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संसार का एकमात्र कल्कि मंदिर( मंदिर में स्थापित है अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा)

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आलेख: श्रीमती अंजना शर्मा(ज्योतिष दर्शनाचार्य)(शंकरपुरस्कारभाजिता) पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर राजस्थान सरकार

भगवान् कल्कि का मन्दिर संपूर्ण संसार का एकमात्र भारतवर्ष के केवल जयपुर में ही है। यह मन्दिर सिरहड्योढी
दरवाजे के सामने विद्यमान है।जयपुर की बड़ी चौपड़ से आमेर की ओर जानेवाली सड़क सिरेड्योढ़ी बाज़ार में (हवामहल के लगभग सामने) कल्कि अवतार का एक प्राचीन मन्दिर अवस्थित है। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने पुराणों में वर्णित कथा के आधार पर कल्कि अवतार के मन्दिर का निर्माण सन् 1739 ई. में दक्षिणायन शिखर-शैली में कराया था। प्रख्यात संस्कृत विद्वान देवर्षि कलानाथ शास्त्री के अनुसार, “सवाई जयसिंह संसार के ऐसे पहले महाराजा रहे हैं, जिन्होंने जिस देवता का अभी तक अवतार हुआ ही नहीं, उसके बारे में पूर्व-कल्पना कर कल्कि की मूर्ति बनवा कर एक अलग मन्दिर में स्थापित करायी। सवाई जयसिंह के समकालीन कवि श्रीकृष्ण भट्ट कलानिधि ने अपने ईश्वर विलास काव्यग्रन्थ में मन्दिर के निर्माण और औचित्य का वर्णन किया है।.” तद्नुसार ऐसा उल्लेख है कि सवाई जयसिंह ने अपने पौत्र ”कल्कि प्रसाद“ (सवाई ईश्वरीसिंह के पुत्र) जिसकी असमय में ही मृत्यु हो गई थी, की स्मृति में यह मन्दिर स्थापित कराया था।इस ग्रंथ के परिशिष्ट 2 पर श्रीगोपालनारायणजी बहुरा ने बतलाया है कि ईश्वरसिंहजी के 7 रानियों में से जादमजी (करौली की राजकुमारी यादवी नामक रानी) के गर्भ से कल्कि प्रसाद नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। यह होनहार बालक पं. जयसिंह के सामने बाल्यावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। कहा जाता है कि कल्कि प्रसाद पौत्र की स्मृति में महाराज ने यह कल्कि मन्दिर बनवाया था। ईश्वर विलास महाकाव्य के षष्ठम सर्ग में कल्कि भगवान की स्थापना ,स्वरुप शोभा ,कल्कि स्तोत्र, तथा कल्कि अष्टम,मिलता है, मंदिर की आरती के समय महाराज स्वम उपस्थित रहते थे ये वर्णन ईश्वरविलास महाकाव्य संस्कृत और ब्रजभाषा के महाकवि श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि द्वारा कविता-शैली में जयपुर और यहाँ के राजपुरुषों के बारे में लिखा इतिहास-ग्रंथ में मिलता है, इसकी मूल पांडुलिपि सिटी पैलेस (चन्द्रमहल) जयपुर के पोथीखाना में है। कच्छवंश महाकाव्य में कल्कि और प्रसाद नामक दो पुत्रों का उल्लेख मिलता है। परन्तु अन्यत्र प्राचीन रिकार्डादि में एक पुत्र कल्कि प्रसाद का ही उल्लेख है। यह अश्वमेध याग के बाद निर्मित है। इस मंदिर में अश्वमेघ के अश्व का स्थापित किया है I
यहाँ संगमरमर पर एक बहुत आकर्षक श्वेत अश्व की प्रतिमा उत्कीर्ण है जो भविष्य के अवतार कल्कि का वाहन माना गया है। अश्व के चबूतरे पर लगे बोर्ड पर ये रोचक इबारत अंकित है- ”अश्व श्री कल्कि महाराज- मान्यता- अश्व के बाएँ पैर में जो गड्ढा सा (घाव) है, जो स्वतः भर रहा है, उसके पूरा भरने पर ही कल्कि भगवान प्रकट होंगे।“

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