गए थे।

कार वर्कशॉप में कर्मचारियों के साथ डिस्कशन करते संजय गांधी।

कार वर्कशॉप में कर्मचारियों के साथ डिस्कशन करते संजय गांधी।

फेल हो गई संजय गांधी की बनाई कार, फिर भी लाइसेंस और 300 एकड़ जमीन मिली

1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बन चुकी थीं। विनोद मेहता लिखते हैं, ’13 नवंबर 1968 को संजय ने स्वदेशी स्मॉल कार बनाने का प्रपोजल दिया, जिसकी कीमत महज 6 हजार रुपए बताई गई।’

उद्योग विकास राज्य मंत्री रघुनाथ रेड्‌डी ने संसद में बताया कि स्मॉल कार प्रोजेक्ट के लिए दुनियाभर से 14 प्रपोजल आए थे, लेकिन सरकार को संजय गांधी का प्रोजेक्ट किफायती लगा, इसलिए उसे सिलेक्ट किया गया है। इंदिरा ने संसद में चुप्पी साधी, लेकिन बाहर कहा कि एक युवा की प्रतिभा को इसलिए नजरअंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि वो मेरा बेटा है।

संजय की बनाई कार का प्रोटोटाइप ट्रायल के दौरान ही बीच में बंद पड़ गया। इसे धक्का मारकर वापस लाया गया। इसके बाद भी सरकार ने संजय को 1974 में 50,000 कारों के प्रोडक्शन का लाइसेंस दे दिया। फैक्ट्री के लिए हरियाणा के सीएम बंसीलाल ने उन्हें गुडगांव में 12 हजार रुपए की कीमत पर 297 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपनी किताब ‘ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ द पीपुल बिहाइंड द फॉल एंड राइस ऑफ कांग्रेस 24 अकबर रोड’ में लिखते हैं कि बंसीलाल ने संजय को खुश करने के लिए 15 हजार किसानों को उनकी उपजाऊ जमीन से बेदखल कर दिया था। इसी प्रोजेक्ट के विरोध के चलते इंदिरा गांधी के सचिव रहे पीएन हक्सर को पद से हटा दिया गया।

संजय ने बैंकों से खूब लोन लिए, लेकिन कंपनी अपने लक्ष्य से पिछड़ गई। 1975 में आपातकाल के दौरान संजय पूरी तरह राजनीति में कूद पड़े। 1977 में इंदिरा गांधी की सरकार गिर गई। मारुति का मामला कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने इस पर ताला लगाने के आदेश जारी कर दिए।

आपातकाल के दौरान बिना औपचारिक पद के सरकार चलाते थे संजय गांधी

विनोद मेहता लिखते हैं, ‘1 अकबर रोड पर संजय गांधी का दिन सुबह 8 बजे शुरू होता था। इसी समय दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष जगमोहन, दिल्ली नगर निगम कमिश्नर बीआर टम्टा, डीआईजी पीएस भिंडर, एनडीएमसी चेयरमैन पीएम बहल जैसे अफसर संजय को अपनी डेली रिपोर्ट पेश करते थे। इसी समय वो संजय से आदेश भी लेते थे। इनमें से ज्यादातर लोग उन्हें सर कह कर पुकारते थे।’

आपातकाल के दौरान संजय गांधी के करीब और भरोसमंद टीम। फोटो में संजय गांधी के साथ कमलनाथ, जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार दिख रहे हैं।

आपातकाल के दौरान संजय गांधी के करीब और भरोसमंद टीम। फोटो में संजय गांधी के साथ कमलनाथ, जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार दिख रहे हैं।

संजय वक्त के इतने पाबंद थे कि उन्हें देखकर घड़ी मिलाई जा सकती थी। ठीक 8.45 बजे वो अपने मेटाडोर में बैठकर गुड़गांव स्थित मारुति फैक्ट्री के लिए रवाना होते थे। 12.55 बजे वो लंच के लिए घर लौटते थे। दोपहर 2 बजे के बाद वो केंद्रीय मंत्रियों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों और यूथ कांग्रेस के नेताओं से मिलते थे। उनसे मिलने वालों के स्वागत में न वो खड़े होते थे और न हाथ मिलाते थे।

