अनपढ़ किसान इजरायली तकनीक से उगा रहे मिर्च:राजस्थान से देश के कई हिस्सों में सप्लाई, टर्नओवर 20 लाख तक पहुंचा
बूंदी
राजस्थान का हिंडौली (बूंदी) एरिया कभी चना और मसूर की खेती के लिए जाना जाता था। परंपरागत खेती में लगातार चुनौतियां पैदा होने लगीं। पानी की कमी, मौसम की मार और महंगी होती खेती ने उत्पादन लगातार गिराया। ऐसे में इस इलाके में किसानों की आर्थिक स्थिति भी कमजोर होने लगी। खेती छोड़ युवा दूसरे कामों की तरफ रुख करने लगे।
5 साल पहले इलाके के युवा किसान लालचंद सैनी (31) ने कृषि अधिकारियों के सहयोग से खेती की इजरायली तकनीक सीखी और प्रयोग करना शुरू किया। लालचंद और उसके परिवार ने शुरू में कड़ी मेहनत की। लालचंद ने यह प्रयोग अपने 10 बीघा के खेत में किया था। उनके गांव में अब 400 बीघा में किसान इजरायली तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं और अभ्यस्त हो चुके हैं। एक किसान के नवाचार ने हिंडौली के मांगली कला गांव की तकदीर बदल दी है।
किसान लालचंद चाइनीज़ किस्म की मिर्च का उत्पादन ले रहे हैं। यह पतली और लंबी होती है।
म्हारे देस की खेती में इस बार बात बूंदी के किसान लालचंद सैनी की।
बूंदी जिले का छोटा सा गांव मांगली कला। जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीट दूर। मेज नदी क्षेत्र में बसे इस गांव में जहां नजर जाती वहां खेत में मल्चिंग और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम नजर आता है। इलाके के किसान ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं लेकिन खेती में इजरायली तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं।
गांव में खेती लायक रकबा 800 बीघा के करीब है, इसमें आधी से ज्यादा जमीन पर इजरायली तकनीक से मिर्च की खेती की जा रही है। कुछ मात्रा में टमाटर का उत्पादन भी लिया जा रहा है। इससे किसानों की आर्थिक दशा में सुधार हुआ है।
किसान ने बताया कि पिता परंपरागत ढंग से खेती करते थे। सब्जी तैयार होती तो गांव से एक पिकअप मंडी जाया करती थी। साल 2002 एक दिन पिता पिकअप से सब्जी लेकर जोधपुर मंडी जा रहे थे। रास्ते में गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया। पिताजी की मौत हो गई। उस समय मैं 9 साल का था। उस हादसे के बाद मैं अक्सर सोचता था कि ऐसा काम करना चाहिए कि लोग गाड़ी लेकर अपने खेत तक आएं। हमें माल लेकर मंडी न जाना पड़े।
समय के साथ इलाके में पानी की कमी होती चली गई। हिंडौली से 12वीं तक पढ़ाई करने के कृषि विभाग के अधिकारियों से मिला। 2013 में मैंने पूरी तरह खेती संभालना शुरू किया। 5 साल परंपरागत खेती की और खेती-किसानी के गुर सीखता रहा। परंपरागत खेती घाटे का सौदा साबित होने लगी तो मैंने इजराइली तकनीक को अपनाया। अब साल में 3 उपज ले रहे हैं।
साल 2018 में मैंने परंपरागत खेती छोड़कर नई तकनीक से सब्जियों की खेती करना शुरू किया। इसके लिए मैंने खेत में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाया और मल्चिंग (प्लास्टिक शीट) बिछाई। मैंने 10 बीघा खेतों में मिर्च, शिमला और टमाटर की खेती की। पहली ही बार में मुझे अच्छा मुनाफा मिला।
इसके बाद हर साल फसल का रकबा बढ़ाता चला गया। प्याज और बैंगन की भी खेती की। अब 5 बीघा में सिर्फ मिर्च, 5 बीघा में टमाटर व भिंडी है। इस बार मिर्च का बंपर प्रोडक्शन हुआ है। अच्छा उत्पादन और मिर्च की क्वालिटी देख इलाके के बाकी किसान भी प्रभावित हुए।
मैंने गांव के किसानों को इजराइली तकनीक के बारे में सिखाना शुरू किया। धीरे-धीरे गांव के आधे से ज्यादा किसानों ने इजराइली तकनीक अपनाई। अब सभी अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। हमारा गांव मांगली कला अब इजराइली तकनीक से खेती करने के लिए जाना जाता है।
