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लक्ष्मीनारायण रंगा का साहित्य मानवीय संवेदनाओं का सच्चा दस्तावेज है- केवलिया

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बीकानेर। सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर के तत्वावधान में हिन्दी- राजस्थानी के दिवंगत साहित्यकार लक्ष्मी नारायण रंगा की 91वीं जयंती के अवसर पर राजकीय संग्रहालय परिसर स्थित संस्था कार्यालय में पुष्पांजलि एवं विचाराजंली का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मदन केवलिया ने की, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी थे। विशिष्ट अतिथि सम्पादक-व्यंगकार डाॅ.अजय जोशी रहे। लक्ष्मी नारायण रंगा के संपूर्ण साहित्य पर डॉ. गौरी शंकर प्रजापत ने पत्र वाचन किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ.मदन केवलिया ने कहा कि लक्ष्मी नारायण रंगा गंभीर शब्द साधक, मानवीय चेतना एवं सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध बहुविधाविद साहित्यकार थे, उन्होंने कहा कि रंगा की रंग निष्ठा, सम्पादन – कला, गंभीर गहरा चिंतन एवं भाषा कौशल रेखांकित करने योग्य है। डॉ० केवलिया ने कहा कि रंगा का समृद्ध एवं समग्र हिन्दी-राजस्थानी का साहित्य मानवीय संवेदनाओं का सच्चा दस्तावेज है। उनके व्यक्तित्व एवं कृत्तिव्व से नई पीढी प्रेरणा लेती रही है एवं भविष्य में लेती रहेगी।
मुख्य अतिथि कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि सैकड़ो पुस्तकों के रचयिता लक्ष्मीनारायण रंगा ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं मे उल्लेखनीय लेखन करते हुए समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया। जोशी ने कहा कि वे जन के रचनाकार थे।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ.अजय जोशी ने कहा कि
लक्ष्मीनारायण रंगा एक अच्छे साहित्यकार और रंगकर्मी के साथ साथ श्रेष्ठ शिक्षाविद भी थे। जोशी ने कहा कि उनके साहित्य को जन जन तक पहुंचाने हेतु सभी को मिल जुल कर प्रयास करने की आवश्यकता है।
पत्र वाचन करते हुए डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा लक्ष्मी नारायण रंगा किसी एक विधा से बंधे हुए साहित्यकार नहीं थें बल्कि उन्होंने हर विधा और विषय पर अपनी कलम चलाई। उनके जीवन का मूल मंत्र था “बस उतने ही पल बच पाऊंगा, जीतने पल रच पाऊंगा” इसी सृजन भाव से समर्पित रंगा जी का जीवन एक सृजन अनुष्ठान की तरह था। इन्होंने हर रोज साहित्य रच कर साहित्य का भण्डार भरा।
युवा संगीतज्ञ गौरीशंकर सोनी ने रंगाजी के गीतो की संगीतमय प्रस्तुति दी। प्रारंभ में वरिष्ठ साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने स्वागत उद्बोधन करते हुए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से विचार रखे।
शायर अब्दुल शकूर सिसोदिया ने रंगा जी को गंगा-जमुनी संस्कृति का कवि बताया।
कार्यक्रम में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सचिव शरद केवलिया, पृथ्वीराज रतनू,कवि जुगल किशोर पुरोहित, जाकिर अदीब ,प्रोफेसर नरसिंह बिन्नाणी ,गिरिराज पारीक, बी एल नवीन,एवं डाॅ.जियाउल हसन कादरी ने भी विचार व्यक्त किए। विमल शर्मा, फारूक चौहान, इसरार हसन कादरी, शिवदाधीच ,गीता सोनी सहित अनेक लोग उपस्थित हुए। अंत में असद अली असद ने आभार प्रकट किया।

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