संजय गांधी से भिड़े केंद्रीय मंत्री गुजराल, पद से हाथ धोना पड़ा

आपातकाल का वक्त था। इंद्र कुमार गुजराल सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। पत्रकार वीर सांघवी को दिए इंटरव्यू में गुजराल ने बताया था, ‘मुझे प्राइम मिनिस्टर हाउस से फोन आया कि मैं PM से मिलने आऊं। मैं साढ़े 10 या 11 बजे के करीब वहां पहुंचा। तब तक प्रधानमंत्री अपने दफ्तर के लिए निकल चुकी थीं।

मैं जब बाहर आने लगा तभी संजय गांधी आ गए। उस दिन उनका मूड बहुत खराब था, क्योंकि आकाशवाणी के एक चैनल ने इंदिरा गांधी की स्पीच का प्रसारण नहीं किया था।’

संजय ने झल्लाते हुए कहा, ‘देखिए, ऐसा नहीं चलेगा।’

गुजराल ने जवाब दिया, ‘देखिए, जब तक मैं हूं, ऐसा ही चलेगा।’

संजय गांधी चिल्लाने लगे। इस पर गुजराल ने कहा- आपको बात करनी है तो थोड़ा सलीका सीखिए। आपको यह तक नहीं पता कि बड़ों से कैसे बात की जाती है। मेरी आपके प्रति कोई जवाबदेही नहीं है। मैं आपकी मां का मंत्री हूं, आपका नहीं।’ इसके बाद ही गुजराल के हाथों से सूचना और प्रसारण मंत्रालय छीन लिया गया।

संजय गांधी और गुजराल की मुलाकात का सीन। (स्केच:संदीप)

संजय गांधी और गुजराल की मुलाकात का सीन। (स्केच:संदीप)

किशोर ने गाने से मना किया तो संजय ने बैन लगवा दिया

जनवरी 1976 की बात है। संजय के दिमाग में आया कि क्यों न कांग्रेस के बीस सूत्रीय कार्यक्रम के प्रचार के लिए लाइव शो किए जाएं। इन लाइव शो में फिल्मी सितारों, संगीतकारों और गायकों की परफॉर्मेंस करवाई जाए। ये वो दौर था जब किशोर कुमार के गाए गाने देश का बच्चा-बच्चा गुनगुनाता था। किशोर कुमार को अमानुष फिल्म के दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा… गीत के लिए बेस्ट मेल सिंगर का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला था।

‘किशोर कुमार: द अल्टीमेट बायोग्राफी’ लिखने वाले लेखक और पत्रकार अनिरुद्ध भट्टाचार्य और पार्थिव धर पूरा किस्सा बताते हैं। एक दिन दिल्ली से ट्रंक कॉल आया। फोन करने वाले ने नाम बताए बिना कहा कि आपको संजय गांधी के कार्यक्रम के लिए दिल्ली आना होगा। किशोर ने कहा आप कौन? उधर से जवाब आया बर्नी। बर्नी यानी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में तत्कालीन सचिव सैयद मुजफ्फर हुसैन बर्नी थे।

किशोर ने बर्नी से कहा-प्लीज आप मेरे सेक्रेटरी से बात करें या पहले अपॉइंटमेंट लें। ये बात सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल तक पहुंची। उन्हें पता था कि संजय न नहीं सुनते। इसलिए विद्याचरण शुक्ल ने अपने बॉस को खुश करने के लिए तुरंत बर्नी से कहा कि वे बंबई (मुंबई) में कुछ सरकारी अधिकारी और बॉलीवुड के प्रतिनिधियों के साथ मीटिंग करें।

29 अप्रैल 1976 को हुई इस बैठक में किशोर ने कहा कि मैं गले में हारमोनियम लटकाकर किसी भी धुन पर नाच-गा सकता हूं, लेकिन सरकार की धुन पर नहीं। 9 साल बाद प्रीतीश नंदी को दिए इंटरव्यू में किशोर ने बताया कि कोई प्यार और सम्मान के लिए बुलाता तो मैं जरूर जाता। वहां कोई मेरे सिर पर पैर रखना चाहता था तो ऐसे मैं कैसे शिष्टाचार दिखाता।

इसी कार्यक्रम के लिए किशोर कुमार को बुलाया गया था, लेकिन उन्होंने गाने से मना कर दिया था। फोटो में अभिनेता दिलीप कुमार के साथ संजय गांधी।

इसी कार्यक्रम के लिए किशोर कुमार को बुलाया गया था, लेकिन उन्होंने गाने से मना कर दिया था। फोटो में अभिनेता दिलीप कुमार के साथ संजय गांधी।

