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बीकानेर क्षेत्र की पुण्य गौरवगाथा (सत्यवान-सावित्री)

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आलेख: श्रीमती अंजना शर्मा(ज्योतिष दर्शनाचार्य)(शंकरपुरस्कारभाजिता) पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर राजस्थान सरकार

  • (पुण्य करने वाली भाग्यशालनी नारी करती है समाज निर्माण)
    पौराणिक काल से ही कथाओं में सत्यवान- सावित्री का वर्णन हर काल कि महिलाओं के पतिव्रत के लिए मिलता है ।भगवती अनसूया जी भी सीता जी को सावित्री के समान बताकर स्वर्गसुख का आशीर्वाद प्रदान करती हैं ।इस पुण्य कथा का प्रदेश शाल्व – मद्र प्रदेश रहा है। जो वर्तमान में अलवर से बीकानेर तक माना जाता है, मार्कण्डेय पुराण के 7 अध्यायों में 200 पद्यो में इसका वर्णन धर्मराज के साथ ऋषि मार्कण्डेय करते हैं ।मद्र देश के राजा अश्व
    पति की ने पुत्र प्राप्ति हेतु 18 वर्षों तक सावित्री की तपस्या की जो सूर्यपुत्री हैं , सावित्री ने प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का वरदान न देकर पुत्री प्राप्ति का वर दिया प्रसन्न राजा इसे स्वीकार कर अपने पुत्री का नामकरण सावित्री ही करते हैं, जो वैदिक कार्यों में निपुण होती हैं ऋषि तुल्य आचरण वाली सावित्री जब विवाह योग्य होती है तो अश्वपति चिंतित होते हैं कि मेरी पुत्री से विवाह करने वालों के प्रस्ताव नहीं आ रहे हैं अर्थात प्राचीन काल में पुत्री की याचना आगे से ही की जाती रही है अश्वपति के सामने संपूर्ण जम्बू द्वीप में कोई भी राजा नहीं था जो उनसे जाकर उनकी पुत्री को मांगे तब सावित्री को ही स्वयंवर चुनने का अधिकार पिता देते हैं, सावित्री मद्र प्रदेश से शाल्व देश की ओर जाती है जो उत्तरी बीकानेर का क्षेत्र है वहां सरस्वती नदी के किनारे आश्रम और गुरुकुल होते हैं शाल्व नरेश जो राज्य च्युत हो गए घुमत्सेन अपनी पत्नी और पुत्र सत्यवान के साथ वहां रहते हैं सत्यवान के गुणो पर मोहित होकर सावित्री ने उन्हें पति रूप में चयन का निर्णय कर पिता के पास गई पिता को अपना निर्णय जब बताया तो महर्षि नारद वहां उपस्थित थे महर्षि ने कहा कि संसार में सत्यवान से श्रेष्ठ गुणवान दूसरा कोई है नहीं पर आप इसके वरण का विचार बदल दें क्योंकि आज से इसकी आयु एक वर्ष मात्र शेष है ।सावित्री का कथन मनुस्मृति से होता है कि तीन कम एक बार ही बोले जाते हैं और मैं बोल चूकी हूं। निर्णय को अटल मानकर अश्वपती सत्यवान से विवाह कर देते हैं सावित्री नित्य वैदिक व लौकिक धर्म में लग जाती है। यहां ऋषि मार्कण्डेय पतिव्रत धर्म के विषय में कहते हैं की माता-पिता की सेवा के पश्चात पति की सेवा ही पतिव्रता है न कि पति की सेवा पतिव्रत है जब वह दिन नजदीक आया तीन-चार दिन से रह गए सावित्री सेवा कार्य में और भी रत होने लगी उस दिन सुबह सभी कार्य को पूर्ण कर सत्यवान से कहा आज जंगल में काष्ट लाने में भी साथ चलूंगी सत्यवान के मना करने पर माता-पिता से आज्ञा लेकर साथ ही जाती है, सर्पदंश सत्यवान को होता है तो यमराज के पीछे-पीछे सावित्री जाती है और यमराज को अपने वैदुष्य व चतुरता से प्रसन्न कर 100 पुत्रों की मां बनने का वर लेती है इस पर यमराज चक्कर में पड़कर सत्यवान को पुन जीवित कर देते हैं राजस्थान की भूमि पर इस पुण्य कथा का कथानक हुआ यह गौरव की बात है यहां का हर स्थान पुण्य व गौरवशाली है।
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