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हम मेघवालों के बाल नहीं काटते, यहां केवल जाटों के बाल काटे जाते हैं, नोखा में हुआ बवाल, दलित वर्ग हुआ लामबंद, देखें पूरा मामला…

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We do not cut the hair of Meghwals, here only the hair of Jats is cut, there was a ruckus in Nokha

हम मेघवालों के बाल नहीं काटते, यहां केवल जाटों के बाल काटे जाते हैं, नोखा में हुआ बवाल, दलित वर्ग हुआ लामबंद, देखें पूरा मामला…
(TIN नहीं करता घटना की पुष्टि)
बीकानेर। नोखा तहसील के झाड़ेली गांव में दलित युवक के साथ भेदभाव, हेयर कटिंग सैलून पर बाल काटने से इनकार, मामला सोशल मीडिया पर हुआ वायरल, SP के निर्देश पर एफआईआर दर्ज हुई।
बिकानेर जिले के नोखा तहसील के झाड़ेली गांव में जातिगत भेदभाव का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जहां एक दलित युवक को हेयर कटिंग सैलून पर बाल कटवाने से मना कर दिया गया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पुलिस प्रशासन ने मामले का संज्ञान लिया और कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए।
क्या है पूरा मामला?
झाड़ेली गांव के रहने वाले दलित युवक ने गांव के एक नाई की दुकान पर जाकर बाल कटवाने की इच्छा जताई। लेकिन दुकानदार ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया और कथित तौर पर जातिगत टिप्पणी करते हुए कहा कि “हम आपकी जाति के लोगों के बाल नहीं काटते।” इस भेदभाव भरे रवैये से आहत युवक ने अपने मोबाइल से इस पूरी घटना का वीडियो बना लिया और इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो, बढ़ा जनाक्रोश

वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। कई सामाजिक संगठनों, जागरूक नागरिकों और राजनीतिक दलों ने इस घटना की निंदा की और प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की। लोगों ने सवाल उठाया कि जब देश डिजिटल और AI युग की ओर बढ़ रहा है, तब भी कुछ मानसिकताएँ पुरानी रूढ़ियों में जकड़ी हुई हैं।

पुलिस प्रशासन हरकत में आया, FIR दर्ज

घटना के तूल पकड़ने के बाद, बिकानेर के पुलिस अधीक्षक (SP) कावेन्द्र सिंह सागर ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत जांच के आदेश दिए। नोखा पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए नाई के खिलाफ SC/ST एक्ट समेत अन्य धाराओं में FIR दर्ज की। पुलिस अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।

ग्रामीण क्षेत्रों में जातिगत भेदभाव की हकीकत

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब राजस्थान के ग्रामीण इलाकों से इस तरह की खबरें आई हैं। पहले भी कई स्थानों पर दलित समाज के लोगों को मंदिरों में प्रवेश न देने, सार्वजनिक कुओं से पानी न भरने और यहां तक कि बारात के दौरान घोड़ी चढ़ने से रोके जाने जैसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं।

समाज में कब आएगा बदलाव?

बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक समाज इस प्रकार की मानसिकता से ग्रसित रहेगा? सरकारें कानून बनाकर भले ही भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास कर रही हों, लेकिन जमीनी स्तर पर सामाजिक सोच में बदलाव कब आएगा? शिक्षित और विकसित समाज की परिकल्पना तभी साकार होगी जब हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिलेगा।

प्रशासन की अगली कार्रवाई

पुलिस ने आरोपी को पकड़ने के लिए दबिश शुरू कर दी है और जांच में जुट गई है। वहीं, प्रशासनिक अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाइश दी कि इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा न दें और कानून को अपने हाथ में लेने से बचें।नोखा के झाड़ेली गांव की यह घटना एक बार फिर समाज के उस दकियानूसी चेहरे को उजागर करती है, जिसे बदलने की जरूरत है। जातिगत भेदभाव का यह मामला यह बताने के लिए काफी है कि कानून और आधुनिकता के बावजूद कुछ मानसिकताएँ अब भी जड़ से नहीं बदली हैं। समाज को इन कुरीतियों से मुक्त करने के लिए शिक्षा, जागरूकता और सख्त कानून के साथ-साथ मानवीय दृष्टिकोण की भी आवश्यकता है।

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