किशोर कुमार की एक और जीवनी लिखने वाले शशिकांत किनिकर ‘किशोर कुमार-अ वर्सेटाइल जीनियस’ में लिखते हैं कि जब संजय गांधी को बताया गया कि किशोर नहीं आ रहे हैं, तो उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। उन्होंने विद्याचरण शुक्ल से कहा कि अब किशोर के गाने किसी भी सरकारी प्लेटफॉर्म पर नहीं बजने चाहिए। इसके बाद सबसे पहले ऑल इंडिया रेडियो पर किशोर के गाने बंद हो गए। फिर सेंसर बोर्ड ने उन सभी फिल्मों को पास करने से मना कर दिया जिनमें किशोर ने गाने गाए थे।

सरकारी अफसरों ने संजय गांधी को खुश करने के लिए ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कंपनियों से कॉन्टैक्ट किया। उनसे ‘किशोर कुमार के गानों के सभी रिकॉर्ड फ्रीज करने को कहा। ये भी कहा कि अब वे किशोर कुमार का कोई भी रिकॉर्ड नहीं बेचेंगे।

संजय हमेशा नेताओं से घिरे रहते थे। सबको पता था कि वो आने वाले पीएम हैं। नसबंदी अभियान के दौरान रोज अफसर उन्हें रिपोर्ट करते थे। राज्यों के सीएम संजय काे खुश करने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर लोगों की नसंबदी करवा रहे थे।

संजय हमेशा नेताओं से घिरे रहते थे। सबको पता था कि वो आने वाले पीएम हैं। नसबंदी अभियान के दौरान रोज अफसर उन्हें रिपोर्ट करते थे। राज्यों के सीएम संजय काे खुश करने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर लोगों की नसंबदी करवा रहे थे।

टारगेट पूरा करने के लिए कुंवारों की भी करवा दी नसबंदी

संजय के पांच सूत्रीय कार्यक्रमों में से एक था फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम। इसके तहत किसी भी तरह से देश की बढ़ती आबादी को रोकना था। ये प्रोग्राम सीधे तौर पर संजय गांधी देख रहे थे। रशीद किदवई लिखते हैं, ‘इसकी रिपोर्टिंग संजय को होती थी। संजय सीधे राज्य के मुख्यमंत्रियों को निर्देश दे रहे थे। मुख्यमंत्री भी जानते थे कि संजय आने वाले पीएम हैं। यही कारण था कि मुख्यमंत्रियों ने संजय को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।’

हरियाणा के सीएम बंसीलाल ने अपने टारगेट से चार गुना नसबंदियां कर ली थी। वहीं मध्यप्रदेश ने तीन गुना, यूपी ने दोगुना नसबंदियां की थीं।

आंकड़े भले ही बड़े हो, लेकिन इनके पीछे की कहानियां बेहद डरावनी थीं। टारगेट पूरा करने के लिए सरकारी मशीनरी ने जबरदस्ती करते हुए 164 कुंवारों की भी नसबंदी कर दी थी। 11,434 ऐसे लोग थे, जिनका केवल एक बच्चा था।

नसबंदी के बाद एक सर्टिफिकेट दिया जाता था। फर्जी मार्कशीट बनाने वाले अब नसंबदी के फर्जी सर्टिफिकेट बनाने के धंधे में कूद चुके थे। ये खुलासा तब हुआ जब पुलिस ने फर्जी सर्टिफिकेट बनाने वाले एक गिरोह को पकड़ा और उससे नसबंदी वाला सर्टिफिकेट मिला।

दिल्ली के जामा मस्जिद एरिया में रहने वाली 26 साल की एक मुस्लिम महिला टीबी से पीड़ित अपने पति को जीबी पंत अस्पताल लेकर गई। अस्पताल वालों ने टारगेट पूरा करने के लिए पति से कहा कि वो नसबंदी करा ले। उसके पति ने इनकार कर दिया, इसलिए उसे भर्ती नहीं किया गया। जब पति ने नसबंदी करा ली तो उसे टीबी के इलाज के लिए भर्ती कर लिया गया।

नसबंदी के दौरान सबसे ज्यादा फजीहत सरकारी कर्मचारियों, उनमें भी टीचर्स की हुई। हर टीचर को हर महीने पांच लोगों को नसंबदी के लिए प्रेरित करके उनकी नसबंदी कराना था। मना करने पर सस्पेंड कर दिया जाता था। अगर किसी का तीसरा या चौथा बच्चा है तो उसे तब ही स्कूल में एडमिशन दिया जाता था जब तक वह नसबंदी का सर्टिफिकेट पेश न कर दे।