इलाके के किसान शिमला मिर्च का प्रोडक्शन भी ले रहे हैं। यहां 400 बीघा में इजरायली तकनीक से खेती होती है।
मिर्च उत्पादन और अन्य सब्जियां उगाकर सालाना टर्नओवर 20 लाख के करीब हो जाता है। शुद्ध कमाई 12 लाख रुपए से ज्यादा है। यहां की मिर्च इंदौर तक जा रही है। अब किसान अपनी गाड़ियां लेकर हमारे खेत तक आते हैं और तैयार माल ले जाते हैं। मिर्च की क्वालिटी इतनी अच्छी है कि माल को लेकर मंडी जाने की जरूरत नहीं।
मिर्च के अलावा इजरायली तकनीक से हम शिमला मिर्च, टमाटर, भिंडी, आलू, अरबी, प्याज और लौकी का उत्पादन भी ले रहे हैं। हमारा पूरा परिवार मिलकर खेती करता है। बच्चे भी सहयोग करते हैं।
किसान लालचंद के परिवार के बच्चे भी खेती के काम में सहयोग करते हैं। देसी हरी मिर्च ले जाती किसान परिवार की बच्ची।
घर में नर्सरी का काम शुरू किया
लालचंद ने बताया- मिर्च के बेहतरीन उत्पादन के लिए मैंने अपनी खुद की नर्सरी तैयार की। इसके लिए मैं क्लाउज 158 रिच फिल्ड 303 किस्म का मिर्च का बीज तैयार करने लगा। बीज लाकर अपनी नर्सरी में पौध तैयार करता हूं और फिर इन पौधों को मल्चिंग शीट पर रोपाई कर देता हूं।
नर्सरी से पौधा खरीदने पर एक पौधा एक रुपए में पड़ता है। घर में नर्सरी से तैयार करने यह सस्ता पड़ता है। मिर्च का बीज ट्रे में तैयार करते हैं। इसमें वर्मी कम्पोस्ट और कोकोपिट का इस्तेमाल करते हैं। बीज से जब पौध तैयार हो जाती है तो खेत की गहरी जुताई करके उसमें गोबर की खाद डालते हैं। इसके बाद एनपीके फर्टिलाइजर डालकर जमीन तैयार करते हैं। जमीन में गोबर की खाद अधिक डालते हैं। एक पौधे में 4 से 5 किलो तक मिर्च निकलती है।
अक्टूबर में मिर्च का बीज नर्सरी में लगाया जाता है। बीज से दिसंबर तक पौध तैयार हो जाती है। पौध को दिसंबर में ही नर्सरी से खेत में शिफ्ट कर दिया जाता है। यह पौधा 4 महीने बाद यानी मार्च में फल देने लगता है। मिर्च का एक पौधा दिसंबर तक 7 तोड़ाई (7 बार मिर्च तोड़ना) दे देता है।
मांगली कला गांव में मिर्च का बंपर प्रोडक्शन होता है। यहां की मिर्ची की डिमांड कई शहरों में है।
इजराइली तकनीक ने बदली गांव की किस्मत
लालचंद ने बताया- एक बीघा में 400 से 500 कैरेट टमाटर निकल रहा है। इस तरह 5 बीघा में 2500 कैरेट तक टमाटर मिल रहे हैं। मिर्च की तुड़ाई की बात करें तो 5 बीघा के खेत में एक बार में 40 क्विंटल तक मिर्च निकल जाती है। यह मिर्च मध्यप्रदेश और जालोर मंडी तक जाती है।
परिवार के लोग भी मेरी खेती में मदद करते हैं। खेती की देखरेख करते हैं। परिवार परिवार के सदस्यों के काम अलग-अलग होते हैं। देखरेख का काम, पानी देना, तुड़ाई सारे काम बांट रखे हैं।
कृषि अधिकारी बोले- कम लागत में अधिक मुनाफा मिलता है
हिंडौली के सहायक कृषि अधिकारी बाबूलाल मीणा ने बताया- मांगली कला गांव के किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमाना सीख गए हैं। मल्चिंग और ड्रिप इरिगेशन तकनीक अपनाने से किसानों को कई तरह के फायदे हुए हैं। पानी की बचत होती है। ऊंची नीची जमीन पर सिंचाई करना आसान हो गया है।
कम पानी में अधिक उत्पादन मिल रहा है। जितनी जरूरत है उतना पानी ही इस्तेमाल हो रहा है। जमीन की गुणवत्ता और नमी बनी रहती है। खरपतवार पैदा नहीं होती। कई तरह की बीमारियों से फसल बच जाती है। मिट्टी का कटाव भी रुका है। मांगली कला पंचायत के अधिकांश किसान इजरायली तकनीक से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यहां के किसानों की माली हालत में काफी सुधार हो रहा है। फसल का उत्पादन भी अच्छा होने से किसान अच्छा महसूस करते हैं ।
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