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बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है: हिंदुस्तानी सियासत में चेहरे वही और खेल नए….

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बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है: हिंदुस्तानी सियासत में चेहरे वही और खेल नए….

Dr Mudita Popli

जीवन में अंकुश बहुत जरूरी है, शायद वह अंकुश ही है जो व्यक्ति को स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में भेद करना सिखाता है। यदि मनुष्य को बिना अंकुश के छोड़ दिया जाए तो निरंकुशता हावी हो जाती है और वो सही गलत का भेद भूल जाता है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में भारत की जनता ने मतदान रूपी अंकुश का बहुत सही इस्तेमाल किया है। यह सच है कि इस समय भारत की गद्दी संभालने के लिए नरेंद्र मोदी एकमात्र ऐसा चेहरा है जो देश का प्रतिनिधित्व करते हुए सही महसूस होते हैं परंतु अगर पिछले 10 साल का खाका देखें तो बहुत गलतियां हुई है बहुत कमियां रह गई हैं जिनमें सुधार जरूरी था और जनता ने यह बतला दिया है कि निरंकुशता किसी की भी नहीं चलेगी चाहे फिर वह कोई भी पार्टी हो।
अगर इंडिया गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश भी कर लेता तो शायद राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद पर ना आते क्योंकि उनका पिछला रिकॉर्ड देखें तो उन्होंने कभी भी प्रधानमंत्री पद के प्रति वह जोश नहीं दिखाया है जो उनको दिखाना चाहिए था। चुनाव के फौरन बाद शेयर बाजार के घोटाले पर प्रेस वार्ता करना उनकी इसी अभिरुचि को दर्शाता है और अगर राहुल प्रधानमंत्री नहीं बनते तो क्या प्रियंका बनती? परंतु चुनाव में खड़े होकर भाषण दे देने से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी तय नहीं होती, और प्रियंका ने अपना वह कद अब तक नहीं दिखाया है। ऐसी स्थिति में किसी अन्य नेता को भारतवासी प्रधानमंत्री पद पर स्वीकार भी नहीं कर पाते।
लेकिन इस पूरे परिदृश्य का यदि आकलन करें तो साफ दृष्टिगोचर होता है कि जनता ने नरेंद्र मोदी को भी एक संदेश दिया है कि देश के लिए और जनता के लिए महत्वपूर्ण क्या है। केवल धर्म और जाति का पलड़ा कभी भी देश की आर्थिक स्थितियों और बच्चों के भविष्य से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। कांग्रेस को भी जनादेश नहीं मिला है, लेकिन हिंदुस्तान की जनता ने उन्हें मजबूत विपक्ष के रूप में खड़ा करके अपनी आवाज बुलंद करने और फिर से एक बार साबित करने के लिए संसद में भेजा है। कहा भी गया है कि मजबूत लोकतंत्र वही है जहां विपक्ष दमदार है। अटल बिहारी वाजपेई ने हिंदुस्तान की राजनीति में गठबंधन की सरकार को बहुत खूबसूरती से निभाया है, अटल जी एक जनप्रिय नेता रहे, और यह सब्र केवल उनकी वाणी नहीं उनके व्यवहार में भी देखने को मिला और शायद यही कारण रहा कि उन्होंने बहुत खूबसूरती से पोकरण को अंजाम देते हुए भारत को विश्व मंच पर बहुत ताकत के साथ खड़ा किया था।
अब नरेंद्र मोदी की बारी है, एक और जहां नीतीश अग्नि वीर का विरोध करते दिखेंगे तो नायडू मुसलमानो को आरक्षण की पैरवी करते दिखाई दे सकते हैं। अब देखना यह है कि नरेंद्र मोदी कैसे सब्र रखते हैं और भाजपा की नीतियों के साथ खड़े रहकर इस गठबंधन की सरकार का कार्यकाल पूर्ण करते हैं।
सबसे मजे की बात यह है कि कांग्रेस को और राहुल गांधी को, जिसे चाहे भारत की राजनीति का पप्पू करार दे दिया गया हो, उसके हाथ में भी भारत की जनता ने बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है और अगर कांग्रेस को सिद्ध करना है कि वह भारत की आम जनता की उम्मीद पर खरी उतरेगी तो उसे इस कार्यकाल में इसे साबित करना होगा। मजबूत अपोजिशन भी लोकतंत्र की धुरी का कार्य करता है। राहत इंदौरी की यह पंक्तियां दिमाग पर हावी हो रही हैं
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है ….

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