जनता को दी जाने वाली सारी सुविधाएं नसबंदी सर्टिफिकेट पर टिकी थीं। सरकारी अस्पताल में इलाज, राशन की दुकान से सामान तभी मिलता था जब पति या पत्नी में से कोई एक नसबंदी का सर्टिफिकेट पेश कर दे।

इंदिरा गांधी को आशंका थी कि जनता सरकार बदले की भावना के चलते संजय को मरवा सकती है। संजय पार्टी के हर काम में दखल रखते थे। यूथ कांग्रेस में उन्हीं के कारण नया जोश आया था।

इंदिरा गांधी को आशंका थी कि जनता सरकार बदले की भावना के चलते संजय को मरवा सकती है। संजय पार्टी के हर काम में दखल रखते थे। यूथ कांग्रेस में उन्हीं के कारण नया जोश आया था।

मां को आशंका थी कि संजय के साथ कुछ बुरा हो सकता है

लेखक नीरजा चौधरी अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में लिखती हैं कि चुनाव हारने के बाद 11 अप्रैल 1977 को इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री आवास छोड़कर 12 विलिंग्टन क्रिसेंट में एक सरकारी बंगले में रहने चली गईं। ये बंगला उनके लिए उनके खास दोस्त और सांसद मोहम्मद यूनुस ने खाली किया था। जनता सरकार ने इस पर कोई आपत्ति नहीं ली।

उद्योगपति कपिल मोहन गांधी परिवार के पुराने घनिष्ठ मित्र थे। वे इस स्थिति में भी गांधी परिवार के साथ थे। उन्होंने 12 विलिंग्टन क्रिसेंट के बंगले पर इंदिरा गांधी से कहा- मैडम आप चिंता मत कीजिए। मैं बाकी का सामान मंगाने के लिए जल्दी ही पैकर्स बुलाता हूं। वो सारा सामान बिना टूट-फूट के यहां तक ले आएंगे।

इंदिरा ने कपिल से कहा मुझे सामान या अपनी नहीं, संजय की चिंता है। इंदिरा ने कहा कि पता नहीं वो संजय के साथ क्या करेंगे। यही बात वो बार-बार दोहराती रहीं कि वो उसे जीने नहीं देंगे।

जून महीने के पहले सप्ताह में इंदिरा गांधी ने कपिल मोहन से कहा कि संजय को अपने सोलन वाले गेस्ट हाउस भिजवा दीजिए। संजय गुप्त रूप से वहां रहने लगे। उनके साथ कपिल के भतीजे अनिल बाली भी थे। गेस्ट हाउस के केयर टेकर के अलावा संजय अपने साथ दिल्ली से नौकर भी ले गए थे। 31 साल के संजय वेजिटेरियन थे। वे खाने में मशरूम, सब्जियां, फल और दूध लेना पसंद करते थे।

कभी-कभी संजय टहलने के लिए बाहर निकल जाते थे। एक दो बार ऐसा हुआ तो अनिल घबरा गए। अनिल ने संजय को एक मंकी कैप दिलाई ताकि लोग उन्हें पहचान न पाए। दरअसल, देश में संजय गांधी को आपातकाल का खलनायक माना जाता था। यही कारण था कि लोग संजय से नाराज थे।

कभी बेपरवाह होकर आसमान में विमान चलाने वाला नेता अब मंकी कैप के पीछे अपनी पहचान छिपाने को मजबूर था। जैसे-तैसे संजय ने 15 दिन काटे और 16वें दिन उन्होंने दिल्ली लौटने का फैसला किया। सोलन से दिल्ली तक संजय अपनी कार खुद चलाकर आए थे। उनके पीछे-पीछे अनिल बाली दूसरी कार से आ रहे थे।

हिमाचल के कालका में अचानक संजय की कार खराब हो गई। जब कार स्टार्ट नहीं हुई तो उसकी प्रॉब्लम जानने के लिए संजय कार से बाहर निकले। लोगों ने संजय को पहचान लिया और वहां भीड़ लग गई। आक्रामक भीड़ की नाराजगी बता रही थी कि वे अभी तक इमरजेंसी को नहीं भूले हैं। लोग संजय को मारने के लिए तैयार हो गए। तभी अनिल बाली ने संजय को अपनी कार में बैठाया और वहां से निकल गए।

