NATIONAL NEWS

”537वें बीकानेर स्‍थापना दिवस के उपलक्ष्‍य में राज्‍य अभिलेखागार, बीकानेर द्वारा परिचर्चा एवं प्रदर्शनी का आयोजन”

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

”537वें बीकानेर स्‍थापना दिवस के उपलक्ष्‍य में राज्‍य अभिलेखागार, बीकानेर द्वारा परिचर्चा एवं प्रदर्शनी का आयोजन”

बीकानेर स्‍थापना दिवस के उपलक्ष्‍य में राजस्‍थान राज्‍य अभिलेखागार द्वारा ”परंपरा, नगर बोध एवं संस्‍क़ृति” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। अभिलेखागार परिसर में आयोजित इस परिचर्चा का आयोजन जिला प्रशासन, नगर विकास न्‍यास और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, बीकानेर के सहयोग से किया गया।

इस परिचर्चा में डॉ मदन सैनी, डॉ उमाकांत गुप्‍त, डॉ राजेन्‍द्र जोशी, श्री गिरधरदान रतनू एवं श्री गोपाल सिंह विशिष्‍ट वक्‍ता के रूप में शामिल हुए। अभिलेखागार निदेशक डॉ. नितिन गोयल ने स्‍वागत भाषण देते हुए कार्यक्रम की शुरूआत की। विशेष वक्‍ताओं को कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्‍य व्‍यक्तियों द्वारा पुष्‍प गुच्‍छ भेंट तथा साफा पहनाया गया। मंच संचालक श्रीमती मनीषा आर्य सोनी ने विशेष वक्‍ताओं का परिचय श्रोताओं को दिया।

डॉ मदन सैनी ने बताया कि 17वीं शताब्‍दी गजलों का रहा है और बीकानेर की गजलो में शहर की संस्‍कृति झलकती है। उन्‍होंने अपने व्‍याख्‍यान में जैन मंदिर, सुजानसिंह के बारे में बताया। अंत में बताया कि विजयदान देथा की फिल्‍म परिणीति में बीकानेर के गहनों का उपयोग हुआ था।

डॉ उमाकांत गुप्‍त ने बीकानेर के नगरबोध और संस्‍कृति के बारे में बताते हुए शहर को सारी सुख सुविधाओं का भोगता हुआ बडा गांव बताया। उन्‍होंने कहा कि बीकानेर की स्‍थापना सांझेपन से हुई है और हवेली की परंपरा, जातीय परंपरा में सभी में सांझापन दिखाई देता है। बीकानेर का शहर मानव मूल्‍यों की अवधारणा को सिद्ध करता है।

डॉ राजेन्द्र जोशी ने अपने व्‍याख्‍यान द्वारा बीकानेर के पाटों की महता के बारे में बताया। उन्‍होंने बताया पाटा एक लकडी का टुकडा नहीं है अपितु इसके साथ पूर्वजों की आत्‍माएं जुडी हुई है। साहुकार की कर्मभूमि पाटा रही है। बीकानेर के हर चौराहे व घर का अपना एक अलग इतिहास है। बीकानेर शहर की संपूर्ण संस्‍कृति पाटों की वजह से जिंदा है। परंतु अब यह संस्‍कृति खत्‍म होती जा रही है। उन्‍होने अंत में परिचर्चा में शामिल हुए श्रोताओं को इस संस्‍कृति को बचाए रखने के लिए कहा।

श्री गिरधरदान रतनू ने आधार, स्‍तम्‍ब, उदारता, साहस आदि रत्‍नों से पूरे राजस्‍थान की संस्‍कृति सुशोभित है। उन्‍होंने गेडो गांव के इतिहास के बारे में बताया तथा अपने व्‍याख्‍यान का समापन डिंगल साहित्‍य की कविता में पृथ्‍वीराज सिंह की वीरता के वर्णन के साथ किया।

श्री गोपाल सिंह ने पीपीटी के माध्‍यम से बताया कि विज्ञान के आने के पश्‍चात् हमारी संस्‍कृति का ह्रास हुआ है। बिना अर्थव्‍यवस्‍था के संस्‍कृति को जिंदा नहीं रखा जा सकता और सभी भारतीय संस्‍कार अर्थव्‍यवस्‍था को बनाए रखने के लिए कारगर साबित होते है। अकाल के समय में अर्थव्‍यवस्‍था को सुधारने के लिए यज्ञों का आयोजन किया जाता है। बीकानेर की हवेलियों की ऐतिहासिकता बताते हुए उन्‍होंने अंत में हवेलियों के संरक्षण व उन्‍हें तोडकर नए मकान नहीं बनाने के लिए श्रोताओं को प्ररित किया। उक्‍त परिचर्चा अभिलेखागार के यूट्युब चैनल पर उपलब्‍ध होगी।

डॉ. नितिन गोयल, निदेशक अभिलेखागार व श्री रामेश्‍वर बैरवा, सहायक निदेशक ने पधारे हुए सभी श्रोताओं का धन्‍यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में श्री भारत भूषण गुप्‍ता, ”द मदर केयर्स ट्रस्‍ट” के सचिव श्री पन्‍नालाल, प्रो एस के भनोत, श्री नमामी शंकर, श्री राजाराम स्‍वर्णकार, डॉ फारूक, श्री विमल शर्मा, श्री भगवान सिंह, श्री अमर सिंह, श्री महेन्‍द्र निम्‍हल, श्री विनोद जोशी, श्री बसंती हर्ष, डॉ एस एन हर्ष तथा श्री हरीमोहन मीना, सहायक निदेशक, श्री जगदीश तिवाडी, अतिरिक्‍त प्रशासनिक अधिकारी आदि उपस्थित रहे। परिचर्चा में पोलेण्‍ड के वैज्ञानिक एवं बीकानेर में जन्‍मे प्रो. चन्‍द्रशेखर पारीक ने भी भाग लिया।

नगर स्‍थापना दिवस पर श्री भारत भूषण द्वारा संकलित बीकानेर रियासत से संबंधी सिक्‍के, नोट, तलबाना टिकट पर दो दिवसीय प्रदर्शनी आज दिनांक तक जारी रही। इस प्रदर्शनी को विद्यार्थियों और आमजन ने सराहा।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!