अब आखिर में संजय और मेनका की प्रेम कहानी…

लेखक खुशवंत सिंह अपनी जीवनी ‘ट्रूथ, लव एंड ए लाइफ’ में लिखते हैं- संजय और मेनका की पहली मुलाकात 14 दिसंबर 1973 को एक पार्टी में हुई थी। ये पार्टी मेजर जनरल कपूर ने अपने बेटे वीनू कपूर की शादी के मौके पर रखी थी। 27 साल के संजय की पर्सनैलिटी प्रभावशाली थी। वो उस समय देश के मोस्ट एलिजिबल बैचलर थे। वह ऑटोमोबाइल फील्ड से थे और देसी कार बनाने की कोशिश कर रहे थे।

तब आर्मी कर्नल की बेटी मेनका आनंद केवल 17 साल की थीं। वह दुबली और मनमोहक लड़की थीं। उन्होंने हाल ही में कॉलेज का ब्यूटी कॉन्टेस्ट जीता था। इसके अलावा एक टॉवर मैन्युफैक्चरर कंपनी के लिए मॉडलिंग भी की थी। पहली ही मुलाकात में संजय मेनका की ओर आकर्षित हो गए।

वह शाम संजय ने मेनका से बात करते हुए बिताई। अगले दिन दोनों फिर मिले और फिर रोज मिलने लगे। उन्हें पता था कि वे पीएम के बेटे हैं, इसलिए वे मेनका से किसी रेस्टोरेंट में नहीं मिलते थे। उनके मिलने का स्थान या तो उनका घर होता था या मेनका का घर।

खुशवंत सिंह लिखते हैं- संजय ने 1974 की शुरुआत में मेनका को अपनी मां इंदिरा गांधी से मिलवाने के लिए खाने पर बुलाया। मेनका बहुत घबराई हुई थीं। डिनर टेबल पर दोनों चुप थे। इंदिरा ने चुप्पी तोड़ी और कहा संजय ने मुझे आपके बारे में मुझे कुछ नहीं बताया है। बेहतर होगा कि आप ही अपने बारे में बताइए। आपका नाम क्या है और आप क्या करती हैं?

इससे पहले भी संजय के साथ घर में कई लड़कियां आई थीं, लेकिन संजय ने उन्हें कभी अपनी मां से नहीं मिलवाया था। यही कारण था कि इंदिरा समझ गई थीं कि मेनका उनकी बहू होगी। इंदिरा चाहती थीं कि जिस तरह से उनके बड़े बेटे राजीव ने अपनी मर्जी से इटली मूल की सोनिया से शादी की है, संजय भी अपनी मर्जी से ये फैसला लें।

29 जुलाई 1974 को पीएम हाउस में दोपहर एक बजे औपचारिक सगाई समारोह हुआ। इसमें दोनों परिवार के सदस्य थे।

संजय गांधी की शादी में केवल 15 मेहमान ही बुलाए गए थे। फोटो में इंदिरा गांधी, संजय-मेनका और राजीव गांधी।

संजय गांधी की शादी में केवल 15 मेहमान ही बुलाए गए थे। फोटो में इंदिरा गांधी, संजय-मेनका और राजीव गांधी।

पीएम इंदिरा गांधी ने अपनी होने वाली छोटी बहू को शगुन के रूप में सोने का एक सेट और एक तनचोई साड़ी दी। जब एक महीने बाद 26 अगस्त को मेनका का बर्थडे आया तो इंदिरा ने उसे इटली सिल्क की साड़ी दी।

इसके बाद संजय को हार्निया का ऑपरेशन कराना पड़ा। सुबह कॉलेज जाने के बाद मेनका दोपहर और शाम को अपने मंगेतर की एम्स दिल्ली के प्राइवेट वार्ड में देखभाल करती थीं। अस्पताल से छुट्‌टी के कुछ दिन बाद 23 सितंबर 1974 को संजय और मेनका की शादी हो गई। इंदिरा गांधी ने अपनी बहू को 21 कीमती साड़ियां, एक लहंगा, सोने के दो सेट के अलावा एक और खादी की साड़ी दी। ये वो साड़ी थी जो उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी की लड़ाई के दौरान जेल में रहने के समय अपने हाथों से बुनी थी।

इंदिरा गांधी की असिस्टेंट रहीं ऊषा भगत कहती थीं, ‘मेनका बहुत जोशीली, लेकिन अपरिपक्व और महत्वाकांक्षी थीं। वह बातों-बातों में कई बार कह चुकी थीं कि संजय एक दिन प्रधानमंत्री होंगे। उनकी इस बात से आसपास के लोग सकुचा जाते थे।’

ये वही विमान है जिसमें संजय गांधी ने आखिरी सवारी की थी।

ये वही विमान है जिसमें संजय गांधी ने आखिरी सवारी की थी।

विमान दुर्घटना में संजय की मौत, 72 घंटे बाद रोईं इंदिरा

1976 में संजय को छोटे विमान उड़ाने का लाइसेंस दिया गया था। जब जनता सरकार आई तो संजय का लाइसेंस सस्पेंड कर दिया गया। कांग्रेस सरकार के फिर से आने पर सरकार ने सबसे पहला जो काम किया वो संजय का लाइसेंस बहाल करना था।

योग गुरु स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने मई 1980 में एक टू सीटर ‘पिट्स S-4A’ विमान इम्पोर्ट करवाया था। ये हवा में कलाबाजियां कर सकता था। विमानों के दीवाने संजय गांधी इस विमान को उड़ाने वाले पहले शख्स बनना चाहते थे, लेकिन पहली बार उसे दिल्ली फ्लाइंग क्लब के इंस्ट्रक्टर ने उड़ाया। संजय गांधी ने इसे पहली बार 21 जून 1980 को उड़ाया था।

अगले दिन 22 जून को वे पत्नी मेनका को लेकर आए। चालीस मिनट की ये उड़ान मेनका के लिए बहुत डरावनी थी। मेनका ने घर आते ही अपनी सास इंदिरा गांधी से शिकायत की थी कि वे संजय से कहें कि विमान को इस तरह से न उड़ाया करें।

मेनका गांधी अपनी किताब ‘संजय गांधी’ में लिखती हैं कि संजय को रोज सुबह 6 से 10 बजे तक दिल्ली फ्लाइंग क्लब में समय बिताना पसंद था। वो वहां 16-17 साल के लड़कों को विमान उड़ाना सिखाया करते थे। इन लड़कों में मेरा भाई भी हुआ करता था। मेनका लिखती हैं कि 23 जून 1980 को संजय उस विमान में उड़ने के लिए सुबह साढ़े सात बजे सफदरजंग एयरपोर्ट के लिए निकले थे।

उस दिन ‘पिट्स S-4A’ में माधवराव सिंधिया संजय के साथ उड़ान भरने वाले थे, लेकिन वो एयरपोर्ट के पास रहने वाले कैप्टन सुभाष सक्सेना के घर पहुंचे। थोड़ी देर बाद दोनों ने उड़ान भरी और कुछ देर बाद हवा में कलाबाजियां करते हुए विमान क्रैश हो गया। संजय और सुभाष दोनों की इस हादसे में मौत हो गई।

बेटे की मौत के 72 घंटे बाद इंदिरा पार्टी के नेताओं के साथ कार्यालय में बैठी थीं। संजय का नाम आया तो रो पड़ीं। यह पहली बार था जब इंदिरा के आंसू लोगों के सामने नजर आए। उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला। 27 जून को जब वे अपने दफ्तर पहुंचीं तो उन्होंने कहा था, ‘लोग तो आते-जाते रहते हैं, पर राष्ट्र सदैव जीवंत रहता है।’

1980 में संजय की मौत के बाद बेटे के सपने को साकार करने के लिए इंदिरा ने मारुति प्रोजेक्ट को फिर से शुरू किया। जापान की सुजुकी कंपनी के साथ मिलकर काम किया गया। पहली मारुति सुजुकी-800 कार 14 दिसंबर 1983 को संजय गांधी की 37वीं जयंती पर डिलीवर की गई।

अपने लाडले बेटे की मौत के 72 घंटे बाद इंदिरा गांधी अपने आंसू नहीं रोक पाईं। ये फोटो तभी की है जब उनकी आंखें भरी हुई थीं। फोटो मेनका गांधी की किताब 'संजय गांधी' से।

अपने लाडले बेटे की मौत के 72 घंटे बाद इंदिरा गांधी अपने आंसू नहीं रोक पाईं। ये फोटो तभी की है जब उनकी आंखें भरी हुई थीं। फोटो मेनका गांधी की किताब ‘संजय गांधी’ से।

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